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राग भटियार | पंडित जसराज

 

Feel both the serenity and the energy of dawn with this rendering of Raga Bhatiyar by the legendary Pandit Jasraj from the Raga by Sunrise collection. Blessed with a soulful and sonorous voice, which traverses masterfully over all four and a half octaves, Jasraj’s vocalizing is characterized by a harmonious blend of the classic and opulent elements projecting traditional music as an intense spiritual expression, at once chaste and yet densely coloured. This gives his music a unique and sublime emotional quality, reaching out to the very soul of the listener. Perfect diction, clarity in sur, and gayaki, command in all aspects of laya and rhythm, depth of composition and an unmistakable interplay between notes and words to evoke the desired mood and emotion, are the hallmark of Panditji’s music. This sensitivity, added to the pure classical approach, has given his singing a lyrical quality, the quintessential of the Mewati tradition of singing. You will feel all his mastery over music as you listen to his interpretation of this morning raga. Music Today is the finest online store for the best of Indian music. Its expansive repertoire encompasses everything from Hindustani and Carnatic Classical to Sufi & Ghazal and a superlative array of Devotional Music. Popular genres on Music Today include Film, Remix, Folk and Music for Weddings. This is also the place for the best of Indian New Age Music, besides the latest in Pop. Music Today is from the India Today Group.

सूर्योदय संग्रह द्वारा राग से पौराणिक पंडित जसराज द्वारा राग भटियार के इस प्रतिपादन के साथ शांति और भोर की ऊर्जा दोनों को महसूस करें। एक भावपूर्ण और सुरीली आवाज के साथ धन्य, जो सभी साढ़े चार सप्तक में उत्कृष्ट रूप से चलती है, जसराज के गायन में शास्त्रीय और भव्य तत्वों के सामंजस्यपूर्ण मिश्रण की विशेषता है, जो पारंपरिक संगीत को एक गहन आध्यात्मिक अभिव्यक्ति के रूप में पेश करता है, एक बार शुद्ध और फिर भी घने रंग में। यह उनके संगीत को एक अनूठा और उदात्त भावनात्मक गुण प्रदान करता है, जो श्रोता की आत्मा तक पहुंचता है। पर्फेक्ट डिक्शन, सुर में स्पष्टता और गायकी, लय और लय के सभी पहलुओं में कमान, रचना की गहराई और वांछित मनोदशा और भावना को जगाने के लिए नोट्स और शब्दों के बीच एक अचूक इंटरप्ले, पंडितजी के संगीत की पहचान है। शुद्ध शास्त्रीय दृष्टिकोण में शामिल इस संवेदनशीलता ने उनके गायन को एक गेय गुण दिया है, जो गायन की मेवाती परंपरा का सर्वोत्कृष्ट गुण है। सुबह के राग की उनकी व्याख्या सुनकर आप संगीत पर उनकी सारी महारत महसूस करेंगे।

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संबंधित राग परिचय

भटियार

राग भटियार मारवा ठाट से उत्पन्न राग है। सा ध ; नि प ; ध म ; प ग; यह राग भटियार की राग वाचक स्वर संगतियाँ हैं। यह राग वक्र है और गाने में कठिन है इसीलिए इसे गुरुमुख से ही सीखना ही उचित है। 
इस राग में मांड की कुछ झलक भी दिखाई देती है। नि ध नि प ध म - इन स्वरों से राग मांड झलकता है। आरोह में रिषभ और निषाद दुर्बल हैं। अवरोह में शुद्ध मध्यम एक न्यास का स्वर है। उत्तरांग का प्रारम्भ तीव्र मध्यम से किया जाता है। इस राग से वातावरण में उग्रता का भाव उत्पन्न होता है। इसे तीनों सप्तकों में गाया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग भटियार का रूप दर्शाती हैं -

सा म ; म प ; म ध प म ; प ग ; प ग रे१ सा ; सा ध ; ध नि प ; ध म ; ध प ; ग प ग रे१ सा ; म् ध सा' ; सा' नि रे१' नि ध प ; ध नि ; प ध ; म ; ध प ग रे१ सा ; सा ,नि ,ध सा ,नि रे१ ग म ध प ; ग प ग रे१ सा ;

थाट

आरोह अवरोह
सा रे१ सा ; सा म ; म ध प ; सा ध ; ध नि प म ; प ग ; म् ध सा' - सा' रे१' नि ध प ; ध नि प म ; प ग रे१ सा ;
वादी स्वर
शुद्ध मध्यम/षड्ज
संवादी स्वर
शुद्ध मध्यम/षड्ज

Comments

Pooja Mon, 19/04/2021 - 19:42

राग भटियार का परिचय
वादी: म
संवादी: सा
थाट: MARWA
आरोह: सानिधनिपम पग म॓धसां
अवरोह: सांध धप धनिपम पग म॓गरेसा
पकड़: धपम पग रे॒सा
रागांग: पूर्वांग
जाति: SAMPURN-SAMPURN
समय: रात्रि का तृतीय प्रहर
विशेष: न्यास-सा म प। अल्पत्व-म॓। यह मांड( धमपग) एवं भंखार (पगरे॒सा) का मिश्रण है। दोनो से बचाव के लिये साम,पध का प्रयोग। चलन वक्र। पगरे॒सा से इस राग का स्वरूप व्यक्त होता है।
 

Pooja Mon, 19/04/2021 - 19:48

राग भटियार का परिचय
वादी: म
संवादी: सा
थाट: MARWA
आरोह: सानिधनिपम पग म॓धसां
अवरोह: सांध धप धनिपम पग म॓गरेसा
पकड़: धपम पग रे॒सा
रागांग: पूर्वांग
जाति: SAMPURN-SAMPURN
समय: रात्रि का तृतीय प्रहर
विशेष: न्यास-सा म प। अल्पत्व-म॓। यह मांड( धमपग) एवं भंखार (पगरे॒सा) का मिश्रण है। दोनो से बचाव के लिये साम,पध का प्रयोग। चलन वक्र। पगरे॒सा से इस राग का स्वरूप व्यक्त होता है।
 

Pooja Sat, 24/04/2021 - 14:40

वक्र सम्पूरन जाति में,      मध्यम दोउ सम्हार।
रे ध कोमल म स संवाद, सोहत राग भटियार।।