थबल चौंगबा नृत्य

लोक नृत्य में थबल चोंगबा मणिपुर का एक लोक‍प्रिय मणिपुरी नृत्‍य है, जो होली के त्योहार के साथ संबंधित है। थबल का शब्दिक अर्थ है 'चंद्रमा की रोशनी' और चोंगबा का अर्थ है 'नृत्‍य', इस प्रकार इसका पूरा अर्थ है चंद्रमा की रोशनी में नृत्‍य करना। पारम्‍परिक रूप से पुरानी विचारधारा वाले मणिपुरी अभिभावक अपनी बेटियों को उनकी स्‍वीकृति के बिना बाहर जाने और युवाओं से मिलने की अनुमति नहीं देते थे। इस लिए थबल चोंगबा ने लड़कियों को लड़कों से मिलने और बाते करने का एक मात्र अवसर दिया जाता है। पुराने समय में यह नृत्‍य लोक गीतों के साथ चंद्रमा की रोशनी में किया जाता था। इसमें उपयोग किया जाने वाला एक मात्र संगी

दिंडी नृत्य

ज्ञानेश्वर , तुकाराम , नामदेव आदि पंढरपुर में विठ्ठल के मंदिर में अपने सहयोगियों के साथ जाने के लिए इस्तेमाल करते थे। ध्वज, चिह्न, आदि उनके हाथों में थे। इस जुलूस को दिंडी कहा जाता था ।

दिवारी नृत्य

दिवारी मध्य प्रदेश का परिद्ध लोक नृत्य है। 

बुन्देलखण्ड की मिट्टी में अभी भी पुरातन परम्पराओं की महक रची बसी है। बुन्देलखण्ड की दिवारी समूचे देश में अनूठी है। इसमें गोवंश की सुरक्षा, संरक्षण, संवद्धन, पालन के संकल्प का इस दिन कठिन ब्रत लिया जाता है।

देवरत्तनम नृत्य

देवरत्‍तम विशुद्ध रूप से लोक नृत्य है, जिसे अब तक तमिलनाडु के मदुरई ज़िले के कोडानगपट्टी के वीरापंड्या काटाबोम्‍मन राजवंश के वंशजों द्वारा बचाए रखा गया है। 

धेबिया नृत्य

धेबिया नृत्य बिहार राज्य के भोजपुर क्षेत्र में धेबी समाज में प्रचलित है। यह लोक नृत्य श्रृंगार प्रधान गीतों से भरा होता है। धेबी समाज में यह सामूहिक नृत्य घर परिवार में मांगलिक अवसरों पर किया जाता है।

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय