जूनियर डिप्लोमा (I Year) - कत्थक (क्रियात्मक पाठ्यक्रम )

1. तीनताल में 4 सरल तत्कार हस्तकों सहित ठाह दुगुन और चौगुन की लय में, एक थाट, एक
सलामी, एक आमद, 5 साधारण तोड़े तथा 2 तिहाईयाँ।
2. दादरा और कहरवा तालों में दो आधुनिक छोटे नृत्य।
3. तीनताल, झपताल, दादरा और कहरवा के ठेके को हाथ से ताली देकर ठाह तथा दुगुन में बोलने
का अभ्यास।
4. तत्कार तथा तोड़ों को हाथ से ताली देकर ठाह तथा दुगुन में बोलना।

शुभ दीपावली...

असत्य पर सत्य, कदाचार पर सदाचार, अंधकार पर प्रकाश की विजय के महापर्व प्रकाशोत्सव दीपावली की सभी देशवासियों को अनन्त शुभकामनाएं।

कामना करता हूँ कि प्रभु श्री राम के आशीर्वाद से आप सभी का जीवन सुख, शांति, सद्भाव व समृद्धि के उजास से आलोकित हो।

शुभ दीपावली..

भारतीय संगीत में वाद्यों का महत्व

संगीत   में   वाद्यों   का   विशेष   महत्त्व   है।   इसके   बिना   गायन ,  वादन ,  नर्तन   का   सौन्दर्य   अधखिली   कली   के   सदृश्य   होता   हे।   गायन ,  वादन ,  नृत्य ,  वाद्यों   की   संगति   पाकर   पूर्ण   विकसित   सुमन   की   भांति   खिल   उठते   हैं।   केवल   गायन ,  वादन   तथा   नृत्य   में   ही   नहीं   बल्कि   नाटकों   में   भी   वाद्यों   का   विशेष   महत्त्व   होता   है।   गायन   की   भांति   वादन   भी   नाट्य   क्षेत्र   में   आवश्यक   है।   भरत   मुनि   ने   कहा   है।

‘‘ वाद्येशु   यत्नः   प्रथमं   कार्यः   वदन्ति   शैया   चं   नाट्यम   वदन्ति   वाद्यम्।

कुंडी

यह आदिवासी जनजातियों का प्रिय वाद्ययंत्र है, जो पाली, सिरोही एवं मेवाड़ के आदिवासी क्षेत्रों में बजाया जाता है। मिट्टी के छोटे पात्र के उपरी भाग पर बकरे की खाल मढ़ी रहती है। इसका ऊपरी भाग चार-छः इंच तक होता है। कुंडी के ऊपरी भाग पर एक रस्सी या चमड़े की पट्टी लगी रहती है, जिसे वादक गले में डालकर खड़ा होकर बजाता है। वादन के लिए लकड़ी के दो छोटे गुटकों का प्रयोग किया जाता है। आदिवासी नृत्यों के साथ इसका वादन होता है।

बम

बम, कमट, टामक यह एक प्रकार का विशाल नगाड़ा है। इसका आकार लोहे की बड़ी कड़ाही जैसा होता है, जो लोहे की पटियों को जोड़कर बनाया जाता है। इसका ऊपरी भाग भैंस के चमड़े से मढ़ा जाता है। खाल को चमड़े की तांतों से खींचकर पेंदे में लगी गोल गिड़गिड़ी (लोहे का गोल घेरा) से कसा जाता है। अवनद्ध वाद्यों में यह सबसे बड़ा व भारी होता है। प्राचीन काल में यह रणक्षेत्र एवं दुर्ग की प्राचीर पर बजाया जाता था। इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले लिए लकड़ी के छोटी गाड़ी (गाडूलिए) का उपयोग किया जाता है। इसे बजाने के लिए वादक लकड़ी के दो डंडो का प्रयोग करते हैं। 

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय