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सानाई

सुषिर वाद्य फूंक कर बजाये जाते हैं। उनमें आड़बांसी या बांसुरी, सानाई, सिंगा, निशान, शंख, मदनभेरी आदि शामिल हैं। उनसे धुन निकाली जाती है। उन्हें गीतों के साथ बजाया भी जाता है।

शहनाई का है भारत से है पुराना नाता

भारत में संगीत का प्रचलन बहुत पुराना है। शहनाई भारत के सबसे लोकप्रिय वाद्य यंत्रों में से है। शहनाई का प्रयोग शास्त्रीय संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है।

शहनाई एक खोखली नली होती है, जिसका एक सिरा अधिक चौड़ा तथा दूसरा पतला होता है। शहनाई के संकरे सिरे पर विशेष प्रकार की पत्तियों और दलदली घासों से डैने के आकार की बनी 1 सेंटीमीटर लम्बी दो रीड या पत्तियाँ लगी होती है।

झारखण्ड की सानाई है पूजा और विवाह उत्सव की शान

बांसुरी की तरह ही सानाई (शहनाई) भी झारखंड में लोकप्रिय है। यह यहां का मंगल वाद्य भी है। पूजा, विवाह आदि मौकों पर इसे बजाया जाता है। साथ ही छऊ, नटुआ, पइका आदि नृत्यों में भी सानाई बजायी जाती है। दस इंच की सानाई में लकड़ी की नली होती। उसमें छह छेद होते हैं। इसके एक सिरे पर ताड़ के पत्तो की पेंपती होती है और दूसरे सिरे पर कांसे की धातु का गोलाकार मुंह होता है। पेंपती से फूंक मारी जाती है। लकड़ी के छेदों पर उंगलियां थिरकती हैं तो अलग-अलग स्वर निकलते हैं। कांसा के मुंह की वजह से आवाज तेज ओर तीखी होती है, जिसे दूर-दूर तक सुनी जा सकती है।