प्रवीण संगीताचार्य (VII Year) - गायन (मौखिक पाठ्यक्रम )
1. निम्नलिखित 15 रागों का विस्तृत अध्ययन - शुद्ध सारंग, मारू बिहाग, नन्द, हंसध्वनि, मलूहा केदार, जोग, मद्यमाद सांरग, नारायणी, अहीर भैरव, पूरिया कल्याण, आभोगी कान्हड़ा, सूर मल्हार, चन्द्रकौस, गुजरी तोड़ी, मधुवन्ती।
2. परीक्षार्थियों के लिए उपर्युक्त सभी रागों में विलम्बित तथा दु्रत खयालों को विस्तृत रूप से गाने की पूर्ण तैयारी। इनमें से कुछ रागों में धु्रपद, धमार, तराना, चतुरंग आदि कुशलता पूर्वक गाने का अभ्यास। अपनी पसंद से कुछ रागों में ठुमरी, भजन या भावगीत सुदंर ढंग से गाने की तैयारी।
प्रवीण संगीताचार्य (VIII Year) - गायन (क्रयात्मक संगीत पाठ्यक्रम ) द्वितीय प्रश्नपत्र
क्रयात्मक संगीत सम्बन्धी द्वितीय प्रश्न पत्र - क्रियात्मक संगीत सम्बन्धी द्वितीय प्रश्न पत्र - क्रियात्मक संगीत सम्बन्धी
1. प्रथम से सप्तम वर्षां तक के पाठ्यक्रमों के सभी क्रियात्मक संगीत सम्बन्धी शास्त्र का विस्तृत और आलोचनात्मक अध्ययन।
2. प्रबन्ध शास्त्र के तत्व एवं नियम। आधुनिक प्रबन्ध, जैसे - धु्रपद, धमार, खयाल, ठुमरी, टप्पा, दादरा, तराना, तिरवट, चतुरंग आदि की रचना करने का ज्ञान।
3. विभिन्न प्रकार की गतों जैसे मसीतखानी, रजाखानी, अमीरखानी, फिरोजखानी की नई बन्दिशों की रचना करने का ज्ञान।
4. भारतीय संगीत की वर्तमान स्थिति तथा इसका भविष्य।
ढिम्सा नृत्य
ढिम्सा नृत्य आंध्र प्रदेश का पारम्परिक लोक नृत्य है। यह नृत्य प्रदेश के विशाखापट्नम ज़िले में प्रचलित है। ढिम्सा एक जनजातीय नृत्य है, जो विवाह के दिन एवं शिकार आदि के अवसरों पर होता है। पूर्णिमा के चार दिन पूर्व एवं इतने ही दिन बाद यह नृत्य किया जाता है। स्त्री और पुरुषों द्वारा किये जाने वाले इस नृत्य में नर्तकों का उल्लास देखते ही बनता है। गायन एवं ढोल वादन की थाप पर होने वाला यह नृत्य सामान्यत: रात्रि में होता है।
- Read more about ढिम्सा नृत्य
- Log in to post comments
- 257 views
कौसी कान्ह्डा
यह राग दो विभिन्न अंगों द्वारा गाया जाता है - मालकौंस अंग और बागेश्री अंग। लेकिन मालकौंस अंग ही ज्यादा प्रचलन में है। अतः यहाँ उसी को दर्शाया गया है। इस राग में मालकौंस और कान्हडा अंग का मिश्रण झलकता है। मीण्ड, खटके और गमक इनके प्रयोग से इस राग का माधुर्य श्रोताओं पर अपना अलग ही प्रभाव डालता है।
आलाप और तानों का अंत ग१ म रे सा (कान्हडा अंग) अथवा ग१ म ग१ सा (मालकौन्स अंग) से किया जाता है। आरोह में रिषभ का प्रयोग सा रे ग१ म रे सा अथवा रे ग१ म सा इस तरह से किया जाता है।
- Read more about कौसी कान्ह्डा
- Log in to post comments
- 2535 views
खमाज
रात्रि के रागों में श्रंगार रस के दो रूप, विप्रलंभ तथा उत्तान श्रंगार से ओत प्रोत है राग खमाज। चंचल प्रक्रुति की श्रंगार रस से सजी हुई यह ठुमरी की रगिनी है। इस राग में गंभीरता की कमी के कारण इसमें ख्याल नही गाये जाते।
इस राग में आरोह में धैवत का अपेक्षाक्रुत कम प्रयोग किया जाता है जैसे - ग म प ध प प सा' नि१ ध प; ग म प नि सा'। अवरोह में धैवत से अधिकतर सीधे मध्यम पर आते हैं और पंचम को वक्र रूप से प्रयोग करते हैं जैसे - नि१ ध म प ध म ग। अवरोह में रिषभ को कण स्वर के रूप में लेते हैं जैसे - म ग रेसा।
- Read more about खमाज
- 1 comment
- Log in to post comments
- 10997 views
राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।