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प्रवीण संगीताचार्य (VIII Year) - कत्थक (क्रियात्मक पाठ्यक्रम )

प्रवीण संगीताचार्य (VIII Year) - कत्थक (क्रियात्मक पाठ्यक्रम )

1. प्रथम से षष्टम वर्ष के लिए निर्धारित समस्त क्रियात्मक पाठ्यक्रम की विशेष तैयारी। उनमें निर्धारित सभी तालों में नये, कठिन और सुन्दर लयकारी युक्त टुकड़े, आमद, तोड़े परणें चक्करदार परणें, कवित्र, छन्द, गत, गतभाव आदि के साथ नृत्य करने की पूर्ण क्षमता।
2. पद संचालन में पूर्ण तैयारी। विभिन्न लयों को पदाघात क्रिया द्वारा प्रदर्शित करने का विशेष अभ्यास। सिर, नेत्र, पलक, पुतलियाँ, भ्रकुटि नासिका, कपोल, होंठ, दन्त, मुख, चिबुन, ग्रिवा, हस्ता, उर, पार्श्व, जठर, कटि, जंघा, पंजा आदि शारीरिक अंगों, प्रत्यंगों तथा उपांगों की सुन्दर ढंग से संचालित करने का विशेष अभ्यास।
3. नाचने के पूर्व नृत्य के बोलों, तोड़ों, परणों, आदि को हाथ से ताली देकर बोलने (पढ़न्त) का पूर्ण अभ्यास।
4. निम्न 12 तालों में से किन्हीं भी तीन प्रचलित तथा तीन अप्रचलित तालों में नृत्य सम्बन्धी सभी क्रियाओं के साथ सम्पूर्ण कत्थक नृत्य कला प्रदर्शन की पूर्ण तैयारी - रूपक, झपताल, एकताल, आड़ा चारताल, पंचम सवारी (15 मात्रा), हेमवती अथवा मल्लताल (21 मात्रा), अष्ट मंगल ताल (22 मात्रा), मगध ताल (23 मात्रा), कलानिधि ताल (25 मात्रा), पशुपति ताल (26 मात्रा), कुसुमाकर ताल (27 मात्रा), ध्रुवताल (29 मात्रा),
5. सप्तम वर्ष के पाठ्यक्रम में प्रश्नमूलक क्रियात्मक परीक्षा के अनुच्छेद पांच में निर्धारित नृत्य सम्बन्धी सभी क्रियाओं एवं चीजों की पूर्ण तैयारी होनी चाहिए। बिआड़ी एवं महाकुआड़ी आदि तालों की परणें, कमाली चक्करदार परण, कृष्ण परण, दुर्गा परण, विष्णु परण, सरस्वतीपरण, सिंहावलोकन परण, काली परण, गज परण, नवरतों के ऊपर तथा ऋतुओं के ऊपर रचित परणें, रसखानी परण, शतरंजी परण, रास परण, महारास परण, बिवली परण, लंक विजय परण, देव स्तुति, सरस्वती स्तुति आदि।
6. परीक्षाक द्वारा गये अन्य तालों में भी पूर्ण तैयारी, रस और भाव के साथ नृत्य करने की क्षमता।
7. नृत्य सम्बन्धी समस्त मुद्राओं का समुचित प्रदर्शन।
8. गणेश अथवा शंकर में से किसी एक की स्तुति से नृत्य प्रारम्भ करने का अभ्यास।
9. विभिन्न रसों और उनके भावों को प्रदर्शित करने का पूर्ण अभ्यास।
10. नृत्य सम्बन्धी विभिन्न प्रकार के अभिनय का प्रदर्शन।
11. कत्थक नृत्य के विभिन्न घरानों में पारस्परिक भेद तथा हर एक की विशेषताओं का क्रियात्मक रूप से दर्शाना।
12. निम्नलिखित किन्हीं भी दस कथानकों के आधार पर नृत्य प्रदर्शित करने की पूर्ण क्षमता- मारीच वध, मदन दहन, भीलनी भक्ति, लक्ष्मण शक्ति, सुलोचना मेघनाद चरित, राधा.कृष्ण की कथा, अनिरूद्ध.उषा की कथा, गणेश जन्म, शंकर विवाह, भीष्म प्रतिज्ञा, दानवीर कर्ण की कथा, दधीचि तप, धनुष यज्ञ, युधिष्ठिर बनवास, नारद मोह, हनुमान जन्म, वाली वध, कंस वध, निषाद भक्ति, रूक्मिणी हरण, सुभद्रा हरण, पार्वती तप, सावित्री.सत्यवान कथा।
13. निम्न किन्हीं भी चार रागों में ठुमरी, भजन अथवा होरी गाकर भाव प्रदर्शित करने का अभ्यास। पहाड़ी आसा, मांड, जंगला, सावनी, सोरठ, गारा तथा बिहारी।
14. निम्न चार नृत्य शैलियों में से किसी भी एक शैली के नृत्य का अभ्यास - भरत नाट्यम, मणिपुरी नृत्य, कथकली, ओड़िसी नृत्य।
15. निम्न चार प्रकार के नृत्यों में से किसी भी एक नृत्य की तैयारी - रास नृत्य, आधुनिक नृत्य, शान्ति निकेतन नृत्य, उदय शंकर नृत्य -
16. निम्न प्रदेशों में से किसी भी चार प्रदेशों के एक.एक लोकनृत्य की जानकारी तथा उन्हें प्रदर्शित करने का अभ्यास - जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, नागा प्रदेश, मध्य भारत, केरल, मद्रास, आन्ध्र प्रदेश, मेंसूर।
17. पाठ्यक्रम में निर्धारित समस्त तालों के ठेकों की सीधी तथा विभिन्न कठिन लयकारियों में ताली देते हुए बोलना और उन्हें नृत्य द्वारा प्रदर्शित करने का पूर्ण अभ्यास।
18. समस्त निर्धारित तालों में विभिन्न प्रकार की और विभिन्न मात्राओं की तिहाइयों को ताली देकर बोलना तथा नृत्य द्वारा प्रदर्शित करने का अभ्यास।
19. समस्त निर्धारित तालों में विभिन्न लयकारियों में ततकार करने का पूर्ण अभ्यास एवं तत्कार के विभिन्न पल्टे और दरजे भी होने चाहिए।
20. समस्त निर्धारित तालों में उनकी इच्छानुसार किसी भी वाद्य पर विभिन्न रागों में लहरा (नगमा) बजाने का अभ्यास।

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