राग श्याम कल्याण
As the sun sets, another set of Sandhi Prakash ragas come into the picture. These are the counterparts of the pre-dawn ragas. At this time, light meets darkness unlike dawn and this difference is reflected in the swaras used.The sunset ragas are once again somber and introspective. This volume begins with Pandit Jasraj's vocal rendition of raga Marwa. This is followed by raga Shree, sung by Shruti Sadolikar. The volume concludes with raga Hamsadhwani, rendered by Shahid Parvez on the sitar. The ragas are clearly for an early evening or the dusk
जैसे ही सूर्यास्त होता है, संधि प्रकाश रागों का एक और सेट चित्र में आ जाता है। ये प्रातःकाल के रागों के प्रतिरूप हैं। इस समय, प्रकाश भोर के विपरीत अंधेरे से मिलता है और यह अंतर इस्तेमाल किए गए स्वरों में परिलक्षित होता है। सूर्यास्त राग एक बार फिर उदास और आत्मनिरीक्षण कर रहे हैं। यह खंड पंडित जसराज के राग मारवा के गायन से शुरू होता है। इसके बाद श्रुति सादोलीकर द्वारा गाया गया राग श्री है। वॉल्यूम का समापन शाहिद परवेज द्वारा सितार पर गाया गया राग हंसध्वानी के साथ होता है। राग स्पष्ट रूप से शाम या शाम के समय के लिए हैं
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संबंधित राग परिचय
श्याम कल्याण
राग श्याम कल्याण बडा ही मीठा राग है। यह कल्याण और कामोद अंग (ग म प ग म रे सा) का मिश्रण है।
इस राग को गाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। गंधार आरोह मे वर्ज्य नही है, तब भी ग म् प नि सा' नही लेना चाहिये, बल्कि रे म् प नि सा' लेना चाहिये। गंधार को ग म प ग म रे साइस तरह आरोह में लिया जाता है। सामान्यतः इसका अवरोह सा' नि ध प म१ प ध प ; ग म प ग म रे सा इस तरह से लिया जाता है। अवरोह में कभी कभी निषाद को इस तरह से छोड़ा जाता है जैसे - प सा' सा' रे' सा' नि सा' ध ध प।
इस राग का निकटस्थ राग शुद्ध सारंग है, जिसके अवरोह में धैवत को कण स्वर के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, जबकि श्याम कल्याण में धैवत दीर्घ है। इसी प्रकार श्याम कल्याण में गंधार की उपस्थिति इसे शुद्ध सारंग से अलग करती है। इसी तरह, अवरोह में, सा' नि ध प म् ग नही लेना चाहिये, बल्कि सा' नि ध प म् प ध प ; म् प ग म रे सा ऐसे लेना चाहिये। प सा' सा' रे' सा' लेने से राग का माहौल तुरंत बनता है। इसका निकटस्थ राग, राग शुद्ध सारंग है। यह स्वर संगति राग स्वरूप को स्पष्ट करती है -
सा ,नि सा रे म् प ; म् प ध प ; म् प नि सा' ; सा' रे' सा' नि ध प ; म् प ध प ; ग म रे ; ,नि सा रे सा ; प ध प प सा' सा' रे' सा' ; सा' रे' सा' ध प म् प ; रे म् प नि सा' ; नि सा' ध ध प ; सा' नि ध प ; म् प ग म प ; ग म रे ; रे ,नि सा;
थाट
राग जाति
गायन वादन समय
Tags
राग
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राग श्याम कल्याण
थाट कल्याण मानत गुनि जन, पस संवाद अनुप।
ओडव सम्पूरन प्रथम रात्रि,श्याम कल्याण स्वरुप।।
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राग श्याम कल्याण (न्यास के स्वर)
न्यास के स्वर– रे, प और नि।
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राग श्याम कल्याण (समप्रकृति राग)
समप्रकृति राग– शुद्ध सारंग और कामोद।
शुद्ध सारंग से बचने के लिए अवरोह में गंधार प्रयोग करते है और कामोद से बचने के लिए निषाद बढाते है और गंधार का लंघन करते है। कामोद में रे प स्वर समूह महत्वपूर्ण है, किन्तु इसमें यह संगति नहीं लेते, बल्कि रे म॑प और म रे प्रयोग करते है।
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राग श्याम कल्याण का परिचय
राग श्याम कल्याण का परिचय
वादी: प
संवादी: सा
थाट: KALYAN
आरोह: ऩिसारेम॓पनिसां
अवरोह: सांनिधपम॓ पधम॓प गमरेऩिसारे ऩिसा
पकड़: मरे ऩिसा रेऩिसा रेम॓प
रागांग: उत्तरांग
जाति: AUDAV-SAMPURN
समय: रात्रि का प्रथम प्रहर