अहीर भैरव
अहीर भैरव हा हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीतातील एक राग आहे.
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थाट | |||
प्रकार | हिंदुस्तानी | ||
जाती | |||
स्वर | |||
आरोह | सा रे' ग म प ध नि' सां | ||
अवरोह | सां नि' ध प म ग रे' SS रे' सा | ||
वादी स्वर | म | ||
संवादी स्वर | सा | ||
पकड | |||
गायन समय | प्रातःकाल | ||
गायन ऋतू | |||
समप्रकृतिक राग | |||
उदाहरण | तिर्थ विठ्ठल क्षेत्र विठ्ठल देव विठ्ठल देवपूजा विठ्ठल भिमसेन जोशी |
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इतर वैशिष्ट्ये | (वरील चौकटीत हलंत शब्द (पाय मोडलेला) हा कोमल स्वर दर्शवितो. तसेच, स्वरानंतर असलेले ' हे चिन्ह कोमल स्वर दर्शविते. तार सप्तकातील स्वरांवर टिंबे दिलेली आहेत ) |
अहीर भैरव रागावर आधारलेली काही चित्रपट गीते आणि चिजा
- अलबेला सजन आयो रे (चीज, गायक - उस्ताद शुजात खान, उस्ताद सुलतान खान व उस्ताद रशीद खान)
- अपने जीवन की उलझन को (चित्रपट - उलझन; )
- आनंद भोरा ए (चीज, गायक - अजय चक्रवर्ती)
- कैसे मनालूॅं रे, बुझावूॅं अब कैसे तोहे रे (चीज - कुमार गंधर्व)
- चलो मान जाए घर अपने (चित्रपट - स्वामी विवेकानंद; गायक - येसू दास)
- जाग रे बंदे (चीज - विलंबित, गायक - उस्ताद अमीर खान)
- जिंदगी को संवारना होगा (चित्रपट – आलाप; )
- धीरे धीरे सुबह हुई, जाग उठी जिंदगी (चित्रपट - हैसियत; संगीत - बप्पी लाहिरी; गायक - येसू दास)
- पिया परवीन (चीज, द्रुत, गायक - उस्ताद अमीर खान)
- पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई (चित्रपट - तेरी सूरत मेरी ऑंखें; )
- बनरा मोरा; गावो गुनी (चीज, गायिका - मालिनी राजूरकर)
- मन आनंद आनंद छायो (चित्रपट - विजेता; )
- मेरी गलियों से लोगों की यारी बढ़ गयी (चित्रपट -धर्मात्मा; )
- मेरी वीणा तुम बिन रोये (चित्रपट- देख कबीरा रोया; संगीत - मदनमोहन; गायिका - लता मंगेशकर)
- मैं तो कब से तेरी शरण में हूॅं (चित्रपट – राम नगरी; )
- मोहन मधुर आज मुरली बजाई (चीज, गायक - पं.जसराज)
- राम का गुण गान करिये
- राम तेरी गंगा मैली हो गई (चित्रपट - राम तेरी गंगा मैली; )
- वक्त करता जो वफा आप हमारे होते (चित्रपट - दिलने पुकारा; )
- वंदना करो, अर्चना करो। (चीज, गायक - जसराज)
- सोलह बरस की बाली उमर को सलाम (चित्रपट -एक दूजे के लिए; )
- हमें कोई ग़म नही था, ग़मे-आशिक़ी से पहले (गझल, गायक - मेहदी हसन)
राग अहीर भैरव का दिन के रागों में एक विशेष स्थान है। यह राग पूर्वांग में राग भैरव के समान है और उत्तरांग में राग काफी के समान है। राग के पूर्वांग का चलन, राग भैरव के समान ही होता है जिसमें रिषभ पर आंदोलन किया जाता है यथा ग म प ग म रे१ रे१ सा। इसमें मध्यम और कोमल रिषभ की संगती मधुर होती है, जिसे बार बार लिया जाता है। मध्यम से कोमल रिषभ पर आते हुए गंधार को कण के रूप में लगाया जाता है जैसे म (ग) रे१ सा। इसके आरोह में कभी-कभी पंचम को लांघकर, मध्यम से धैवत पर जाते हैं जैसे - ग म ध ध प म। धैवत, निषाद और रिषभ की संगती इस राग की राग वाचक संगती है।
यह उत्तरांग प्रधान राग है। भक्ति और करुण रस से भरपूर राग अहीर भैरव की प्रकृति गंभीर है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। ख्याल, तराने आदि गाने के लिए ये राग उपयुक्त है। यह स्वर संगतियाँ अहीर भैरव राग का रूप दर्शाती हैं -
सा ,नि१ ,ध ,नि१ रे१ रे१ सा ; रे१ ग म ; ग म प ध प म ; रे१ रे१ सा ; ग म प ध प म ; प ध ; प ध नि१ ; ध नि१ ; ध ध प म ; प म ग म प ; ग म प ग म ; ग रे१ सा ; ,नि१ ,ध ,नि१ ; रे१ रे१ सा;
थाट
राग जाति
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