कांडरा नृत्य
कांडरा नृत्य में नाचने वाला मठा बिलोने की कड़ैनियाँ, जो घेर-घेर घूमती है, के समान घूम-घूमकर नृत्य करता है। नृत्य करने वाले की वेशभूषा बड़ी मनोहर होती है। वह सफ़ेद रंग का बागा[3] पहनता है, सिर पर पाग बाँधता है और पाग में हरे पंख की कलगी लगी रहती है तथा पैरों में घुंघरू बाँधा जाता है। कांडरा नृत्य में 'बिरहा' गीत गाये जाते हैं।
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काठी नृत्य
काठी देवी के कारण ही इसे 'काठी नृत्य' के नाम से जाना जाता है, जबकि काठियावाड़ को इस नृत्य का जन्म स्थल माना जाता है। माता के आराधक 'भगत' नाम से पुकारे जाते हैं।
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कर्मा नृत्य
छत्तीसगढ़ अंचल के आदिवासी समाज का प्रचलित लोक नृत्य है। भादों मास की एकादशी को उपवास के पश्चात करमवृक्ष की शाखा को घर के आंगन या चौगान में रोपित किया जाता है। दूसरे दिन कुल देवता को नवान्न समर्पित करने के बाद ही उसका उपभोग शुरू होता है। कर्मा नृत्य नई फ़सल आने की खुशी में किया जाता है।
संस्कृति का प्रतीक
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कहरही (कहरुआ नृत्य)
'कंहारों' का पुस्तैनी पेशा पालकी ढोना था। बाद में ये मिटटी बर्तन भी बनाने लगे। इस काम में उल्लास के लिए इन्होने नाचना -गाना भी अनिवार्य समझा। अतः चाक की गति के संग-संग गीत भी गुनगुनाने लगे। 'संघाती' घड़े पर ताल देने लगे और ठुमकने भी लगे। ओरी-ओरियानी खड़ी होकर महिलाएं गीत दुहराने लगीं। इस प्रकार नृत्य, गीत, वाद्य का समवेत समन्वय हो गया और उससे एक विधा का जन्म हो गया जिसे 'कंहरही' कहते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में जहाँ इनकी बस्ती है, ये लोग अपने आनंद और आल्हाद के लिए, श्रम -परिहार के लिए, मधुर धुन, लय, ताल में नाचने-गाने लगे।
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Website + Android App
अगर आप किसी भी तरीके का व्यापार करते हैं या कोई काम करते हैं तो आज के समय में कम से कम एक वेबसाइट आपके पास होनी ही चाहिए, जिस प्रकार सभी के पास एक फोन नंबर और एक ईमेल आईडी होती है उसी प्रकार सभी के पास एक वेबसाइट होनी चाहिए आने वाले समय में वेबसाइट का महत्व बढ़ता ही चला जाएगा |
अगर आपके पास वेबसाइट है तो एक ANDROID APP जरूर रखें क्योंकि जब आप किसी को वेबसाइट के बारे में बताते हैं तो उसे वेबसाइट पर जाने के लिए बार-बार गूगल क्रोम में वेबसाइट की स्पेलिंग टाइप करनी पड़ती है अगर उसके मोबाइल में आपका ऐप होगा तो वह एप्लीकेशन को ओपन करके तुरंत आप से जुड़ सकता है
राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।