घराना
भारतीय संगीत में संगीत शिक्षा एक कंठ से दूसरे कंठ में ज्यों की त्यों उतारी जाती है। जिसे नायकी ढंग की शिक्षा कहते हैं। और जब एक ही गुरू के अनेक शिष्य हो जाते हैं तो उन्हें घराना या परम्परा कहा जाता है। किराना घराना, ग्वालियर घराना, आगरा घराना, जयपुर घराना इत्यादि घराने भारतीय संगीत में प्रसिद्ध हैं।
घराना प्रणाली
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वादी/संवादी
राग एक माहौल या वातावरण विशेष का नाम है जो रंजक भी है। स्पष्ट रूप से इस वातावरण निर्मिती के केंद्र में वह स्वरावली है जो रागवाचक है इसे रागांग कहते हैं। इस रागांग का केंद्र बिंदु होता है वादी स्वर। इसे राग का जीव या प्राण स्वर भी कहा गया है। राग को राज्य की संज्ञा देकर वादी स्वर को उसका राजा कहा जाता है। स्पष्टतः वादी का प्रयोग अन्य स्वरों की अपेक्षा सर्वाधिक होता है तथा इस पर ठहराव भी अधिक होता है।
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थाट
संस्कृत में थाट का अर्थ है मेल। थाट, यह रागों के वर्गीकरण हेतु तैयार की हुई पद्धति है। पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने १० थाट प्रचिलित किये जिनको कोमल, शुद्ध और तीव्र स्वरों के आधार पर बनाया गया जो निम्न हैं -
(१) कल्याण
(२) बिलावल
(३) खमाज
(४) भैरव
(५) पूर्वी
(६) मारवा
(७) काफी
(८) आसावरी
(९) भैरवी
(१०) तोड़ी
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राग
स्वरों की ऐसी मधुर तथा आकर्षक ध्वनि जो सुनिश्चित् आरोह-अवरोह, जाति, समय, वर्ण, वादी-संवादी, मुख्य-अंग आदि नियमों से बद्घ हो और जो वायुमंडल पर अपना प्रभाव अंकित करने मे समर्थ हो। वातावरण पर प्रभाव डालने के लिये राग मे गायन, वादन के अविभाज्य 8 अंगों का प्रयोग होना चाहिये।
ये 8 अंग या अष्टांग इस प्रकार हैं: स्वर, गीत, ताल और लय, आलाप, तान, मींड, गमक एवं बोलआलाप और बोलतान। उपर्युक्त 8 अंगों के समुचित प्रयोग के द्वारा ही राग को सजाया जाता है।
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वर्ण
वर्ण का अर्थ है मोड। संगीत मे 4 प्रकार के वर्ण होते हैं:
आरोही वर्ण - केवल आरोह मात्र। तात्पर्य यह कि नीची आवाज़ को ऊँचाई की ओर ले जाना। फिर चाहे वह एक स्वर तक ही ऊँची क्यों न हो, आरोही वर्ण है।
अवरोही वर्ण - केवल अवरोह मात्र। ऊँची से नीची आवाज़ ले आना।
स्थाई वर्ण - एक ही जगह पर रुकते हुए कुछ देर तक कायम रहना। जैसे - ममम धध गग रेरे पप आदि।
संचारी वर्ण - ऊपर लिखे हुए तीनो वर्णों का मिला-जुला रूप। जहाँ से मन चाहा वहाँ को आवाज़ कि दिशा बदल दी या एक ही स्थान पर रुक गये।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।