मुशायरा
मुशायरा, (उर्दू: مشاعره) उर्दु भाषा की एक काव्य गोष्ठी है। मुशायरा शब्द हिन्दी में उर्दू से आया है और यह उस महफ़िल (محفل) की व्याख्या करता है जिसमें विभिन्न शायर शिरकत कर अपना अपना काव्य पाठ करते हैं। मुशायरा उत्तर भारत और पाकिस्तान की संस्कृति का अभिन्न अंग है और इसे प्रतिभागियों द्वारा मुक्त आत्म अभिव्यक्ति के एक माध्यम (मंच) के रूप में सराहा जाता है।
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तज़किरा
तज़किरा (फ़ारसी: تذکره) भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान और मध्य एशिया की बहुत-सी भाषाओँ में (जैसे कि उर्दू, फ़ारसी, उज़बेकी, पंजाबी) के साहित्य में किसी लेखक कि जीवनी को दर्शाने वाले उसकी कृतियों के एक संग्रह (यानि कुसुमावली) को कहते हैं। तज़किरे अधिकतर कवियों-शायरों के बनाए जाते हैं, हालांकि गद्य-लेखक का भी तज़किरा बनाना संभव है। कभी-कभी किसी व्यक्ति कि जीवनी या जीवन-सम्बन्धी कहानियों को भी 'तज़किरा' कह दिया जाता है। वैसे तो महत्वपूर्ण शायरों और अन्य व्यक्तियों पर हज़ारों तज़किरे लिखे जा चुके हैं लेकिन समीक्षकों ने आलोचना की है कि इनमें से बहुत से ऊट-पटांग ढंग से भी लिखे गए हैं
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क़सीदा
क़सीदा (फ़ारसी: قصيده) शायरी का वह रूप है जिसमें किसी की प्रशंसा की जाए। कुछ शायर अपने बेहतरीन क़सीदों के लिए विख्यात हुए हैं, जैसे कि मिर्ज़ा सौदा। क़सीदे लिखने का रिवाज अरब संस्कृति से आया है, जहाँ यह इस्लाम के आने से बहुत पूर्व से लिखे जा रहे हैं।
शब्द की जड़ें और उच्चारण
'क़सीदा' में 'क़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'क' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'क़ीमत' और 'क़रीब' के 'क़' से मिलता है। यह एक अरबी-मूल का शब्द है और 'क़सादा' शब्द से लिया गया है जिसका मतलब 'ध्येय या नियत रखना' है।
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निबद्ध- अनिबद्ध गान
निबद्ध- अनिबद्ध गान: व्याख्या, स्वरूप, भेद
निबद्ध – अनिबद्ध की व्याख्या प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक काल तक होती रही है। निबद्ध -अनिबद्ध विशेषण हैं और ‘गान’ संज्ञा है जिसमें ये दोनों विशेषण लगाए जाते हैं। निबद्ध – अनिबद्ध का सामान्य अर्थ ही है ‘बँधा हुआ’ और ‘न बँधा हुआ’, अर्थात् संगीत में जो गान ताल के सहारे चले वह निबद्ध और जो उस गान की पूर्वयोजना का आधार तैयार करे वह अनिबद्ध गान के अन्तर्गत माना जा सकता है। वैसे निबद्ध के साथ आलप्ति और अनिबद्ध के साथ लय का काम किया जाता रहा है।
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ग्राम
भारतीय संगीत के इतिहास में भरत का नाट्यशास्त्र एक महत्त्वपूर्ण सीमाचिह्न है। नाट्यशास्त्र एक व्यापक रचना या ग्रंथ है जो प्रमुख रूप से नाट्यकला के बारे में है लेकिन इसके कुछ अध्याय संगीत के बारे में हैं। इसमें हमें सरगम, रागात्मकता, रूपों और वाद्यों के बारे में जानकारी मिलती है। तत्कालीन समकालिक संगीत ने दो मानक सरगमों की पहचान की। इन्हें ग्राम कहते थे। ‘ग्राम’ शब्द संभवत: किसी समूह या संप्रदाय उदाहरणार्थ एक गाँव के विचार से लिया गया है। यही संभवत: स्वरों की ओर ले जाता है जिन्हें ग्राम कहा जा रहा है। इसका स्थूल रूप से सरगमों के रूप में अनुवाद किया जा सकता है।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।