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राग बिहाग | पंडित विश्व मोहन भट्ट | राजसी मोहन वीणा

This composition of the Drut Gat in Raga Behag played on Ektaal is one of the Best of renditions by Pandit Vishwa Mohan Bhatt. It brings on the sweet nuances of the interplay of two madhyams as Pandit ji interprets Raga Behag. The widely acclaimed creator of the Mohan Veena and Grammy Award winner, Pandit Vishwa Mohan has mesmerized the world with his music that is at once pure, delicate and yet powerful. One of the foremost disciples of Pandit Ravi Shankar, Pandit Vishwa Mohan Bhatt belongs to that elite school of musicians which traces its origin to the great Tansen and even further to his guru, Swami Haridas. The sound of the veena is transcendental and transports you to a zone where romanticism reigns supreme.

एकताल पर बजायी गई राग बेग में द्रुत गत की यह रचना पंडित विश्व मोहन भट्ट की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियों में से एक है। यह पंडित जी राग बेग की व्याख्या के रूप में दो मध्यमों के परस्पर क्रिया की मीठी बारीकियों को सामने लाता है। मोहन वीणा और ग्रैमी पुरस्कार विजेता के व्यापक रूप से प्रशंसित निर्माता, पंडित विश्व मोहन ने अपने संगीत से दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया है जो एक बार शुद्ध, नाजुक और शक्तिशाली है। पंडित रविशंकर के सबसे प्रमुख शिष्यों में से एक, पंडित विश्व मोहन भट्ट संगीतकारों के उस विशिष्ट स्कूल से संबंधित हैं, जिसकी उत्पत्ति महान तानसेन और उससे भी आगे उनके गुरु स्वामी हरिदास से हुई है। वीणा की ध्वनि पारलौकिक है और आपको एक ऐसे क्षेत्र में ले जाती है जहाँ रूमानियत सर्वोच्च है।

संबंधित राग परिचय

बिहाग

बिहाग

राग बिहाग अत्यंत ही प्रचलित और मधुर राग है। प म् ग म यह स्वर समुदाय राग वाचक है। आरोह में मध्यम से उठाव करते समय मध्यम तीव्र का प्रयोग होता है जैसे - म् प ; म् प ध ग म ग; म् प नि सा' नि ध प;। अवरोह में तीव्र मध्यम का प्रयोग मध्यम शुद्ध के साथ किया जाता है जैसे - म् ग म ग। यदि अवरोह सीधा लेना हो तो सिर्फ शुद्ध मध्यम का प्रयोग होगा जैसे सा' नि ध प म ग रे सा

इस राग में निषाद शुद्ध खुला हुआ लगता है अतः इसमें उलाहने जैसे प्रबंध बहुत आकर्षक लगते हैं। साधारणतया आलाप की शुरुवात मन्द्र निषाद से होती है जैसे - ,नि सा ग रे सा ; ,नि सा ,नि म ग रे सा । इसके अवरोह में रिषभ और धैवत पर न्यास नही किया जाता। इनका प्रयोग अल्प होता है जैसे - नि ध प ; म ग रे सा

यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसमें ख्याल, तराने, ध्रुवपद आदि गाए जाते हैं।

 

थाट

राग जाति

आरोह अवरोह
सा ग म प नि सा' - सा' नि धप म् प ग म ग रेसा , सा' नि ध प म् ग म ग रे सा;
वादी स्वर
गंधार/निषाद
संवादी स्वर
गंधार/निषाद