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Flute

बाँसुरी

The flute is a family of musical instruments in the woodwind group. Unlike woodwind instruments with reeds, a flute is an aerophone or reedless wind instrument that produces its sound from the flow of air across an opening. According to the instrument classification of Hornbostel–Sachs, flutes are categorized as edge-blown aerophones. A musician who plays the flute can be referred to as a flute player, flautist, flutist or, less commonly, fluter or flutenist.

Flutes are the earliest known identifiable musical instruments, as paleolithic examples with hand-bored holes have been found. A number of flutes dating to about 43,000 to 35,000 years ago have been found in the Swabian Jura region of present-day Germany. These flutes demonstrate that a developed musical tradition existed from the earliest period of modern human presence in Europe. While the oldest flutes currently known were found in Europe, Asia too has a long history with the instrument that has continued into the present day. In China, a playable bone flute was discovered, dated approximately 9000 years old. The Americas also had an ancient flute culture, with instruments found in Caral, Peru, dating back 5000 years  and Labrador dating back approximately 7500 years.

Historians have found the bamboo flute has a long history as well, especially in China and India. Flutes have been discovered in historical records and artworks starting in the Zhou dynasty. The oldest written sources reveal the Chinese were using the kuan (a reed instrument) and hsio (or xiao, an end-blown flute, often of bamboo) in the 12th-11th centuries B.C., followed by the chi (or ch'ih) in the 9th century B.C. and the yüeh in the 8th century B.C. Of these, the chi is the oldest documented cross flute or transverse flute, and was made from bamboo.

The cross flute (Sanscrit: vāṃśī) was "the outstanding wind instrument of ancient India," according to Curt Sachs. He said that religious artwork depicting "celestial music" instruments was linked to music with an "aristocratic character." The Indian bamboo cross flute, Bansuri, was sacred to Krishna, and he is depicted in Hindu art with the instrument. In India, the cross flute appeared in reliefs from the 1st century A.D. at Sanchi and Amaravati from the 2nd-4th centuries A.D.

Although there had been flutes in Europe in prehistoric times, in more recent millennia the flute was absent from the continent until its arrival from Asia, by way of "North Africa, Hungary, and Bohemia," according to historian Alexander Buchner. The end-blown flute began to be seen in illustration in the 11th century. Transverse flutes entered Europe through Byzantium and were depicted in Greek art about 800 A.D. The transverse flute had spread into Europe by way of Germany, and was known as the German flute.

Flute History

According to Ardal Powell, flute is a simple instrument found in numerous ancient cultures. According to legends the three birthplaces of flutes are Egypt, Greece, and India. Of these, the transverse flute (side blown) appeared only in ancient India, while the fipple flutes are found in all three. It is likely, states Powell, that the modern Indian bansuri has not changed much since the early medieval era. However, a flute of a somewhat different design is evidenced in ancient China (dizi) which Powell, quoting Curt Sachs' The History of Musical Instruments, suggests may not have originated in China but evolved from a more ancient Central Asian flute design. It is, however, not clear whether there was any connection between the Indian and Chinese varieties.

The early medieval Indian bansuri was, however, influential. Its size, style, bindings, mounts on ends and playing style in medieval Europe artworks has led scholars, such as Liane Ehlich, a flute scholar at the music school in the University of Lucerne, to state that the bansuri (venu) migrated from India into the Byzantium Empire by the 10th century and from there on to medieval Europe where it became popular.

All scales of Bansuris in a set
The flute is discussed as an important musical instrument in the Natya Shastra (~200 BCE to 200 CE), the classic Sanskrit text on music and performance arts. The flute (Venu or Vamsa) is mentioned in many Hindu texts on music and singing, as complementary to the human sound and Veena (vaani-veena-venu). The flute is however not called bansuri in the ancient, and is referred to by other names such as nadi, tunava in the Rigveda (1500–1200 BCE) and other Vedic texts of Hinduism, or as venu in post-Vedic textsThe flute is also mentioned in various Upanishads and Yoga texts.

According to Bruno Nettl, a music historian and ethnomusicologist, the ancient surviving sculptures and paintings in the temples and archaeological sites of India predominantly show transverse flutes being played horizontally (with a downward tilt). However, beginning in the 15th century, vertical end blowing style are commonly represented. This change in the relevance and style of bansuri is likely, states Nettl, because of the arrival of Islamic rule era on the Indian subcontinent and the West Asian influence on North Indian music.


बाँसुरी वाद्य क्या है ?
भरतमुनि द्वारा संकलित नाट्यशास्‍त्र में ध्‍वनि की उत्‍पत्ति के आधार पर संगीत वाद्यों को चार मुख्‍य वर्गों में विभाजित किया गया है।

​बाँसुरी वाद्य सुषिर वाद्य परिवार का एक सदस्य है ।जिसका अर्थ है बाँस से निर्मित एक सुषिर वाद्य । 

आज उतर भारतीय संगीत में बांस से निर्मित बांसुरी एक अति

महत्वपूर्ण वाद्य यंत्र है और यह वाद्य यंत्र हिंदू धर्म से बड़ा गहरा रिश्ता

भी रखता है,क्यूँकि भगवान कृष्ण की कल्पना बाँसुरी के बिना करना असंभव है,लेकिन कृष्ण के बाद, भारत में बाँसुरी सदियों से खोयी खोयी सी रही और मौन हो गयी। बांसुरी केवल लोक संगीत और गाय चराने वाले चरवाहो तक ही सीमित रह गयी थी।

परंतु उन्ननीसवी शताब्दी में एक ऐसे व्यक्ति ने जन्म लिया जिसने बांसुरी को लोक वाद्य तक सीमित न रखकर, उसका उपयोग शास्त्रीय संगीत के अनुरूप किया और भारतीय संगीत में एक नवीन वाद्य यंत्र "बांसुरी" स्थान दिया। और वो महान व्यक्ति थे पंडित पन्ना लाल घोष।

दुनिया भर से बांसुरियों का एक संकलन बांसुरी काष्ठ वाद्य परिवार का एक संगीत उपकरण है। नरकट वाले काष्ठ वाद्य उपकरणों के विपरीत, बांसुरी एक एरोफोन या बिना नरकट वाला वायु उपकरण है जो एक छिद्र के पार हवा के प्रवाह से ध्वनि उत्पन्न करता है। होर्नबोस्टल-सैश्स के उपकरण वर्गीकरण के अनुसार, बांसुरी को तीव्र-आघात एरोफोन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। बांसुरीवादक को एक फ्लूट प्लेयर, एक फ्लाउटिस्ट, एक फ्लूटिस्ट, या कभी कभी एक फ्लूटर के रूप में संदर्भित किया जाता है। बांसुरी पूर्वकालीन ज्ञात संगीत उपकरणों में से एक है। करीब 40,000 से 35,000 साल पहले की तिथि की कई बांसुरियां जर्मनी के स्वाबियन अल्ब क्षेत्र में पाई गई हैं। यह बांसुरियां दर्शाती हैं कि यूरोप में एक विकसित संगीत परंपरा आधुनिक मानव की उपस्थिति के प्रारंभिक काल से ही अस्तित्व में है। .

झारखण्ड में प्रचलित वाद्यों का एक प्रकार है सुषिर वाद्य जिसे फूंक कर बजाया जाता है। उनमें आड़बांसी या बाँसुरी, सानाई, सिंगा, निशान, शंख, मदनभेरी आदि शामिल हैं। उनसे धुन निकाली जाती है। उन्हें गीतों के साथ बजाया भी जाता है।

झारखण्ड में लोकप्रिय है बाँसुरी

सुषिर वाद्यों में बाँसुरी या आड़बांसी झारखंड में सबसे अधिक लोकप्रिय है। डोंगी बांस से सबसे अच्छी बाँसुरी बनायी जाती है। यह बांस पतला और मजबूत होता है। बाँसुरी में कुल सात छेद होते हैं। सबसे उपर वाले छेद में फूंक भरी जाती है।

कैसे बनती है बाँसुरी ?

बाँसुरी अत्यंत लोकप्रिय सुषिर वाद्य यंत्र माना जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक बांस से बनायी जाती है, इसलिये लोग उसे बांस बाँसुरी भी कहते हैं।

बाँसुरी बनाने की प्रक्रिया काफ़ी कठिन नहीं है, सब से पहले बाँसुरी के अंदर के गांठों को हटाया जाता है, फिर उस के शरीर पर कुल सात छेद खोदे जाते हैं। सब से पहला छेद मुंह से फूंकने के लिये छोड़ा जाता है, बाक़ी छेद अलग अलग आवाज़ निकले का काम देते हैं।

बाँसुरी की अभिव्यक्त शक्ति अत्यंत विविधतापूर्ण है, उस से लम्बे, ऊंचे, चंचल, तेज़ व भारी प्रकारों के सूक्ष्म भाविक मधुर संगीत बजाया जाता है। लेकिन इतना ही नहीं, वह विभिन्न प्राकृतिक आवाज़ों की नक़ल करने में निपुण है, मिसाल के लिये उससे नाना प्रकार के पक्षियों की आवाज़ की हू-ब-हू नक्ल की जा सकती है।

बाँसुरी बजाने की तकनीक

बाँसुरी की बजाने की तकनीक कलाएं समृद्ध ही नहीं, उस की किस्में भी विविधतापूर्ण हैं, जैसे मोटी लम्बी बाँसुरी, पतली नाटी बाँसुरी, सात छेदों वाली बाँसुरी और ग्यारह छेदों वाली बाँसुरी आदि देखने को मिलते हैं और उस की बजाने की शैली भी भिन्न रूपों में पायी जाती है। बाँसुरी, वंसी, वेणु, वंशिका आदि कई सुंदर नामो से सुसज्जित है। प्राचीनकाल में लोक संगीत का प्रमुख वाद्य था बाँसुरी।

बाँसुरी पर 12 स्वरों की स्थापना 

याद रहे ,संगीत में सा और प अचल होते हैं जो अपना स्थान कभी नहीं छोड़ते या जो चलायमान नहीं है,अन्य बचे हुए सुर चल स्वर कहलाते है जो अपने स्थान से थोड़ा नीचा या ऊँचा भी हो सकते है।

शुद्ध स्वर - सा रे ग म प ध नी 

विकृत स्वर  - कोमल (अपने स्थान से नीचे) - रे ग ध नी 
                तीव्र (अपने स्थान से ऊपर ) - म 

चिन्ह 

कोमल स्वर के लिए स्वर कि नीचे रेखा जैसे रे ग ध नी 

तीव्र स्वर केवल म है उसका चिन्ह है म कि ऊपर सीधी रेखा जैसे - म