मलुहा केदार
राग मलुहा केदार का परिचय
वादी: म
संवादी: सा
थाट: BILAWAL
आरोह: सा रेसा प़म़प़ऩि सारेसा मपधप निसां
अवरोह: सानिधप म गिरे गमप गमरे निसारेसा
पकड़: रेसा प़म़ प़ऩि सारेसा
रागांग: पूर्वांग
जाति: SAMPURN-SAMPURN
समय: रात्रि का द्वितीय प्रहर
विशेष: अल्पत्व - म॓। श्याम(प़ऩि सारेसा), कामोद(गमप गमरे सा) और बिलावल(मग मरे सा) का मिश्रण। उभय मध्यम
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गांधारी
राग गांधारी का परिचय
वादी: प
संवादी: सा
थाट: ASAWARI
आरोह: सारेमपध॒नि॒सां
अवरोह: सांनि॒ध॒प ध॒मप ग॒रे॒सा
पकड़: ध॒प ध॒मप ग॒रे॒सा
रागांग: उत्तरांग
जाति: SHADAV-SAMPURN
समय: दिन का प्रथम प्रहर
विशेष: आरोह में जौनपुरी तथा अवरोह में विलासखानी तोड़ी की छाया पड़ती है। अवरोह में दोनो ऋषभ के प्रयोग से छाया निवारण होता है।
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आनंद भैरव
भैरव के ही मेल में, धैवत शुद्ध संयोग।
सम सम्वाद प्रात समय, बिलावल भैरव योग।।
राग-आनंद भैरव राग बिलावल थाट जन्य माना गया है। इसमें ऋषभ कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध माने जाते हैं। गायन समय प्रातःकाल है। वादी म और संवादी सा है। जाति संपूर्ण है।
आरोह– सा रे ग म प ध नि सां।
अवरोह– सां नि ध प, म ग म रे – रे सा।
पकड़– ग म रे – रे सा, नि ध प सा।
विशेषता:-
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Tabla Maestro Pandit Chatur Lal
Pandit Chatur Lal (16 April 1926 - 14 October 1965) was the first internationally acclaimed Indian percussionist. Pandit Chatur Lalji, Pandit Ravi Shankarji, and Ustad Ali Akbar Khan Sahib were the first Indian musicians to introduce Indian classical music to the West in mid 50s, when they were invited to perform all over Europe and US for Modern of Museum Art, Rockefeller Centre and Omnibus through Lord Yehudi Menuhin, the great violinist.
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वायलिन वादक डा. एन राजम
डॉ एन राजम (जन्म 16 अप्रैल 1938) एक भारतीय वायलिन वादक हैं जो हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का प्रदर्शन करते हैं। वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संगीत की प्राध्यापिका रहीं, अंतत: विभागाध्यक्ष और विश्वविद्यालय के कला संकाय के डीन बनीं।
उन्हें 2012 के संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप से सम्मानित किया गया, संगीत नाटक अकादमी, भारत की राष्ट्रीय संगीत अकादमी, नृत्य और नाटक द्वारा प्रदत्त प्रदर्शन कला में सर्वोच्च सम्मान।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।