രാഹുൽ ദേവ് ബർമൻ
राहुल देव बर्मन हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। इन्हें पंचम या 'पंचमदा' नाम से भी पुकारा जाता था। मशहूर संगीतकार सचिन देव बर्मन व उनकी पत्नी मीरा की ये इकलौती संतान थे। अपनी अद्वितीय सांगीतिक प्रतिभा के कारण इन्हें विश्व के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में एक माना जाता है। माना जाता है कि इनकी शैली का आज भी कई संगीतकार अनुकरण करते हैं। पंचमदा ने अपनी संगीतबद्ध की हुई 18 फिल्मों में आवाज़ भी दी। भूत बंगला (1965 ) और प्यार का मौसम (1969) में इन्होने अभिनय भी किया।
आरम्भिक जीवन :
राहुल कोलकाता में जन्मे थे। कहा जाता है बचपन में जब ये रोते थे तो पंचम सुर की ध्वनि सुनाई देती थी, जिसके चलते इन्हें पंचम कह कर पुकारा गया। कुछ लोगों के मुताबिक अभिनेता अशोक कुमार ने जब पंचम को छोटी उम्र में रोते हुए सुना तो कहा कि 'ये पंचम में रोता है' तब से उन्हें पंचम कहा जाने लगा। इन्होने अपनी शुरूआती शिक्षा बालीगंज गवर्नमेंट हाई स्कूल कोलकत्ता से ली। बाद में उस्ताद अली अकबर खान से सरोद भी सीखा।
इनके पिता सचिन देव बर्मन, जो खुद हिन्दी सिनेमा के बड़े संगीतकार थे, ने बचपन से ही आर डी वर्मन को संगीत की दांव-पेंच सिखाना शुरु कर दिया था। राहुल देव बर्मन ने शुरुआती दौर की शिक्षा बालीगुंगे सरकारी हाई स्कूल, कोलकाता से प्राप्त की। केवल नौ बरस की उम्र में उन्होंने अपना पहला संगीत ”ऐ मेरी टोपी पलट के” को दिया, जिसे फिल्म “फ़ंटूश” में उनके पिता ने इस्तेमाल किया। छोटी सी उम्र में पंचम दा ने “सर जो तेरा चकराये …” की धुन तैयार कर लिया जिसे गुरुदत्त की फ़िल्म “प्यासा” में ले लिया गया।
एस.डी. बर्मन हमेशा आर. डी. बर्मन को अपने साथ रखते थे। इस वजह से आर. डी. बर्मन को लोकगीतों, वाद्यों और आर्केस्ट्रा की समझ बहुत कम उम्र में हो गई थी। जब एस.डी. ‘आराधना’ का संगीत तैयार कर रहे थे, तब काफ़ी बीमार थे। आर. डी. बर्मन ने कुशलता से उनका काम संभाला और इस फ़िल्म की अधिकतर धुनें उन्होंने ही तैयार की। आर. डी. बर्मन को बड़ी सफलता मिली ‘अमर प्रेम’ से। ‘चिंगारी कोई भड़के’ और ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ जैसे यादगार गीत देकर उन्होंने साबित किया कि वे भी प्रतिभाशाली हैं
आर. डी. बर्मन के पिता एस. डी. बर्मन (सचिन देव बर्मन) भी जाने माने संगीतकार थे और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उनके सहायक के रूप में की थी। आर. डी. बर्मन प्रयोगवादी संगीतकार के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने पश्चिमी संगीत को मिलाकर अनेक नई धुनें तैयार की थीं। उन्होंने अपने करियर के दौरान लगभग 300 फ़िल्मों में संगीत दिया।
एस. डी. बर्मन की वजह से आर. डी. बर्मन को फ़िल्म जगत के सभी लोग जानते थे। पंचम दा को माउथआर्गन बजाने का बेहद शौक़ था। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल उस समय ‘दोस्ती’ फ़िल्म में संगीत दे रहे थे। उन्हें माउथआर्गन बजाने वाले की जरूरत थी। वे चाहते थे कि पंचम यह काम करें, लेकिन उनसे कैसे कहें क्योंकि वे एक प्रसिद्ध संगीतकार के बेटे थे। जब यह बात पंचम को पता चली तो वे फौरन राजी हो गए। महमूद से पंचम की अच्छी दोस्ती थी। महमूद ने पंचम से वादा किया था कि वे स्वतंत्र संगीतकार के रूप में उन्हें ज़रूर अवसर देंगे। ‘छोटे नवाब’ के ज़रिये महमूद ने अपना वादा निभाया।
आर डी को क़रीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि शुरुआत से ही उनमें विलक्षण प्रतिभा थी. उन्होंने अपने पिता एसडी बर्मन (सचिनदेव बर्मन) के कई गानों को रिकॉर्ड किया लेकिन क्रेडिट नहीं लिया. आर डी बर्मन की पत्नी और मशहूर गायिका आशा भोंसले बताती हैं, "मैंने एक बार पंचम से पूछा कि तुम अपना नाम क्यों नहीं लेते. तो वो बोले, कोई बात नहीं. पिताजी के लिए ही तो काम कर रहा हूं. मेरा नाम ना भी आए तो क्या फर्क पड़ता है.
