थाट
संस्कृत में थाट का अर्थ है मेल। थाट, यह रागों के वर्गीकरण हेतु तैयार की हुई पद्धति है। पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने १० थाट प्रचिलित किये जिनको कोमल, शुद्ध और तीव्र स्वरों के आधार पर बनाया गया जो निम्न हैं -
(१) कल्याण
(२) बिलावल
(३) खमाज
(४) भैरव
(५) पूर्वी
(६) मारवा
(७) काफी
(८) आसावरी
(९) भैरवी
(१०) तोड़ी
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राग
स्वरों की ऐसी मधुर तथा आकर्षक ध्वनि जो सुनिश्चित् आरोह-अवरोह, जाति, समय, वर्ण, वादी-संवादी, मुख्य-अंग आदि नियमों से बद्घ हो और जो वायुमंडल पर अपना प्रभाव अंकित करने मे समर्थ हो। वातावरण पर प्रभाव डालने के लिये राग मे गायन, वादन के अविभाज्य 8 अंगों का प्रयोग होना चाहिये।
ये 8 अंग या अष्टांग इस प्रकार हैं: स्वर, गीत, ताल और लय, आलाप, तान, मींड, गमक एवं बोलआलाप और बोलतान। उपर्युक्त 8 अंगों के समुचित प्रयोग के द्वारा ही राग को सजाया जाता है।
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वर्ण
वर्ण का अर्थ है मोड। संगीत मे 4 प्रकार के वर्ण होते हैं:
आरोही वर्ण - केवल आरोह मात्र। तात्पर्य यह कि नीची आवाज़ को ऊँचाई की ओर ले जाना। फिर चाहे वह एक स्वर तक ही ऊँची क्यों न हो, आरोही वर्ण है।
अवरोही वर्ण - केवल अवरोह मात्र। ऊँची से नीची आवाज़ ले आना।
स्थाई वर्ण - एक ही जगह पर रुकते हुए कुछ देर तक कायम रहना। जैसे - ममम धध गग रेरे पप आदि।
संचारी वर्ण - ऊपर लिखे हुए तीनो वर्णों का मिला-जुला रूप। जहाँ से मन चाहा वहाँ को आवाज़ कि दिशा बदल दी या एक ही स्थान पर रुक गये।
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स्वर
स्वर एक निश्चित ऊँचाई की आवाज़ का नाम है। यह कर्ण मधुर आनंददायी होता है। जिसमें स्थिरता होनी चाहिये, जिसे कुछ देर सुनने पर, मन में आनंद की लहर पैदा होनी चाहिये। यह अनुभूति की वस्तु है। भारतीय संगीत में एक स्वर की उँचाई से ठीक दुगुनी उँचाई के स्वर के बीच 22 संगीतोपयोगि नाद हैं जिन्हें "श्रुति" कहा गया है। इन्हीं दोनो उँचाईयों के बीच निश्चित श्रुतियों पर सात शुद्ध स्वर विद्यमान हैं जिन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि, से जाना जाता है और जिनके नाम क्रमश: षडज, ऋषभ, गंधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद हैं। इसे सप्तक के नाम से जाना जाता है।
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जाति
राग विवरण मे सुनते है अमुक राग अमुक जाति का है। "जाति" शब्द राग मे प्रयोग किये जाने वाले स्वरों की संख्या का बोध कराती है । रागों मे जातियां उनके आरोह तथा अवरोह मे प्रयोग होने वाले स्वरों की संख्या पर निर्धारित होती है।
दामोदर पंडित द्वारा रचित संगीत दर्पण मे कहा गया है……
ओडव: पंचभि:प्रोक्त: स्वरै: षडभिश्च षाडवा।
सम्पूर्ण सप्तभिर्ज्ञेय एवं रागास्त्रिधा मत: ॥
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।