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എന്തുകൊണ്ടാണ് അന്താരാഷ്ട്ര നൃത്ത ദിനം ആഘോഷിക്കുന്നത്?
अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस की शुरुआत 29 अप्रैल 1982 से हुई. यह एक महान रिफ़ोर्मर जीन जॉर्ज नावेरे के जन्म की स्मृति में मनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि आज से 2000 वर्ष पूर्व देवताओ के कहने पर ब्रम्हाजी ने नृत्य वेद तैयार किया तभी से नृत्य की उत्पत्ति मानी जाती है. जब नृत्य वेद की रचना पूरी हुई, तब नृत्य करने का अभ्यास भरतमुनि के सौ पुत्रो ने किया. इस नृत्य वेद में सामवेद, अथर्ववेद, ऋग्वेद और यजुर्वेद की कई चीजों को शामिल किया गया.
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കഥകളി ഏത് സംസ്ഥാനത്തിന്റെ പരമ്പരാഗത നൃത്തമാണ്?
प्रतियोगी परीक्षा में भातरीय नृत्य शैली से भी एक या दो सवाल पूछे जाते हैं. ऐसे सवालों को हल करने के लिए आपको इन नृत्य शैलियों के नाम और राज्य के नाम याद होना चाहिए...
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ദൈവമേ ഇത് വളരെ ഭയാനകമാണ് - അതുല്യമായ അദ്വിതീയ അദ്വിതീയം
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എന്താണ് നൃത്തം?
नृत्य क्या है।
नृत्य एक प्रकार का सशक्त आवेग है। मनुष्य जीवन के दोनों पक्षों-सुख और दुख में नृत्य हृदय को व्यक्त करने का अचूक माध्यम है। लेकिन नृत्य कला एक ऐसा आवेग है, जिसे कुशल कलाकारों के द्वारा ऐसी क्रिया में बदल दिया जाता है, जो गहन रूप से अभिव्यक्तिपूर्ण होती है और दर्शकों को, जो स्वयं नृत्य करने की इच्छा नहीं रखते, आनन्दित करती है। परिभाषा के तौर पर देखें तो अंग-प्रत्यंग एवं मनोभाव के साथ की गयी नियंत्रित यति-गति को नृत्य कहा जाता है। नृत्य में करण, अंगहार, विभाव, भाव, अनुभाव और रसों की अभिव्यक्ति की जाती है। नृत्य के दो प्रकार हैं
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മണിപ്പുർ ക്ഷേത്രം സേ ആയ ശാസ്ത്രിയ നൃത്യ മണിപുരി നൃത്യ ഹേ
പൂർവോത്തറിൻ്റെ മണിപ്പുർ ക്ഷേത്രം സേ ആയ ശാസ്ത്ര നൃത്യ മണിപുരി നൃത്യം ഉണ്ട്.
*മണിപുരി നൃത്യ ഭാരതം അന്യ നൃത്യ രൂപങ്ങൾ സേ ഭിന്നം.
*ഇതുപോലെ ശരീര ധീമി ഗതി സേ ചലത ഹൈ, സാങ്കേതിക ഭാവ്യത കൂടാതെ മനമോഹകും ഗതിയും പ്രവാഹിത് ഹോതി ഉണ്ട്.
* യഹ് നൃത്യ രൂപം 18വീം ശതാബ്ദിയിൽ വൈഷ്ണവ സമ്ബ്രദായത്തിൽ വികസിപ്പിച്ചെടുത്തു ഈതി റിവാസ്, ജാദുഇ നൃത്യ രൂപങ്ങൾ എന്നിവയിൽ ഉൾപ്പെടുന്നു.
*വിഷ്ണു പുരാണം, ഭാഗവത പുരാണം തഥാ ഗീത ഗോവിന്ദം കി രചനയോം ഐ രൂപ സേ ഉപയോഗം ജാതി ഉണ്ട്.
* മണിപ്പുർ കി മെയ്റ്റി ജനജാതി കി ദന്ത കഥകൾ പിണ്ഡ കെ സമാന് തീ.