चुरा लिया है तुमने जो दिल को, नजर नहीं चुराना सनम.. जैसे अपनी मधुर संगीत लहरियों से श्रोताओं का दिल चुराने वाले महान संगीतकार राहुल देव बर्मन को हिंदी फिल्म संगीत की दुनिया में सर्वाधिक प्रयोगवादी एवं प्रतिभाशाली संगीतकार के रूप में आज भी याद किया जाता है. संगीत के साथ प्रयोग करने में माहिर आरडी बर्मन पूरब और पश्चिम के संगीत का मिश्रण करके एक नई धुन तैयार करते थे. हालांकि इसके लिए उनकी काफी आलोचना भी हुआ करती थी. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने संगीत की दुनिया में अपनी एक अहम जगह बनाई.
महज नौ बरस की उम्र में उन्होंने अपना पहला संगीत ‘ऐ मेरी टोपी पलट के आ’ को दिया, जिसे फिल्म ‘फंटूश’ में उनके पिता ने इस्तेमाल किया. छोटी सी उम्र में पंचम दा ने ‘सर जो तेरा चकराये’ की धुन तैयार कर ली जिसे गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ में ले लिया गया. ‘प्यासा’ फिल्म का यह गाना आज भी लोग पसंद करते हैं. इसके बाद वे लगातार 33 सालों तक फिल्मों में सक्रिय रहे. इस दौरान पंचम दा ने ‘रात कली एक ख्वाब में आई’ [बुड्ढ़ा मिल गया], ‘पिया तू अब तो आजा’ [कारवा], ‘दम मारो दम’ [हरे रामा हरे कृष्णा] और ‘रैना बीती जाए’ [अमर प्रेम] जैसे संगीत के नायाब नगीने बॉलीवुड को दिए. आर डी वर्मन ने भारतीय सिनेमा को हर तरह का और हर दौर का संगीत दिया था. इसीलिए आज भी उनका संगीत जवान है, गाने अमर हैं.
आरडी ने उस्ताद अली अकबर खान (सरोद) और सामता प्रसाद (तबला) से प्रशिक्षण लिया। वे संगीतकार सलिल चौधरी को भी अपना गुरु मानते थे। पिता के सहायक के रूप में भी उन्होंने काम किया है। राहुल देव बर्मन को सबसे पहले निरंजन नामक फिल्मकार ने 'राज' के लिए 1959 में साइन किया था। आरडी ने दो गाने रिकॉर्ड भी किए। पहला गाना आशा भोसले और गीता दत्त ने तथा दूसरा शमशाद बेगम ने गाया था। यह फिल्म बाद में बंद हो गई। आरडी को पहला अवसर मेहमूद ने दिया जिनसे आरडी की अच्छी दोस्ती थी।
मेहमूद ने पंचम से वादा किया था कि वे स्वतंत्र संगीतकार के रूप में उन्हें जरूर अवसर देंगे। 'छोटे नवाब'(1961)के जरिये मेहमूद ने अपना वादा निभाया। अपनी पहली फिल्म में 'घर आजा घिर आए बदरा' गीत आरडी, लता मंगेशकर से गवाना चाहते थे और लता इसके लिए राजी हो गईं। आरडी चाहते थे कि लता उनके घर आकर रिहर्सल करें। लता धर्मसंकट में फँस गईं क्योंकि उस समय उनका कुछ कारणों से आरडी के पिता एसडी बर्मन से विवाद चल रहा था।
लता उनके घर नहीं जाना चाहती थीं। लता ने आरडी के सामने शर्त रखी कि वे जरूर आएँगी, लेकिन घर के अंदर पैर नहीं रखेंगी। मजबूरन आरडी अपने घर के आगे की सीढि़यों पर हारमोनियम बजाते थे और लता गीत गाती थीं। पूरी रिहर्सल उन्होंने ऐसे ही की। आरडी बर्मन को पहला बड़ा मौका विजय आनंद निर्देशित फिल्म 'तीसरी मंजिल' से मिला। फिल्म के हीरो शम्मी कपूर और निर्माता नासिर हुसैन नहीं चाहते थे कि आरडी संगीत दे। निर्देशक के जोर देने पर उन्होंने तीन-चार धुनें सुनीं और सहमति दे दी। फिल्म का संगीत सुपरहिट रहा और आरडी के पैर बॉलीवुड में जम गए।
कहा तो यह भी जाता है कि किशोर कुमार का फिल्म ‘अराधना’ का सुपरहिट गाना ‘मेरे सपनों की रानी’ असल में पंचम दा की ही धुन थी, हालांकि फिल्म का संगीत उनके पिता एसडी बर्मन ने दिया था. 1970 के दशक में पंचम दा खूब हिट हुए. किशोर कुमार की आवाज, राजेश खन्ना की एक्टिंग और पंचम दा के म्यूजिक ने इस दशक में खूब वाहवाही बटोरी. 1970 में कटी पतंग के सुपरहिट संगीत से यह जोड़ी शुरू हुई और फिर रुकने का नाम नहीं लिया.
70 में पंचम दा ने देव आनंद की फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ के लिए संगीत दिया और आशा भोंसले ने ‘दम मारो दम’ गाना गाया, जो जबरदस्त हिट रहा. यह गाना फिल्म पर भारी न पड़ जाए इसी डर से देव आनंद ने पूरा गाना फिल्म में नहीं रखा. इसके बाद 1971 में भी आरडी ने कई जबरदस्त हिट गाने दिए. 1972 में ‘सीता और गीता', ‘रामपुर का लक्ष्मण’, ‘बोम्बे टू गोवा’, ‘अपना देश’, ‘परिचय’ जैसी फिल्मों में हिट संगीत दिया.
इसके बाद 1973 में ‘यादों की बारात’, 1974 में ‘आप की कसम’, 1975 में ‘शोले’ और ‘आंधी’, 1978 में ‘कसमें वादे’, 1978 में ‘घर’, 1979 में ‘गोलमाल’, 1980 में ‘खूबसूरत’, 1981 में ‘सनम तेरी कसम’ जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला, ‘रॉकी’, ‘मासूम’, ‘सत्ते पे सत्ता’, ‘लव स्टोरी’ जैसी फिल्मों में भी पंचम दा ने अपने संगीत का जलवा बिखेरा.
मृत्यु :
काफी लंबे समय बाद 90 के दशक की शुरुआत में उन्हें विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म '1942 अ लव स्टोरी' में संगीत देने का मौका मिला. फिल्म के सारे गाने सुपरहिट साबित हुए लेकिन अफ़सोस कि इसकी कामयाबी देखने के लिए ख़ुद आर डी बर्मन ज़िंदा नहीं थे. वो अपनी 'आख़िरी सफलता' को देखने से पहले ही दुनिया से विदा हो चुके थे.
चार जनवरी 1994 को 55 साल की आयु में उनका निधन हो गया था. फिल्म के गीत लिखने वाले जावेद अख़्तर कहते हैं, "पंचम एक ऐसा शख़्स था, जिसने अपने आपको संगीत का बादशाह साबित किया. फिर उससे वो ताज छिन भी गया लेकिन उसने '1942' में शानदार संगीत देकर फिर से साबित कर दिया कि साहब संगीत का शहंशाह तो वही है. अफसोस कि उस बादशाह की जान तख्त पर दोबारा बैठने से पहले ही निकल गई."
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