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मदनभेरी

झारखण्ड के निवासियों के लिए नृत्य, गीत और संगीत प्राण हैं। सब में कई प्रकार के वाद्यों का प्रयोग होता है। विभिन्न प्रकार के गीत-संगीत, नृत्य, उत्सव, पर्व तथा त्योहार आदि पर ये वाद्य बजाए जाते हैं। ये वाद्य यंत्र झारखण्ड की संस्कृति की प्रमुख पहचान हैं।

सुषिर वाद्य है मदनभेरी

सुषिर वाद्य फूंक कर बजाये जाते हैं। उनमें आड़बांसी या बांसुरी, सानाई, सिंगा, निशान, शंख, मदनभेरी आदि शामिल हैं। उनसे धुन निकाली जाती है। उन्हें गीतों के साथ बजाया भी जाता है।

विवाह समारोह या त्योहारों में बजता है मदनभेरी

यह एक सहायक वाद्य है। इसे ढोल, सानाई, बांसुरी आदि के साथ बजाया जाता है। छऊ नृत्य, विवाह समारोह आदि में भी इसे बजाया जाता है। इसमें लकड़ी की सीधी नली होती है, जिसके आगे पीतल का मुंह रहता है। करीब चार फीट लम्बे इस वाद्य में कोई छेद नहीं होता। इसलिए फूंक मारने पर इससे एक ही स्वर निकलता है। इसके अतिरिक्त निशान, शंख आदि भी झारखंड में बजते हैं। शंख मंगल वाद्य है। पहले उसका उपयोग संदेश देने के लिए भी होता था।