काल या खाली
काल का मतलब है खाली या शून्य। काल का शाब्दिक अर्थ है मृत्यु समय। मृत्यु होने पर जैसे मनुष्य संसार को खाली कर देता है उसी भाँति काल है। काल प्राय: ताल चक्र के मध्य में रहता है। कुछ अपवाद छोड़कर जैसे रूपक ताल में खाली 1ली मात्रा पर होती है। खाली के बाद जो ताली आती है वह 1ली, 2री, 3री इस प्रकार इसका क्रम रहता है।
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ताली या ताल
ताल का अर्थ है ताली देना। दूसरे अर्थ में ताल निश्चित समय चक्र का नाम है। जैसे - ताल तीनताल या त्रिताल में ताल 3 हैं इसका अर्थ यह है कि इसके 16 मात्रा के समय चक्र में 3 स्थानों पर ताली देते हैं। 1ली, 5वी तथा 13वीं मात्रा पर ताली दी जाती है। जबकि 9वी मात्रा पर खाली अथवा काल होता है। खाली के बाद जो ताली आती है वह 1ली, 2री, 3री इस प्रकार इसका क्रम रहता है।
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मात्रा
समय का माना हुआ टुकडा या भाग, यह ही ताल की नाड़ी है। सतत् मनन, चिंतन द्वारा इसकी लम्बाई एक सी रखने का प्रयत्न होना चाहिये। क्योंकि, किसी भी ताल की मात्राएँ बराबर होती हैं। अत: इन मात्राओं को एक सा रखना ही ताल, लय में पूर्णता प्राप्त करना है। लय यदि ठीक होगी तो ताल बराबर आयेगा ही। और ताल के शुद्घ होने पर सम, सम पर आयेगी। इस प्रकार इनका एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध है।
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लय
लय किन्ही दो मात्राओं के बीच कि समयावधि को कहते हैं। लय ३ प्रकार की होती हैं - विलंबित-लय, मध्य-लय एवं द्रुत-लय। ताल के निश्चित् समयचक्र में सुनिश्चित् गति अर्थात् लय से किन्चित् भी न चूकते हुए सम पर अचूक आना, ताल और लय की कसौटी है।
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अष्टांग गायकी
गायकी के 8 अंग (अष्टांग गायकी)
वातावरण पर प्रभाव डालने के लिये राग मे गायन, वादन के अविभाज्य 8 अंगों का प्रयोग होना चाहिये। ये 8 अंग या अष्टांग इस प्रकार हैं - स्वर, गीत, ताल और लय, आलाप, तान, मींड, गमक एवं बोलआलाप और बोलतान। उपर्युक्त 8 अंगों के समुचित प्रयोग के द्वारा ही राग को सजाया जाता है।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।