सूहा
सूहा
राग सूहा को काफी थाट जन्य माना गया है। इसके गंधार और निषाद स्वर कोमल है। इसके आरोह में ऋषभ और धैवत और अवरोह में केवल धैवत वर्ज्य माना जाता है, इसलिये इसकी जाति औडव-षाडव मानी जाती है। वादी न और संवादी सा है। गायन समय मध्यान्ह काल है।
थाट
राग जाति
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राग
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SMT. KISHORI AMONKAR ~ Raga Suha
This excerpt in Raga Suha (Khyal in Madhyalaya in Teentaal or 16-beat cycle) by Smt Kishori Amonkar is from her performance at Navras Records / Sama Arts Concert at London's Kufa Gallery in November 1998. Accompanying Kishoriji are Balkrishna Iyer (Tabla), Purushottam Walawalkar (Harmonium) and Vidya Bhagwat (Tanpura and Vocal Support). The recording is published on Navras Records album "Prabhat" (NRCD 0111).
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संबंधित राग परिचय
सूहा
राग सूहा को काफी थाट जन्य माना गया है। इसके गंधार और निषाद स्वर कोमल है। इसके आरोह में ऋषभ और धैवत और अवरोह में केवल धैवत वर्ज्य माना जाता है, इसलिये इसकी जाति औडव-षाडव मानी जाती है। वादी न और संवादी सा है। गायन समय मध्यान्ह काल है।
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राग सूहा के स्वर समप्रकृति राग
समप्रकृति राग– नायकी, सुघराई, शहाना और देवशाख।
राग सूहा अन्य रागों की अपेक्षा नायकी और देवशाख से अधिक मिलता- जुलता है। अवरोह तो तीनों का लगभग एक है। सूहा के आरोह में ऋषभ वर्ज्य कर गंधार प्रयोग करने से यह नायकी से अलग हो जाता है और मुक्त मध्यम प्रयोग करने से यह सुघराई से अलग हो जाता है। धैवत वर्ज्य करने से यह सुघराई और शहाना से अलग हो जाता है, क्योंकि इन दोनों रागों में धैवत प्रयोग किया जाता है।
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SMT. KISHORI AMONKAR ~ Raga Suha
This excerpt in Raga Suha (Khyal in Madhyalaya in Teentaal or 16-beat cycle) by Smt Kishori Amonkar is from her performance at Navras Records / Sama Arts Concert at London's Kufa Gallery in November 1998. Accompanying Kishoriji are Balkrishna Iyer (Tabla), Purushottam Walawalkar (Harmonium) and Vidya Bhagwat (Tanpura and Vocal Support). The recording is published on Navras Records album "Prabhat" (NRCD 0111).
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राग सूहा के स्वर समप्रकृति राग
समप्रकृति राग– नायकी, सुघराई, शहाना और देवशाख।
राग सूहा अन्य रागों की अपेक्षा नायकी और देवशाख से अधिक मिलता- जुलता है। अवरोह तो तीनों का लगभग एक है। सूहा के आरोह में ऋषभ वर्ज्य कर गंधार प्रयोग करने से यह नायकी से अलग हो जाता है और मुक्त मध्यम प्रयोग करने से यह सुघराई से अलग हो जाता है। धैवत वर्ज्य करने से यह सुघराई और शहाना से अलग हो जाता है, क्योंकि इन दोनों रागों में धैवत प्रयोग किया जाता है।