हिन्दू धर्म का संगीत से नाता का?
हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग आणि संगीत से गहरा नाता रहा. हिन्दू धर्म मानता आहे कि ध्वनि आणि शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना आहे. आत्मा हे जगत आहे. संपूर्ण वेद, स्मृति, पुराण आणि गीता आदि धार्मिक ग्रंथांमध्ये धर्म, अर्थ, काम आणि मोक्ष साधने के हजारोहजार उपाय गेले. एक उपाय आहे संगीत. संगीत की कोणतीही भाषा नाही होती. संगीत आत्मा के सर्वात जवळ होता. शब्दांमध्ये बंधा संगीत विकृत संगीत माना जाते.
प्राचीन परंपरा : भारतात संगीत की परंपरा अनादिकाल से ही राहते. हिन्दुओं के जवळजवळ सर्व देवी आणि देवताओं के पास एक अलग वाद्य यंत्र आहे. विष्णु के पास शंख है तो शिव के पास डमरू, नारद मुनि आणि सरस्वती के पास वीणा आहे, तो भगवान श्रीकृष्ण के पास बांसुरी। खजुराहो के मंदिर हो या कोणार्क के मंदिर, प्राचीन मंदिरों की दीवारों में गंधर्वों की मूर्तियां आवेष्टित आहेत. त्यांच्या मूर्तींमध्ये जवळजवळ सर्व प्रकारच्या वाद्य यंत्राचे डिस्प्ले केले गेले. गंधर्व आणि किन्नरांचे संगीत चांगले जानकार माना जाते.
सामवेद उन वैदिक ऋचांचा संग्रह मात्र आहे, जो गेय आहेत. संगीत का ग्रंथ चार वेदांत से एक सामवेद ही आहे. याच आधारावर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिहिले आणि नंतर संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी यांनी लिहिले. जगभर संगीताचे ग्रंथ सामवेद से प्रेषित आहेत.
संगीत का विज्ञान : हिंदू धर्मात संगीत मोक्ष प्राप्त करणे एक साधन आहे. संगीत से आमचे मन आणि मस्तिष्क पूर्ण: शांत आणि स्वस्थ हो. भारतीय ऋषींनी ने - शब्दांची शोधा, जो प्रकृति मध्ये प्रथम से ही आहे. त्यांच्या ध्वनिकांच्या आधारावर त्यांनी मंत्रांची रचना केली, संस्कृत भाषेची रचना आणि ध्यानात सहायक ध्वनिंची रचना. या व्यतिरिक्त त्यांनी ध्वनि विज्ञानाला चांगले समजावून सांगावे याद्वारे शास्त्रांची रचना आणि निसर्गाचे विवेचन करणारी ध्वनी शोधा. आज का विज्ञान अजूनही संगीत आणि ध्वनितांचा महत्त्वाचा आणि प्रभावाचा शोध लावण्यात आला आहे, परंतु ऋषि-मुनियांसे चांगले कोणते संगीत आणि त्यांचे विज्ञान जाणू शकत नाही.
प्राचीन भारतीय संगीत दोन रूपों में प्रचलित था-1. मार्गी आणि २. देशी। मार्गी संगीत तो लुप्त झाला, परंतु देशी संगीत वाचत राहतात मुख्य: दोन भाग आहेत- 1. शास्त्रीय संगीत आणि 2. लोक संगीत.
शास्त्रीय संगीत शास्त्रांवर आधारित आणि लोक संगीत काल आणि स्थान के रूपात निसर्ग के स्वच्छंद वातावरणात रूप से पलता विकसित होत होता. तथापि शास्त्रीय संगीताच्या विद्वानों आणि कलाकरांनी आपल्या-आपल्या पद्धतीनुसार नियमबद्ध आणि नियमबद्ध केले आहे आणि त्यात अनेक प्रांतीय शैलियां विकसित केली आहेत, तो लोक संगीतही अलग-अलग प्रांतांच्या खात्यातून अधिक समृद्ध झाला.
बदलता संगीत : मुस्लिमांच्या शासनकाळात प्राचीन भारतीय संगीत समृद्धीची परंपरा अब्ली आणि फारसी वाढवण्यासाठी आवश्यक आणि मूल्य आणि आवडीनुसार त्यांनी अनेक बदल केले. त्यांनी उत्तरे भारताची संगीत परंपरा मुगलीकरण कार्य केले ते चालते नवीन शैलियां भी प्रचलित आईं, जैसे ख्याल व गजल आदि. बाद में सूफी आंदोलन ने भी भारतीय संगीतावर आपला प्रभाव जमाया. पुढे चलकर देश के विविध हिस्सों मध्ये अनेक भिन्न पद्धतींचे जन्म आणि घरानों झाले. ब्रिटिश राज्यकाल के दौरान पश्चात्य संगीत से भी भारतीय संगीत का परिचय झाला. या दौऱ्यात हारमोनियम नामक वाद्य यंत्र प्रचलित आले.
दोन संगीत पद्धती : याप्रमाणे वर्तमान दौऱ्यात हिन्दुस्तानी संगीत आणि कर्नाटकी संगीत प्रचलित आहे. हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित आणि कर्नाटक संगीत दक्षिण के मंदिरों में विकसित होता.
हिन्दुस्तानी संगीत : यह संगीत उत्तरी हिन्दुस्तान में- बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, जम्मू-कश्मीर तथा महाराष्ट्र प्रांतों में प्रचलित है।
कर्नाटक संगीत :
हे संगीत दक्षिण भारतात तमिलनाडु, मैसूर, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश आदि दक्षिण के प्रदेशात प्रचलित आहे.
वाद्य यंत्र : मुगल
काल में नवीन वाद्य यंत्रों की भी रचना, जैसे सरोद और सितार। दरअसल, ये वीणा ही बदललेली आहेत. याप्रमाणे वीणा, बीन, मृदंग, ढोल, डमरू, घंटी, ताल, चांड, घटम्, पुंगी, डंका, तबला, शहनाई, सितार, सरोद, पखावज, संतूर आदि का आविष्कार भारतामध्ये ही झाली आहे. भारताच्या जातियांच्या पास विचित्र प्रकाराचे वाद्य यंत्र आदिवासी मिळून जिनसे निघणारी ध्वनियों को सुनकर तुमच्या दिलोदिमागमध्ये मदहोशी छाँटली.
हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता रहा है। हिन्दू धर्म मानता है कि ध्वनि और शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना हुई है। आत्मा इस जगत का कारण है। चारों वेद, स्मृति, पुराण और गीता आदि धार्मिक ग्रंथों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को साधने के हजारोहजार उपाय बताए गए हैं। उन उपायों में से एक है संगीत। संगीत की कोई भाषा नहीं होती। संगीत आत्मा के सबसे ज्यादा नजदीक होता है। शब्दों में बंधा संगीत विकृत संगीत माना जाता है।
प्राचीन परंपरा : भारत में संगीत की परंपरा अनादिकाल से ही रही है। हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग वाद्य यंत्र है। विष्णु के पास शंख है तो शिव के पास डमरू, नारद मुनि और सरस्वती के पास वीणा है, तो भगवान श्रीकृष्ण के पास बांसुरी। खजुराहो के मंदिर हो या कोणार्क के मंदिर, प्राचीन मंदिरों की दीवारों में गंधर्वों की मूर्तियां आवेष्टित हैं। उन मूर्तियों में लगभग सभी तरह के वाद्य यंत्र को दर्शाया गया है। गंधर्वों और किन्नरों को संगीत का अच्छा जानकार माना जाता है।
सामवेद उन वैदिक ऋचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। संगीत का सर्वप्रथम ग्रंथ चार वेदों में से एक सामवेद ही है। इसी के आधार पर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा और बाद में संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी लिखा गया। दुनियाभर के संगीत के ग्रंथ सामवेद से प्रेरित हैं।