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കഥക് നൃത്യ― ഉത്തര ഭാരതം
का नृत्य रूप 100 सें को को को को को पैरों को को को को को को को को को में बालबद्ध पदचाप, विहंारा पहचाना जाता है हिन्दु के के अलावा पर्श्दू उर्दू कविता से ली गई विषयवस्तुओं का नाटकीय प्रस्तुतीकरण किया जाता है
*കഥക ജന്മം ഉത്തരത്തിൽ ഹുആ കിന്തു പാർഷ്യനും മുസ്ലീം പ്രഭാവവും യഹൂദ മന്ദിരം ജൻ തക പഹുഞ്ച് ഗയാ.
* इस दृत्य के दराने हैं, को उत्तर के के के के शहरों के शहरों के नाम पर के शहरों के नाम पर के है है के से से दोनों ही के संरक्षण में में विस्तारित हुआ - लखनऊ घराना और जयपुरघराना.
* വർത്തമാന സമയത്തിൻ്റെ കഥകൾ കിയാ ജാതി ഉണ്ട്.
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ഗോത്ര, നാടോടി സംഗീതം
जनजातीय और लोक संगीत उस तरीके से नहीं सिखाया जाता है जिस तरीके से भारतीय शास्त्रीय संगीत सिखाया जाता है । प्रशिक्षण की कोई औपचारिक अवधि नहीं है। छात्र अपना पूरा जीवन संगीत सीखने में अर्पित करने में समर्थ होते हैं । ग्रामीण जीवन का अर्थशास्त्र इस प्रकार की बात के लिए अनुमति नहीं देता । संगीत अभ्यासकर्ताओं को शिकार करने, कृषि अथवा अपने चुने हुए किसी भी प्रकार का जीविका उपार्जन कार्य करने की इजाजत है।
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ഭാരതീയ ശാസ്ത്രിയ നൃത്യ
साहित्य में पहला संदर्भ वेदों से मिलता है, जहां नृत्य व संगीत का उदगम है । नृत्य का एक ज्यादा संयोजित इतिहास महाकाव्यों, अनेक पुराण, कवित्व साहित्य तथा नाटकों का समृद्ध कोष, जो संस्कृत में काव्य और नाटक के रूप में जाने जाते हैं, से पुनर्निर्मित किया जा सकता है । शास्त्रीय संस्कृत नाटक (ड्रामा) का विकास एक वर्णित विकास है, जो मुखरित शब्द, मुद्राओं और आकृति, ऐतिहासिक वर्णन, संगीत तथा शैलीगत गतिविधि का एक सम्मिश्रण है । यहां 12वीं सदी से 19वीं सदी तक अनेक प्रादेशिक रूप हैं, जिन्हें संगीतात्मक खेल या संगीत-नाटक कहा जाता है । संगीतात्मक खेलों में से वर्तमान शास्त्रीय नृत्य-रूपों
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ഇന്ത്യൻ കൊറിയോഗ്രഫി: ക്ലാസിക്കൽ നൃത്തത്തിന്റെ ആമുഖവും തരങ്ങളും
भारतीय नृत्यकला : शास्त्रीय नृत्य का परिचय और प्रकार- अंग-प्रत्यंग एवं मनोभागों के साथ की गई गति को नृत्य कहा जाता है। यह सार्वभौम कला के साथ मानवीय अभिव्यक्ति का रसमय प्रदर्शन है। भरत मुनि (द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व) के ‘नाट्य शास्त्र’ को भारतीय नृत्यकला का प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ और पंचवेद उपनाम से भी जाना है।
नत्य के प्रकार (Type of Dance) -
भरत नाट्यशास्त्र में नृत्य के दो प्रकार वर्णित हैं-
1. मार्गी (तांडव) - अत्यंत पौरुष और शक्ति के साथ किया जाता है (उदा.भगवान शंकर का नृत्य)
2. लास्य (राष) - लास्य कोमल नृत्य है (उदा. भगवान कृष्ण गोपियों संग नृत्य)
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भरतनाट्यम् ― तमिलनाडु
भरत नाट्यम, भारत के प्रसिद्ध नृत्यों में से एक है तथा इसका संबंध दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य से है
* भरत नाट्यम में नृत्य के तीन मूलभूत तत्वों को कुशलतापूर्वक शामिल किया गया है।
* ये हैं भाव अथवा मन:स्थिति, राग अथवा संगीत और स्वरमार्धुय और ताल अथवा काल समंजन।
* भरत नाट्यम की तकनीक में, हाथ, पैर, मुख, व शरीर संचालन के समन्वयन के 64 सिद्धांत हैं, जिनका निष्पादन नृत्य पाठ्यक्रम के साथ किया जाता है।
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