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सुघराई

राग सुघराई के लक्षण एक जैसे होने के कारण, इन दोनों रागों को मिलाकर राग सुहा सुघराई गाया/बजाया जाता है। राग सुहा के आरोह में रिषभ अल्प होने के कारण सा ; ग१ म रे सा ; सा म म प ; ग१ म रे सा ; म प नि१ प ; प नि१ म प सा' ; सा' प नि१ प ; म प ; ग१ म रे सा ; और राग सुघराई के आरोह में रिषभ का पूर्ण प्रयोग व सारंग अंग की अधिकता के कारण - सा रे म प ; म रे प ; ग१ म रे सा ; म प नि१ प सा' ; नि१ सा' रे' सा' ; नि१ सा' प नि१ प ; नि१ नि१ प म रे सा ; रे (म)ग१ ग१ म रे सा ; - यह स्वर समुदाय बार बार आते हैं। और जहाँ ये स्वर समुदाय एक ही राग में दिखाई देंगे वहाँ राग सुहा सुघराई का स्वरुप प्रकट होगा।

दिन के द्वितीय प्रहर में गाया जाने वाला यह राग उत्तरांग प्रधान है। राग सुहा सुघराई में धैवत वर्ज्य, गंधार और निषाद कोमल व अन्य सभी शुद्ध स्वर लगते हैं। इस राग में सुघराई के कारण सारंग अंग ज्यादा दिखाई देता है वहीं राग सुहा का पूर्ण स्वरुप भी। इस राग के वादी संवादी के विषय में गुणीजन भिन्न भिन्न मत रखते हैं। कोई मध्यम/ षड्ज अथवा षड्ज/मध्यम, तथा कोई पंचम/षड्ज अथवा षड्ज/पंचम भी मानते हैं। इस राग में न्यास के स्वर षड्ज, गंधार, मध्यम और पंचम हैं।

राग सुहा सुघराई का स्वरुप इस प्रकार है - सा ,नि१ सा ; ,प ,नि१ ,प सा ; ,नि१ सा रे ; रे (म)ग१ (म)ग१ म रे सा ; सा रे म प ; प ग१ म रे प ; म प ग१ म रे सा ; ,नि१ सा रे म प ; म प नि१ प ; नि१ म प ; ग१ म रे सा ; रे ग१ म प ; म नि१ s प ; प नि१ म प सा'; सा रे म प नि१ सा' ; प नि१ सा' रे' सा' ; रे' सा' प नि१ प म प ; ग१ म रे प ; म प नि१ सा' ; नि१ नि१ प म रे सा ; रे (म)ग१ ; ग१ म रे सा ;

संबंधित राग परिचय

सुघराई

राग सुघराई के लक्षण एक जैसे होने के कारण, इन दोनों रागों को मिलाकर राग सुहा सुघराई गाया/बजाया जाता है। राग सुहा के आरोह में रिषभ अल्प होने के कारण सा ; ग१ म रे सा ; सा म म प ; ग१ म रे सा ; म प नि१ प ; प नि१ म प सा' ; सा' प नि१ प ; म प ; ग१ म रे सा ; और राग सुघराई के आरोह में रिषभ का पूर्ण प्रयोग व सारंग अंग की अधिकता के कारण - सा रे म प ; म रे प ; ग१ म रे सा ; म प नि१ प सा' ; नि१ सा' रे' सा' ; नि१ सा' प नि१ प ; नि१ नि१ प म रे सा ; रे (म)ग१ ग१ म रे सा ; - यह स्वर समुदाय बार बार आते हैं। और जहाँ ये स्वर समुदाय एक ही राग में दिखाई देंगे वहाँ राग सुहा सुघराई का स्वरुप प्रकट होगा।

दिन के द्वितीय प्रहर में गाया जाने वाला यह राग उत्तरांग प्रधान है। राग सुहा सुघराई में धैवत वर्ज्य, गंधार और निषाद कोमल व अन्य सभी शुद्ध स्वर लगते हैं। इस राग में सुघराई के कारण सारंग अंग ज्यादा दिखाई देता है वहीं राग सुहा का पूर्ण स्वरुप भी। इस राग के वादी संवादी के विषय में गुणीजन भिन्न भिन्न मत रखते हैं। कोई मध्यम/ षड्ज अथवा षड्ज/मध्यम, तथा कोई पंचम/षड्ज अथवा षड्ज/पंचम भी मानते हैं। इस राग में न्यास के स्वर षड्ज, गंधार, मध्यम और पंचम हैं।

राग सुहा सुघराई का स्वरुप इस प्रकार है - सा ,नि१ सा ; ,प ,नि१ ,प सा ; ,नि१ सा रे ; रे (म)ग१ (म)ग१ म रे सा ; सा रे म प ; प ग१ म रे प ; म प ग१ म रे सा ; ,नि१ सा रे म प ; म प नि१ प ; नि१ म प ; ग१ म रे सा ; रे ग१ म प ; म नि१ s प ; प नि१ म प सा'; सा रे म प नि१ सा' ; प नि१ सा' रे' सा' ; रे' सा' प नि१ प म प ; ग१ म रे प ; म प नि१ सा' ; नि१ नि१ प म रे सा ; रे (म)ग१ ; ग१ म रे सा ;