धोबी-नृत्य
धोबी-नृत्य: धोबी जाति द्वारा मृदंग, रणसिंगा, झांझ, डेढ़ताल, घुँघरू, घंटी बजाकर नाचा जाने वाला यह नृत्य जिस उत्सव में नहीं होता, उस उत्सव को अधूरा माना जाता है। . सर पर पगड़ी, कमर में फेंटा, पावों में घुँघरू, हातों में करताल के साथ कलाकारों के बीच काठ का सजा घोडा ठुमुक- ठुमुक नाचने लगता है तो गायक - नर्तक भी उसी के साथ झूम उठता है। .टेरी, गीत, चुटकुले के रंग, साज के संग यह एक अनोखा नृत्य है।
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नटुआ नृत्य
'खटिकों' की तरह चर्मकार जाति के लोग 'नटुआ' नाच करते हैं। पहली फसल कट जाने पर फाल्गुन -चैत की चांदनी रात में यह द्वार-द्वार जाकर नाचते-गाते और बदले में कुछ अनाज या पैसा पाते थे। ये लोग बरी-भात और पूड़ी पर नाचते थे। अब अपनी बस्ती में वृत्त - अर्धवृत्त बनाकर घुमते हुए नाचते और हास्य - व्यंग में अभिनय करते हैं। रंग - बिरंगी गुदड़ी पहने चूना कालिख लगाये प्रहसक अश्लील् चुटकुले बोलता है। नर्तक बीच में नाचता है। एक टेढ़ी छड़ी अनिवार्य होती है। ढोल, छड, घंटी, झांझ, छल्ला, पावों में पैरी, कमर में कौड़ी बांधे नर्तक हास्य का माहौल सृजित कर देते हैं।
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नवरता नृत्य
स्थानीय त्यौहारों पर बुंदेलखंड में विभिन्न प्रकार के लोक नृत्य किये जाते हैं, जिनमें बधाई नृत्य, कानड़ा नृत्य, बरेदी नृत्य, ढिमरयाई नृत्य, नौरता नृत्य, दुलदुल घोड़ी नृत्य लाकौर या रास बधावा नृत्य, बहू उतराई का नृत्य और राई लोक नृत्य प्रमुख हैं। इन नृत्यों में से बधाई नृत्य और राई नृत्य ऐसे हैं जो सालभर चलते रहते हैं।
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नाटी नृत्य
नाटी एक समृद्ध नृत्य परंपरा है। यह मेलों तथा त्योहारों पर किया जाने वाला सबसे लोकप्रिय व मशहूर नृत्य है। नाटी नृत्य हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, सिरमौर, शिमला इत्यादि जनपदों में किया जाता है।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।