शास्त्रीय विधाएं कोई कड़वी दवा नहीं
भारतीय शास्त्रीय संगीत आणि नृत्य की तुलना नेहमीच बॉलीवुड संगीत होती. लोकांच्या मनात एक आहे की शास्त्रीय नृत्य आणि संगीत कठीण आहे. परलिन बर्लिन आईं भरतनाट्यम नर्तकी अंजना राजन होते इत्तेफाक नहीं रखतीं ।
अंजना राजन कहती आहेत, शास्त्रीय संगीत या नृत्य कुठलीही कड़वी दवा थोड़ी ही है पीकर हम ठीक होना है। हे एक मनोरंजक आहे. बिलकुल फिल्मी गीते आणि डांस की ही. भारत की कलाक्षेत्र अकादमी से भरतट्यम की शिक्षण लेतं अंजना राजन मानती आहेत की जसे की आम्हाला कोणतीही भाषा शिकना पडती आहे वैसे ही नृत्य की भाषा भी शिकनी पडती आहे.
वह कहती आहेत, 'आपण निबंध लिहिते आहेत कविता लिहिते आहेत त्यासाठी तुम्हाला भाषा की गरज आहे ठीक वैसे ही नृत्य प्रस्तुत करण्यासाठी तुम्हाला भावांची गरज आहे. जब तक आप कोई भाषा नहीं सीखेंगे आप यह बात नहीं कर सकते।
अंजना राजन आणि जीएस राजन एक कलाकार दंपती आहेत जो हाल हीमध्ये जर्मनीची राजधानी बर्लिन आली आहे. ते अनेक कार्यक्रमांव्यतिरिक्त भारतामध्ये दीर्घकाळापर्यंत जर्मन लोकांच्या भरतनाट्यमबद्दल माहिती दिली. जीएस राजन बांसुरी वादक आहेत अंजना राजन भरतनाट्यम करत आहेत. दोन्ही ने ही संगीत आणि नृत्य के वाचन चेन्नई कलाक्षेत्र संस्था आहे.
नवीन भाषा आणि शास्त्रीय नृत्य : कसे नवीन मूळ पण शास्त्रीय नृत्याकडे लक्ष वेधले जाते, त्याला उत्तरे देतात अंजना कहती, 'भले ही बालके मुख्य गोष्ट बॉलीवूडवर आहे, की त्यांना आणि संगीत नृत्यात मजा आहे. . आणि आम्हाला हे पाहण्याची गरज आहे की मुलांना सिखाने की सुरुवात केली नाही तर सरळ सरळ डांस से की तो त्यांना मजा आली आहे. मग ते त्यांच्या खेळासाठी जातात आणि ते तुमचा आनंद घेतात.'
थिएटर सें आणि मुलांसोबत अनेक नृत्यं सादर करणारी अंजना रन कहती, 'मैंने कभी नहीं देखा कि जब हम बच्चों के साथ किसी शास्त्रीय नृत्य को बनाते हैं, कम्पोज तो वे कभी नहीं कहते हैं कि हम तो एक फिल्मी गानों पर है। नाचना इच्छुक आहेत. वे नवीन कॉम्पोझिशन का आनंद घेतात, ते शिकतात. लोक के दिमाग में एक प्रभाव बनला आहे कि शास्त्रीय आहे, मनोरंजन नाही. एक भावना पसरवली आहे जो चुकीचा आहे. जब हम बात करते हैं तो डांस ही करतो. ताल का आधार आहे. आणि लय जीवन के हर पहलू में आहे. रेलगाड़ी चलती है, दिल धड़कता है सब लय में है. सूरज उगता है डूबता है, यह लय है। यहीं से संगीत पैदा होता है।'
कोणीही अहं नाही : प्रायः माना जाता है कि पती पत्नी एक ही क्षेत्र से बोलतो तो त्यांचा अहं का टकराव होता. हा प्रश्न पर काफी देर तक खिलखिलातीं अंजना कहती कि नाही. तो सांगतो, 'दो लोग के बीच मतभेद सामान्य बात है, पण कला के बडबड, संगीत या नृत्यात आमच्या मध्यभागी अहं येत नाहीत. हम एक दुसरी बात को अच्छे से समझते हैं।'
त्यांच्या पत्नी से जताते होत जीएस राजन म्हणतात, 'हम कलाक्षेत्र से शिकलेले कलाकार आहेत. जो आम्ही शिकत आहोत त्यांची किंमत ही वेगळी आहे. अहं का टकराव संभवत नाही है।'
संगीत की ओर खिंचते : भारतातील बांसुरी किती लोक बजाना शिकत आहेत याबद्दल जीएस राजन म्हणतात, 'बहुत बच्चे शिकत आहेत. लढे आणि अनेक लढवय्ये. निश्चित ही पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जैसे मशहूर लोग कारण होते हैं।'
जीएस राजन आणि अंजना राजन दोघेही ही गोष्ट मानतात की शास्त्रीय संगीत खूप शांतता देते. जीएस राजन म्हणतात, 'बॉलिवुड संगीत खूप छान आहे, आंखों आणि कांसांना सुकून देता येतं, पण शास्त्रीय संगीत आणि नृत्य का आंखों, मन आणि दिमाग को सुकून देता. कदाचित लोक हे समजावून लागतील कि तणाव दूर होण्याचा हा चांगला मार्ग आहे. रईस की प्रयत्न केला म्हणून बगैर लोक संगीत से जुड़ले, मन की शांति के लिए भी।'
रिपोर्ट : आभा मोंढे
संपादन : वी कुमार
भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की तुलना हमेशा बॉलीवुड संगीत से होती रही है। लोगों के मन में एक धारणा है कि शास्त्रीय नृत्य और संगीत कठिन है। पर बर्लिन आईं भरतनाट्यम नर्तकी अंजना राजन इससे इत्तेफाक नहीं रखतीं।
अंजना राजन कहती हैं, शास्त्रीय संगीत या नृत्य कोई कड़वी दवा थोड़ी ही है जिसे पीकर हमें ठीक होना है। यह एक मनोरंजन है। बिलकुल फिल्मी गीतों और डांस की तरह ही। भारत की कलाक्षेत्र अकादमी से भरतनाट्यम की शिक्षा ले चुकीं अंजना राजन मानती हैं कि जैसे हमें कोई भाषा सीखना पड़ती है वैसे ही नृत्य की भाषा भी सीखनी पड़ती है।
वह कहती हैं, 'जैसे आप निबंध लिखते हैं, कविता लिखते हैं इसके लिए आपको भाषा की जरूरत है ठीक वैसे ही नृत्य प्रस्तुत करने के लिए आपको मुद्राओं की जरूरत है, भावों की जरूरत है। जब तक आप इस भाषा को नहीं सीखेंगे आप इसमें बात नहीं कर सकते।'
अंजना राजन और जीएस राजन एक कलाकार दंपती हैं जो हाल ही में जर्मनी की राजधानी बर्लिन आए। उन्होंने कई कार्यक्रमों के अलावा भारत में लंबे समय तक रहे जर्मन लोगों को भरतनाट्यम के बारे में जानकारी दी। जीएस राजन बांसुरी वादक हैं जबकि अंजना राजन भरतनाट्यम करती हैं। दोनों ने ही संगीत और नृत्य की पढ़ाई चेन्नई के कलाक्षेत्र संस्थान से की है।
नई पीढ़ी और शास्त्रीय नृत्य : कैसे नई पीढ़ी को शास्त्रीय नृत्य की ओर आकर्षित किया जा सकता है, इसका जवाब देते हुए अंजना कहती हैं, 'भले ही बच्चे बॉलीवुड पर थिरकते हों, लेकिन मुख्य बात है कि उन्हें नृत्य और संगीत में मजा आता है। और हमें यही देखने की जरूरत है कि बच्चों को सिखाने की शुरुआत थ्योरी से नहीं बल्कि सीधे डांस से की जाए तो उन्हें इसमें मजा आता है। फिर यह उनके लिए खेल हो जाता है और वे अपने आप इसका आनंद लेने लगते हैं।'
थिएटर से जुड़ीं और बच्चों के साथ कई नृत्य प्रोजेक्ट करने वाली अंजना रंजन कहती हैं, 'मैंने कभी नहीं देखा कि जब हम बच्चों के साथ किसी शास्त्रीय नृत्य को बनाते हैं, कम्पोज करते हैं तो वे कभी नहीं कहते कि हम तो सिर्फ फिल्मी गानों पर नाचना चाहते हैं। वे नए कॉम्पोजिशन का आनंद लेते हैं, उसे सीखते हैं। लोगों के दिमाग में एक इम्प्रेशन बन गया है कि शास्त्रीय मुश्किल है, मनोरंजन नहीं होता। एक भावना फैल गई है जो गलत है। जब हम बात करते हैं तो डांस ही करते हैं। ताल का आधार लय है। और लय जीवन के हर पहलू में है। रेलगाड़ी चलती है, दिल धड़कता है सब लय में है। सूरज उगता है डूबता है, यह लय है। यहीं से संगीत पैदा होता है।'
कोई अहं नहीं : अक्सर माना जाता है कि पति पत्नी एक ही क्षेत्र से जुड़े हों तो उनके अहं का टकराव होता है। इस सवाल पर काफी देर तक खिलखिलातीं अंजना कहती हैं कि ऐसा नहीं है। वह बताती हैं, 'दो व्यक्तियों के बीच मतभेद होना सामान्य बात है, लेकिन कला के मुद्दे पर, संगीत या नृत्य में हमारे बीच कभी अहं नहीं आया। हम एक दूसरे की बात को अच्छे से समझते हैं।'
अपनी पत्नी से सहमति जताते हुए जीएस राजन कहते हैं, 'हम कलाक्षेत्र से सीखे हुए कलाकार हैं। जो हमने वहां सीखे हैं वे मूल्य ही अलग हैं। अहं का टकराव संभव ही नहीं है।'
संगीत की ओर खिंचते : भारत में बांसुरी कितने लोग बजाना सीख रहे हैं इस बारे में जीएस राजन कहते हैं, 'बहुत बच्चे सीख रहे हैं। लड़के और कई लड़कियां भी। निश्चित ही पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जैसे मशहूर लोग इसका कारण हैं।'
जीएस राजन और अंजना राजन दोनों ही इस बात को मानते हैं कि शास्त्रीय संगीत बहुत शांति देता है। जीएस राजन कहते हैं, 'बॉलीवुड संगीत बहुत अच्छा है, आंखों को और कानों को सुकून देता है, लेकिन शास्त्रीय संगीत और नृत्य आंखों, कानों, मन और दिमाग को भी सुकून देता है। शायद लोग यह समझने लगे हैं कि तनाव से दूर होने का यह अच्छा तरीका है। इसलिए रईस होने की कोशिश किए बगैर लोग संगीत से जुड़ रहे हैं, मन की शांति के लिए भी।'
रिपोर्ट : आभा मोंढे
संपादन : वी कुमार
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