विदुषी डॉ. अलका देव मारुलकर द्वारा प्रस्तुत राग भूप और रागेश्री
संबंधित राग परिचय
रागेश्री
यह बहुत ही मधुर राग है। संगीत शास्त्रों के अनुसार राग रागेश्री में निषाद शुद्ध और निषाद कोमल का प्रयोग बताया गया है। परन्तु वर्तमान में इस राग में सिर्फ कोमल निषाद ही उपयोग में लाया जाता है। और शुद्ध निषाद का प्रयोग बहुत ही अल्प रूप में दिखाई देता है।
अवरोह में सा' नि१ ध म ग रे सा लिया जा सकता है। लेकिन वर्तमान में सा' नि१ ध म ग म रे सा यह ज्यादा प्रचलन में हैं। इस राग में मध्यम प्रभावी स्वर है और धैवत-गंधार की संगती राग वाचक है जैसे - म ग ; म ध ग ; ग म नि१ ध ; ग म रे सा। कभी कभी आरोह में गंधार लगाते समय रिषभ का उपयोग कण स्वर के रूप में किया जाता है जैसे - सा ग (रे)ग म रे सा।
जब इस राग में कभी कभी पंचम स्वर का उपयोग किया जाता है तब उसे राग पंचम-रागेश्री कहा जाता है जैसे - ग म प म ; ग म रे सा ; सा' नि१ ध म ग म प म ; ग म रे सा। परन्तु यह प्रकार आजकल प्रचलन में कम है। यह स्वर संगतियाँ राग रागेश्री का रूप दर्शाती हैं -
सा ,नि१ ,ध ,नि१ सा ; ग म रे ,नि१ सा ; ग म ध म ; ध ग म ; ग म ध नि१ सा' ; सा' रे' सा' सा' नि१ ध ; नि१ ध ग म ; म ग म रे सा ; ध नि१ सा' ; ध नि१ सा' रे' सा' नि१ ध ; म ग रे सा ,नि१ ,ध ; ,ध ,नि१ सा ग म रे सा ;
थाट
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राग
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