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राग सोहनी परिचय

Adana

Adana
Thaat: Asavari
Jati: Chhadav-Chhadav (6/6)
Varjit Notes: ‘G’ in Aroh and ‘D’ in Avroh
Vadi: Sa
Samvadi: Pa
Vikrat Notes: G, D komal and both Nishads
Time: Night Third Pehar
Aroh: S R m P d N S*
Avroh: S* d n P m P, g m R S


राग अडाना के आरोह में गंधार वर्ज्य होने के कारण यह राग दरबारी कान्हड़ा से अलग दिखता है। राग अडाना विशेष कर मध्य और तार सप्तक में खिलता है। इस राग में गंधार और धैवत पर आंदोलन नहीं किया जाता। और इसी तरह गमक और मींड का भी उपयोग नहीं किया जाता इसीलिए इस राग की प्रकृति में चंचलता है।

Rageshree

यह बहुत ही मधुर राग है। संगीत शास्त्रों के अनुसार राग रागेश्री में निषाद शुद्ध और निषाद कोमल का प्रयोग बताया गया है। परन्तु वर्तमान में इस राग में सिर्फ कोमल निषाद ही उपयोग में लाया जाता है। और शुद्ध निषाद का प्रयोग बहुत ही अल्प रूप में दिखाई देता है।

Shobhawari

यह बहुत ही मधुर राग है, लेकिन प्रचार में कम है। राग दुर्गा में, धैवत शुद्ध न लेते हुए धैवत कोमल लेने से शोभावरी हो जाता है। यह राग आसावरी थाट के अंतर्गत आता है।

इस राग में किसी भी तरह का बन्धन नही है, इसलिये यह तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जा सकता है। यह राग शांत और स्निग्ध वातावरण पैदा करता है। यह स्वर संगतियाँ राग शोभावरी का रूप दर्शाती हैं -

सा रे म ; रे म प ; म प ध१ ; प ध१ म ; रे म प ध१ सा' ; ध१ सा' रे' सा' ध१ ; सा' ध१ प ध१ म ; ध१ प म प ; म प ध१ ध१ प ; प ध१ म ; प म रे म ; रे सा रे ,ध१ सा ; रे म ध१ प म रे सा ;

Puriya Dhanashri

राग पूरिया धनाश्री एक सायंकालीन संधि प्रकाश राग है। यह करुणा रस प्रधान गंभीर राग है। इसका निकटतम राग पूर्वी है, जिसमें दोनों मध्यम का प्रयोग किया जाता है।

राग के अन्य नाम

Puriya

राग पूरिया रात्रि के रागों में अनूठा प्रभाव पैदा करता है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इस राग का विस्तार मन्द्र और मध्य सप्तक में किया जाता है। इसी कारण यह राग सोहनी से अलग दिखता है, जिसका विस्तार तार सप्तक में अधिक होता है। इस राग में गंधार और निषाद पर बार बार न्यास किया जाता है, जिससे यह राग मारवा से अलग दिखता है, जिसमें रिषभ और धैवत पर न्यास किया जाता है।

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