डमरू

डमरु या डुगडुगी एक छोटा संगीत वाद्य यन्त्र होता है। इसमें एक-दूसरे से जुड़े हुए दो छोटे शंकुनुमा हिस्से होते हैं जिनके चौड़े मुखों पर चमड़ा या ख़ाल कसकर तनी हुई होती है। डमरू के तंग बिचौले भाग में एक रस्सी बंधी होती है जिसके दूसरे अन्त पर एक पत्थर या कांसे का डला या भारी चमड़े का टुकड़ा बंधा होता है। हाथ एक-फिर-दूसरी तरफ़ हिलाने पर यह डला पहले एक मुख की ख़ाल पर प्रहार करता है और फिर उलटकर दूसरे मुख पर, जिस से 'डुग-डुग' की आवाज़ उत्पन्न होती है। तेज़ी से हाथ हिलाने पर इस 'डुग-डुग' की गति और ध्वनि-शक्ति काफ़ी बढ़ाई जा सकती है। .

सिंगा

सिंगा वाद्य यंत्र

भैंस की सींग से सिंगा बनाया जाता है। उसके नुकीले सिरे से फूंक मारी जाती है। दूसरा सिरा चौड़े मुंह का होता है और वह आगे की ओर मुड़ा रहता है। छऊ नाच में इसका उपयोग किया जाता है। शिकार के वक्त पशुओं को खदेड़ने के लिए इसे बजाया जाता है। पशुओं पर नियंत्रण के लिए चरवाहा लोग भी सिंगा बजाते हैं।

काठी

काठी भी घन वाद्य है। इसमें 'कुडची' की लकड़ी के दो टुकड़े होते हैं। वे जब आपस में टकराते हैं तो मीठी आवाज निकलती है।

केंदरी

क्या है केंदरी वाद्य यंत्र

संथालों का यह प्रिय वाद्य है। इसे झारखंडी वायलिन भी कहा जाता है। कछुए की खाल या नारियल के खोल से इसका तुम्बा बनाया जाता है। तुम्बा से बांस या लकड़ी का दंड जुड़ा रहता है। उस पर तीन तार लगे रहते हैं। घोड़े की पूंछ के बाल से गज बनाया जाता है। गज और दंड के तारों की रगड़ से स्वर निकलते हैं।

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय