संगीत की दुनिया का अनूठा राग है ‘तानसेन समारोह’
‘तानसेन समारोह’ अपने आप में एक अनूठी मिसाल पेश करता है। इस समारोह को लेकर कई रोचक तथ्यों के बारे में शायद आपने नहीं सुना होगा इसलिये हम आपको बताते हैं कि तानसेन समारोह क्या है, इसकी शुरूआत किसने की, यह क्यों मनाया जाता है और इसकी खास बात क्या है ? इस तरह के विभिन्न सवाल आपके मन में निश्चित रूप से उठ रहे होंगे, जिसके जवाब आपको विस्तारपूर्वक नीचे दिये गए हैं।
कौन थे तानसेन ?
तानसेन एक प्राचीन भारतीय संगीतकार, गायक और संगीत रचयिता थे जो अपनी अद्भुत संगीत रचनाओं के लिये जाने जाते हैं और साथ ही वे वाद्य संगीत की रचनाओं के लिये भी काफी प्रसिद्ध हैं। तानसेन, सम्राट अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। अकबर ने ही उन्हें मिया का शीर्षक दिया था। तानसेन के पिता मुकुंद मिश्रा एक समृद्ध कवि और लोकप्रिय संगीतकार थे। जन्म के समय तानसेन का नाम रामतनु था।
जानिये ‘तानसेन समारोह’ के बारे में
‘तानसेन समारोह’ का आयोजन अकबर के दरबार में रहने वाले सुर सम्राट तानसेन को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से किया जाता है। तानसेन की स्मृति में इस समारोह का आयोजन पिछले कई वर्षों से किया जा रहा है। यह समारोह हर साल दिसंबर के महीने में मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के “बेहत” नामक गांव में तानसेन समाधि स्थल पर परंपरागत ढंग से मनाया जाता है। मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा इस समारोह का आयोजन कराया जाता है। इस चार दिवसीय संगीत समारोह में दुनिया भर के कलाकार और संगीत प्रेमी एकत्रित होकर महान भारतीय संगीतकार उस्ताद तानसेन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
तानसेन के दरबार में किन-किन कलाकारों ने प्रस्तुति दी
‘तानसेन समारोह’ में शास्त्रीय संगीत की दुनिया के महान कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दर्ज कराई है जिनमें भीमसेन जोशी, शहनाई के उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, सरोद के महारथी उस्ताद अमजद अली खां और छन्नूलाल मिश्र जैसे कई और महान कलाकारों ने तानसेन के दरबार में उपस्थिति देते हुए संगीत को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाने में अपनी अहम भूमिका निभाई है।
क्या है इस इमली के पेड़ का राज
“बेहत” गांव में एक प्राचीन इमली का पेड़ है, कहते हैं कि तानसेन इसी पेड़ के नीचे बैठकर संगीत का रियाज़ किया करते थे। 1940 के दशक में प्रख्यात गायक के एल सहगल तानसेन के मकबरे के पास लगे इमली के पेड़ की पत्तियां खाने खासतौर पर यहां आया करते थे। कहते हैं कि तानसेन की आवाज़ में सुरीलापन इस पेड़ की पत्तियों को खाने से आता था। इस बात की जानकारी मिलते ही संगीत जगत के कई बड़े फनकार भी यहां आने लगे जिन्होंने इसी इमली के पेड़ की पत्तियां खाकर संगीत जगत में अपना नाम कमाया है।
सुरों के सम्राट तानसेन को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 24 दिसंबर से 29 दिसंबर 2018 तक तानसेन समारोह का आयोजन किया जा रहा है। तानसेन जैसी हस्तियों की बदौलत ही आज संगीत को एक नई पहचान मिली है जिन्होंने दुनियाभर में मध्य प्रदेश और भारत का नाम रोशन किया है।
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