बंगाल भैरव

अहिर भैरव राग है, भैरव थाट सुहाये।
रे नि कोमल प्रात समय, मस संवाद लुभाये।।

राग-बंगाल भैरव राग को भैरव थाट जन्य माना गया है। निषाद वर्ज्य होने से इसकी जाति षाडव है। धैवत और ऋषभ कोमल प्रयोग किये जाते हैं, जो क्रमशः वादी सम्वादी है। गायन समय प्रातःकाल है।
 

आरोह – सा रे ग म प ध सां।
अवरोह– सां ध प म ग म रे सा।
थाट – भैरव थाट
जाति – षाडव-षाडव
गायन समय – प्रातःकाल का प्रथम प्रहर है
वादी – संवादी – ध  – रे
 

राग के अन्य नाम

कथकली नृत्य

कथकली का रंगमंच ज़मीन से ऊपर उठा हुआ एक चौकोर तख्त होता है। इसे 'रंगवेदी' या 'कलियरंगु' कहते हैं। कथकली की प्रस्तुति रात में होने के कारण प्रकाश के लिए भद्रदीप (आट्टविळक्कु) जलाया जाता है। कथकली के प्रारंभ में कतिपय आचार - अनुष्ठान किये जाते हैं। वे हैं - केलिकोट्टु, अरंगुकेलि, तोडयम्, वंदनश्लोक, पुरप्पाड, मंजुतल (मेलप्पदम)। मंजुतर के पश्चात् नाट्य प्रस्तुति होती है और पद्य पढकर कथा का अभिनय किया जाता है। धनाशि नाम के अनुष्ठान के साथ कथकली का समापन होता है।

कथक नृत्य

कथक न्रुत्य उत्तर प्रदेश क शास्त्रिय न्रुत्य है। कथक कहे सो कथा केह्लाये। कथक शब्द क अर्थ कथा को थिरकते हुए कहना है। प्रछिन काल मे कथक को कुशिलव के नाम से जाना जाता था।

कथक राजस्थान और उत्तर भारत की नृत्य शैली है। यह बहुत प्राचीन शैली है क्योंकि महाभारत में भी कथक का वर्णन है। मध्य काल में इसका सम्बन्ध कृष्ण कथा और नृत्य से था। मुसलमानों के काल में यह दरबार में भी किया जाने लगा। वर्तमान समय में बिरजू महाराज इसके बड़े व्याख्याता रहे हैं। हिन्दी फिल्मों में अधिकांश नृत्य इसी शैली पर आधारित होते हैं।

ओट्टनतुल्ललू नृत्य

ओट्टनतुल्ललू नृत्य भारत में प्रचलित कुछ प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैलियों में से एक है।

कुंचन नाम्बियार द्वारा विकसित ओट्टनतुल्ललू नृत्य एक एकाकी नृत्य शैली है, जिसका प्रचलन केरल राज्य में है।
सरल मलयालम भाषा में वार्तालाप शैली में इस नृत्य के द्वारा सामाजिक अवस्था, वर्ग भेद, धनी-गरीब का भेद, मनमौजीपन आदि को दर्शाया जाता है।
ओट्टनतुल्ललू नृत्य जनसाधारण में काफ़ी लोकप्रिय है।

अष्टापडी अट्टम

अष्टापडी अट्टम केरल के शास्त्रीय नृत्यों की ही एक शैली है। यह जयदेव के 'गीत गोविंद' पर आधारित प्रसिद्व नृत्य शैली है।

अष्टापडी अट्टम शैली प्रसिद्व गेय खेल का एक नाटकीय रूपांतरण है।
इस शैली में कुल मिलाकर पांच चरित्र होते हैं- श्रीकृष्ण, राधा और तीन अन्य महिलाएँ।
यह शैली अब प्राय: पूर्ण रूप से लगभग विलुप्त हो चुकी है।
इसमें चेन्दा, मदलमख इलाथलम और चेंगला आदि यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय