कव्वाली

कव्वाली नामक ताल में जो प्रबंध गाया जाता है वह है कव्वाली। विशेषकर मुस्लिम भजन प्रणाली जिन्हें खम्सा और नात् कव्वाली कहते हैं।

क़व्वाली (उर्दू: قوٌالی,) भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ीवाद और सूफ़ी परंपरा के अंतर्गत भक्ति संगीत की एक धारा के रूप में उभर कर आई। इसका इतिहास 700 साल से भी ज्यादा पुराना है। वर्तमान में यह भारत, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश सहित बहुत से अन्य देशों में संगीत की एक लोकप्रिय विधा है। क़व्वाली का अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप नुसरत फतेह अली खान और के गायन से सामने आया।

 

सरगम

स्वरों की ऐसी मधुर मालिका जो कर्णमधुर एवं आकर्षक हो और राग रूप को स्पष्ट कर दे वही सरगम है। इसे आलाप के बजाय स्वरों का उच्चार करते हुये गाया जाता है।

टप्पा

टप्पा का अर्थ है निश्चित स्थान पर पहुंचना या ठहरी हुई मंजिल तय करना। गुजरात, काठियावाड से पंजाब, काबुल, बलोचिस्तान के व्यापारी जब पूर्व परम्परा के अनुसार ऊंटों के काफिलों पर से राजपुताना की मरुभूमि में से यात्रा करते हुए ठहरी हुई मंजिलों तक पहुंचकर पड़ाव डाला करते थे, उस समय पंजाब की प्रेमगाथाओं के लोकगीत, हीर-राँझा, सोहिनी-महिवाल आदि से भरी हुई भावना से गाये जाते थे। उनका संकलन हुसैन शर्की के द्वारा हुआ। शोरी मियां ने इन्हें विशेष रागों में रचा। यही पंजाबी भाषा की रचनाएँ टप्पा कहलाती हैं। टप्पा, भारतीय संगीत के मुरकी, तान, आलाप, मीड के अंगों कि सहायता से गाया जाता है। पंजाबी ताल इसमें प्रय

लक्षण गीत

लक्षण गीत - राग स्वरूप को व्य­क्त करने वाली कविता जो छोटे ख्याल के रूप में बंधी रहती है लक्षण गीत कहलाती है।

धुपद / ध्रुवपद

ध्रुवपद - गंभीर सार्थ शब्दावली, गांभीर्य से ओतप्रोत स्वर संयोजन द्वारा जो प्रबन्ध गाये जाते हैं वे ही हैं ध्रुवपद। गंभीर नाद से लय के चमत्कार सहित जो तान शून्य गीत हैं वह है ध्रुवपद। इसमें प्रयुक्त­ होने वाले ताल हैं - ब्रम्हताल, मत्तताल, गजझंपा, चौताल, शूलफाक आदि। इसे गाते समय दुगनी चौगनी आड़ी कुआड़ी बियाड़ी लय का काम करना होता है।

धुपद शैली

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय