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का अविनाशी

का अविनाशी

का अविनाशी

काशी में मोक्षदात्री. इसीलिए काशी का राजा और गुरू का उपयोग. इस नगरी का महाश्मशान में भी आनन्द. ,, -

की जहां जहां के राग राग अन्तर कर पाना बड़ा मुश्किल. काशी में सामान्य को ऐसे आत्मसात् करते. कजरी विशिष्ट और-मन सभी. हैं कि का, किन्तु है, जो बायें. स्वयं में दुर्बल है कि से चूर-चूर और. ,,, ,,, , वह झोपड़ी से, उल्लास से लेकर धार 'असि' लेकर 'वरुणा' तक, में छायी-.

; - इस प्रकार दोनों के.

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काशी में संगीत की

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काशी की अपनी एक विशेषता. विशेषता में संगीत एक महत्त्वपूर्ण कड़ी. भगवान शिव के में. ,, भाव व्यक्ति के अंदर तरंगो. ,,, '' कथा के अनुसार ये वीणा बजाने. 14 16 चैतन्य महाप्रभु का-कीर्तन और महाप्रभु वल्भाचार्य का. इसी काशी में तानसेन के वंशज की शोभा. काशी में संगीत साधकों की साधना बहुत पहले से ही. इसी के फलस्वरूप काशी संगीत की जन्मभूमि और कई साधकों. में धार्मिक सांस्कृतिक ने.

-सांस्कृतिक -

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,, विभिन्न सभी का निर्माण विभिन्न-. साथ ही काशी एवं रईसों द्वारा भी सांस्कृतिक. वातावरण आदान-सत्संग, सत्संग-भजन. साथ ही आस-परम्परा, लोक-जीवन (धार्मिक,,) रहा है, जिससे .

काशी के बगल के क्षेत्र जौनपुर जो मध्यकाल में शर्की. के शासकों में संगीत के प्रति. यहाँ संगीतज्ञों ने कव्वाली को धु्रपद शैली से मिलाकर छोटा. ऐसा उल्लेख है के शासकों ने काशी. ब्रिटिश काल में और. लोगों के साथ कलाकारों-का आदान-प्रदान. काल की पुनरूज्जीवन रूचि.

काशी में शास्त्रीय संगीत

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() इनके पदच्युत होने के पश्चात् काशी वंश. यहाँ महाराजों ने अपने दरबार में अनेक संगीतकारों तथा नर्तकियों को. (1739-1770 0) (1770-81 ई 0) इनके समय में बुढ़वा मंगल का उत्कर्ष पर. राजा महीपनारायण (1781-1795 ई 0) के दरबार है जीवनसाह,. (1795-1835 ई 0) -मनोहर () जीवन, के, बासत, धु्रपदिये, धु्रपदिये निर्मल, निर्मल,, जी, ,, () , (पं 0 -प्रयाग) (1795-1814 ई 0)

(1835-89 0), इनके दरबार में आधुनिक हिन्दी के साहित्यकारों और कवियों का. दरबार संगीतकारों से भरा हुआ. , प्यारे, बासत खाँ अंतिम मुगल ने. महाराजा के, ,,, (1889-1932 ई 0)

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काशी का संगीत घराना, वादन और नृत्यशैली. धार्मिक, सामाजिक सुधार आंदोलनो के एवं महात्माओं. वैष्णव सम्प्रदाय, भोग, भोग, भोग के एक कवि नंददास जी काशी. काशी में शास्त्रीय महत्वपूर्ण करने श्रेय श्रेय 16 वीं शताब्दी राधा पं पं पं पं पं दिलाराम पं पं. 108 , ये धु्रपद के विशेषज्ञ. 0 सदारंग अदारंग के समय में. 0 , 0 हरि () ये दोनों भाई अपने काल में पूरे भारत के.

के द्वारा पियरी घराना स्थापित. ऊँचाइयें पर. '' , उन्होंने सर्वप्रथम स्वरलिपि पद्धति से तबले की ताल विज्ञान और. 0 के संगीत के प्रसिद्ध-मनोहर शिवा-पशुपति. - भाइयों ने गायन वादन में अनेक. - आपने कोलकत्ता में अनेक शिष्य.

0 -प्रयाग -

0 0 0 से आये उस के अली खाँ व. मिठाई लाल जी का गाना सुनकर से लगा. (वीणा) 0 () (सितार) 0 शिष्यों में श्री, श्री बेनी माधव, श्री दाऊ व पं 0 श्री चन्द्र.

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काशी के ठुमरी सम्राट जाने वाले जगदीप मिश्र जी. ये ठुमरी के सिद्धहस्थ कलाकार. बड़े रामदास जी का