संगीत का विज्ञान : हिन्दू धर्म में संगीत मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन है। संगीत से हमारा मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांत और स्वस्थ हो सकता है। भारतीय ऋषियों ने ऐसी सैकड़ों ध्वनियों को खोजा, जो प्रकृति में पहले से ही विद्यमान है। उन ध्वनियों के आधार पर ही उन्होंने मंत्रों की रचना की, संस्कृत भाषा की रचना की और ध्यान में सहायक ध्यान ध्वनियों की रचना की। इसके अलावा उन्होंने ध्वनि विज्ञान को अच्छे से समझकर इसके माध्यम से शास्त्रों की रचना की और प्रकृति को संचालित करने वाली ध्वनियों की खोज भी की। आज का विज्ञान अभी भी संगीत और ध्वनियों के महत्व और प्रभाव की खोज में लगा हुआ है, लेकिन ऋषि-मुनियों से अच्छा कोई भी संगीत के रहस्य और उसके विज्ञान को नहीं जान सकता।
प्राचीन भारतीय संगीत दो रूपों में प्रचलन में था-1. मार्गी और 2. देशी। मार्गी संगीत तो लुप्त हो गया लेकिन देशी संगीत बचा रहा जिसके मुख्यत: दो विभाजन हैं- 1. शास्त्रीय संगीत और 2. लोक संगीत।
शास्त्रीय संगीत शास्त्रों पर आधारित और लोक संगीत काल और स्थान के अनुरूप प्रकृति के स्वच्छंद वातावरण में स्वाभाविक रूप से पलता हुआ विकसित होता रहा। हालांकि शास्त्रीय संगीत को विद्वानों और कलाकरों ने अपने-अपने तरीके से नियमबद्ध और परिवर्तित किया और इसकी कई प्रांतीय शैलियां विकसित होती चली गईं तो लोक संगीत भी अलग-अलग प्रांतों के हिसाब से अधिक समृद्ध होने लगा।
बदलता संगीत : मुस्लिमों के शासनकाल में प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को अरबी और फारसी में ढालने के लिए आवश्यक और अनावश्यक और रुचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन किए। उन्होंने उत्तर भारत की संगीत परंपरा का मुगलकरण करने का कार्य किया जिसके चलते नई शैलियां भी प्रचलन में आईं, जैसे खयाल व गजल आदि। बाद में सूफी आंदोलन ने भी भारतीय संगीत पर अपना प्रभाव जमाया। आगे चलकर देश के विभिन्न हिस्सों में कई नई पद्धतियों व घरानों का जन्म हुआ। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान पाश्चात्य संगीत से भी भारतीय संगीत का परिचय हुआ। इस दौर में हारमोनियम नामक वाद्य यंत्र प्रचलन में आया।
दो संगीत पद्धतियां : इस तरह वर्तमान दौर में हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटकी संगीत प्रचलित है। हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित हुआ और कर्नाटक संगीत दक्षिण के मंदिरों में विकसित होता रहा।
हिन्दुस्तानी संगीत : यह संगीत उत्तरी हिन्दुस्तान में- बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, जम्मू-कश्मीर तथा महाराष्ट्र प्रांतों में प्रचलित है।
कर्नाटक संगीत :
यह संगीत दक्षिण भारत में तमिलनाडु, मैसूर, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश आदि दक्षिण के प्रदेशों में प्रचलित है।
वाद्य यंत्र : मुगल
काल में नए वाद्य यंत्रों की भी रचना हुई, जैसे सरोद और सितार। दरअसल, ये वीणा के ही बदले हुए रूप हैं। इस तरह वीणा, बीन, मृदंग, ढोल, डमरू, घंटी, ताल, चांड, घटम्, पुंगी, डंका, तबला, शहनाई, सितार, सरोद, पखावज, संतूर आदि का आविष्कार भारत में ही हुआ है। भारत की आदिवासी जातियों के पास विचित्र प्रकार के वाद्य यंत्र मिल जाएंगे जिनसे निकलने वाली ध्वनियों को सुनकर आपके दिलोदिमाग में मदहोशी छा जाएगी।
लेख के प्रकार
- Log in to post comments
- 99 views