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सात सुरों की पर्याय सुब्बलक्ष्मी

एमएस सुब्बालक्ष्मी

बहती नदी की कलकल ध्वनि की तरह सहज स्वरों में गाने वाली एमएस सुब्बलक्ष्मी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की गंभीरता में अपनी भक्तिमय भावनाओं को मिलाकर एक ऐसी मधुरता पैदा की जो आज भी श्रोताओं को आनंद से सराबोर कर देती है।

इसे सुब्बलक्ष्मी के संगीत का जादू ही कहा जा सकता है कि उन्होंने लगातार आठ दशक तक भारतीय शास्त्रीय संगीत में अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा। 1966 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में गायन पेश करने वाली पहली भारतीय संगीतकार का गौरव हासिल किया। उनकी इन्हीं तमाम उपलब्धियों के कारण भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत-रत्न से सम्मानित किया। देश का यह शीर्ष सम्मान पाने वाली भी वह पहली शास्त्रीय गायिका थीं।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के व्याख्याता गिरीशचन्द्र पांडेय के अनुसार सुब्बलक्ष्मी के गायन में शास्त्रीय संगीत की गंभीरता प्रमुखता से दिखाई देती है। उनके गायन में शब्द और स्वर के अनुशासन की झलक भी आसानी से प्रदर्शित होती है।

सुब्बलक्ष्मी परंपरागत शिक्षा के जरिए शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में आईं। परंपरा से मिली शैली और श्रमसाध्य अभ्यास से उन्होंने अपने गायन में लालित्यपूर्ण भावों को संजोया। यही कारण है कि उनका गायन न केवल आकर्षित करता है बल्कि उसका प्रभाव काफी देर तक बना रहता है।
सुब्बलक्ष्मी उस पीढ़ी की गायक थी जो दिन में कम से कम सात आठ घंटे अभ्यास करने में बिताती थी। इसी अभ्यास से वह तमाम ऐसी चीजें भारतीय संगीत को दे गईं जो आज भी अनूठी और नई लगती हैं। मदुरै में 16 सितंबर 1916 को एक संगीतकार घराने में जन्मी सुब्बलक्ष्मी ने कुंभकोणम में महज आठ वर्ष की आयु में अपनी कला का पहली बार सार्वजनिक प्रदर्शन किया। आठ साल की उम्र में शुरू हुई इस संगीत यात्रा ने फिर कभी रूकने का नाम नहीं लिया और साल दर साल नई उपलब्धियों को हासिल किया।
सुब्बलक्ष्मी ने एस श्रीनिवास अय्यर और पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के विख्यात शिष्य पंडित नारायणराव से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी। सुब्बलक्ष्मी की आवाज का जादू ही कहा जाएगा कि उन्होंने जिस रचना को गाया वह रचना उनके नाम के साथ ही जुड़ गई।

संगीत हृदय की भाषा होती है। इस बात को चरितार्थ करते हुए सुब्बलक्ष्मी ने कई भाषाओं में गायन किया जिनमें दक्षिण की भाषाओं के अलावा हिन्दी, बंगला, मराठी, गुजराती और संस्कृत शामिल हैं।
सुब्बलक्ष्मी ने फिल्मों में अभिनय किया था। उनकी पहली फिल्म 1938 में तमिल में बनी सेवासदन थी। उन्होंने 1941 सावित्री फिल्म में नारद की केन्द्रीय भूमिका निभाई थी। इसके बाद उनकी मीरा फिल्म आई जिसका 1947 में इसी नाम से हिन्दी में पुनर्निर्माण किया गया। मीरा फिल्म में उनके द्वारा गाया गया मीरा का भजन 'मोहे चाकर राखो जी' आज भी हिन्दी भाषी संगीत प्रेमियों के पसंदीदा भजनों में शामिल है।
 

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