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मेघ मल्हार

राग मेघ मल्हार बहुत ही मधुर और गंभीर वातावरण पैदा करने वाला राग है। इस राग के सभी स्वर राग मधुमाद सारंग के ही सामान हैं। परन्तु राग मधुमाद सारंग में सारंग अंग प्रभावी होता है जैसे - सा रे म रे ; म प नि१ प म रे, जिसमें वादी स्वर रिषभ है और मध्यम-रिषभ की संगती में मींड का उपयोग नहीं किया जाता। जबकि राग मेघ मल्हार में रिषभ हमेशा मध्यम का कण स्वर लेते हुए लगते हैं।

इसी प्रकार राग मधुमाद सारंग में नि१-प बिना मींड के सीधा गाया जाता है जबकि मेघ मल्हार में नि१-प गाते समय मींड का प्रयोग करते हुए पंचम को कण स्वर लेते हुए (प)नि१-प लेते हैं मेघ मल्हार का वादी स्वर सा है। राग मेघ मल्हार एक प्राचीन राग है अतः इसमें ध्रुवपद अंग का प्रभाव होने के कारण इस राग में गमक और मींड का उपयोग ज्यादा किया जाता है।

इस राग में रिषभ और पंचम की संगती मल्हार अंग प्रदर्शित करती है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तको में किया जा सकता है। गुरुमुख से सीखने से ही इस राग को आत्मसात किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग मेघ मल्हार का रूप दर्शाती हैं -

सा ,नि१ ; ,नि१ ,नि१ ,प ; ,प ,नि१ सा ; ,प ,नि१ ,प सा ; ,प ,नि१ सा (म)रे ; ,नि१ सा (म)रे ; (म)रे (म)रे प ; (म)रे म म (म)रे ; (म)रे सा ; ,नि१ प ,नि१ सा ; ,नि१ सा (म)रे म प नि१ प ; म प सा' ; प नि१ सा' ; प नि१ प सा' ; प नि१ सा' रे' ; रे' रे' सा' ; सा' रे' सा' सा' रे' सा' ; नि१ प ; म प नि१ प (म)रे सा ; ,नि१ सा ; (म)रे प म रे ; रे म प नि१ नि१ प ; नि१ नि१ प म रे ; रे प म नि१ प ; नि१ सा' ; नि१ प म रे ; ,नि१ रे सा ;

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संबंधित राग परिचय

मेघ मल्हार

राग मेघ मल्हार बहुत ही मधुर और गंभीर वातावरण पैदा करने वाला राग है। इस राग के सभी स्वर राग मधुमाद सारंग के ही सामान हैं। परन्तु राग मधुमाद सारंग में सारंग अंग प्रभावी होता है जैसे - सा रे म रे ; म प नि१ प म रे, जिसमें वादी स्वर रिषभ है और मध्यम-रिषभ की संगती में मींड का उपयोग नहीं किया जाता। जबकि राग मेघ मल्हार में रिषभ हमेशा मध्यम का कण स्वर लेते हुए लगते हैं।

इसी प्रकार राग मधुमाद सारंग में नि१-प बिना मींड के सीधा गाया जाता है जबकि मेघ मल्हार में नि१-प गाते समय मींड का प्रयोग करते हुए पंचम को कण स्वर लेते हुए (प)नि१-प लेते हैं मेघ मल्हार का वादी स्वर सा है। राग मेघ मल्हार एक प्राचीन राग है अतः इसमें ध्रुवपद अंग का प्रभाव होने के कारण इस राग में गमक और मींड का उपयोग ज्यादा किया जाता है।

इस राग में रिषभ और पंचम की संगती मल्हार अंग प्रदर्शित करती है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तको में किया जा सकता है। गुरुमुख से सीखने से ही इस राग को आत्मसात किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग मेघ मल्हार का रूप दर्शाती हैं -

सा ,नि१ ; ,नि१ ,नि१ ,प ; ,प ,नि१ सा ; ,प ,नि१ ,प सा ; ,प ,नि१ सा (म)रे ; ,नि१ सा (म)रे ; (म)रे (म)रे प ; (म)रे म म (म)रे ; (म)रे सा ; ,नि१ प ,नि१ सा ; ,नि१ सा (म)रे म प नि१ प ; म प सा' ; प नि१ सा' ; प नि१ प सा' ; प नि१ सा' रे' ; रे' रे' सा' ; सा' रे' सा' सा' रे' सा' ; नि१ प ; म प नि१ प (म)रे सा ; ,नि१ सा ; (म)रे प म रे ; रे म प नि१ नि१ प ; नि१ नि१ प म रे ; रे प म नि१ प ; नि१ सा' ; नि१ प म रे ; ,नि१ रे सा ;

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