लाग-डाट

मींड के आरोह को लाग और मींड के अवरोह को डाट कहते हैं। इशत् और मनाक् स्पर्श लाग-डाट के आगे की स्थितियाँ हैं।

मनाक् तथा इषत् स्पर्श

मींड जहाँ से प्रारम्भ होती है उस स्वर का आभास जो कानों के द्वारा सूक्ष्मतर ढंग से सुना जाता है, उस प्रारंभिक आभास वाले स्वर को इषत् स्पर्श कहते हैं।

जिस प्रकार मन में कहीं से भी विचार आते हैं तदनुसार मींड आती हुई दिखाई दे, लेकिन कहाँ से आ रही है वह सिर्फ मन द्वारा ही जान सकते हैं उसे मनाक् स्पर्श कहते हैं।

आविर्भाव-तिरोभाव

आविर्भाव व तिरोभाव भारतीय संगीत में अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। किसी भी राग के स्वरों को ऐसे क्रम में लगाना, जिससे किसी दूसरे राग की छाया दृष्टिगोचर होने लगे उसे तिरोभाव कहते हैं। परन्तु राग के मार्मिक स्वर पुन: लगाकर राग का आविर्भाव किया जाता है जिससे रागरूप स्पष्ट अपने रूप में आ जाए, आविर्भाव कहलाता है।

आविर्भाव-तिरोभाव बहुत कलापूर्ण है और अनुभवी, राग विज्ञान के दक्ष लोगों द्वारा ही संभव है अन्यथा इसमें राग स्वरूप नष्ट होने की अधिक संभावना रहती है।

घराना

भारतीय संगीत में संगीत शिक्षा एक कंठ से दूसरे कंठ में ज्यों की त्यों उतारी जाती है। जिसे नायकी ढंग की शिक्षा कहते हैं। और जब एक ही गुरू के अनेक शिष्य हो जाते हैं तो उन्हें घराना या परम्परा कहा जाता है। किराना घराना, ग्वालियर घराना, आगरा घराना, जयपुर घराना इत्यादि घराने भारतीय संगीत में प्रसिद्ध हैं।

घराना प्रणाली

 

वादी/संवादी

राग एक माहौल या वातावरण विशेष का नाम है जो रंजक भी है। स्पष्ट रूप से इस वातावरण निर्मिती के केंद्र में वह स्वरावली है जो रागवाचक है इसे रागांग कहते हैं। इस रागांग का केंद्र बिंदु होता है वादी स्वर। इसे राग का जीव या प्राण स्वर भी कहा गया है। राग को राज्य की संज्ञा देकर वादी स्वर को उसका राजा कहा जाता है। स्पष्टतः वादी का प्रयोग अन्य स्वरों की अपेक्षा सर्वाधिक होता है तथा इस पर ठहराव भी अधिक होता है।

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय