खटिकही नाच

साग-सब्जी बेचने, सूअर पालने का काम करने वाली खटिक जाती अपने आनंद आल्हाद के लिए विवाह, गवना, पूजा, पालकी के अवसरों पर झंडा लेकर जुलुस निकालकर पालकी में दूल्हे को बिठाकर तेज चलते हुए बीच - बीच में रुक- रुक कर, कभी नीचे स्वर में और कभी ऊंचे स्वर में आवाज़ निकालते हुए, नृत्य करती हैं। छड़, थाली, ढोल, झाल के समवेत स्वर से आकाश गूँज उठता है।

गैड़ी नृत्य

छत्तीसगढ़ राज्य के प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक है। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के मारिया गौड़ आदिवासी अपने नृत्यों के लिए बहुत जाने जाते हैं। उनके इन्हीं नृत्यों में से गैड़ी नृत्य भी एक प्रभावशाली नृत्य है, जो नर्तकों के शारीरिक संतुलन को दर्शाता है।

गोरवारा कुनिथा नृत्य

गोरवारा कुनिथा नृत्य कर्नाटक में प्रचलित एक धार्मिक नृत्य है, जिसे 'मयलरालिंगा' उत्सव पर किया जाता है। यह नृत्य अपनी चित्ताकर्षक लयात्मकता के लिए जाना जाता है। गोरारा कुनथा कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुरुबा गौड़ास का पारंपरिक नृत्य है। कुरुबा गौड़ास भगवान मेलारा लिंग के भक्त हैं, इस समुदाय से जुड़े लोग देवरे या गोरवा की परंपरा का पालन करने के लिए दीक्षा की प्रक्रिया लेते हैं। दीक आमतौर पर शादी से पहले किया जाता है उन्होंने भगवान मेलारा लिंग और लोक रूप गोरवा कुनथा के लिए अपने बाकी जीवन समर्पित कर दिया।

जनजातीय इन्द्रवासी नृत्य

'धरकार' एक ऐसी जनजाति है जो मुख्य रूप से वाद्य यंत्र बनाकर अथवा डलिया - सूप बनाकर अपनी जीविका चलाती है और जब वाद्य यंत्र बनाती ही है तो नाचना गाना भी होता ही है। पूर्वांचल के सोनभद्र सहित अन्य जनपदों में बांस-वनों के समीप निवास करने वाली यह जनजाति निशान (सिंहा), डफला, शहनाई, बांसुरी, ढोल, मादल बना कर और बजाकर, झूम कर जाने कब से नाचती -गाती आ रही हैं। विवाह, गवना, मेले - ठेलों में या फिर बाजारों में भी होली - दीपावली, दशहरा, करमा आदि पर्वों पर ये लोग इन्द्रवासी नृत्य करके सबको मुग्ध कर देते हैं।

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय