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श्री

राग श्री

राग श्री एक पुरुष राग है। भारतीय संगीत शास्त्रों में 6 पुरुष राग और 36 रागिनियों का वर्णन किया गया है। ये 6 पुरुष राग हैं - राग भैरव, राग मालकौंस, राग हिंडोल, राग श्री, राग दीपक और राग मेघ-मल्हार।

यह पूर्वी थाट का प्राचीन राग है। इस राग के स्वरों की स्थिति और उन्हें गाने की पद्धति के कारण राग श्री गायन वादन के लिए कठिन है। यह वक्रता लिए हुए एक मींड प्रधान राग है। इस राग का वादी रिषभ और संवादी पंचम है। इस राग का विस्तार रिषभ को केंद्र में रखते हुए किया जाता है। रिषभ-पंचम-रिषभ की मींड प्रधान संगती और अवरोह में रे१' नि ध१ प ; ध१ म ग रे१ ; सा ये स्वर इस राग का रूप दर्शाते है।

इस राग का विस्तार मध्य और तार सप्तक में अधिक किया जाता है। यह राग भक्ति भावना प्रधान राग होने के साथ साथ वातावरण में थोड़ी व्यग्रता भी उत्पन्न करता है। यह स्वर संगतियाँ राग श्री का रूप दर्शाती हैं -

सा ,नि रे१ म् प ; प रे१ रे१ प ; म् प ध१ म् ग रे१ ; रे१ प रे१ ग रे१ सा ; म् प नि ; नि सा' ; म् प नि सा' रे१' ; रे१' सा' रे१' नि ध१ प ; प म् प ध१ म् ग रे१ ; ग रे१ प रे१ ग रे१ सा ;

थाट

राग

संबंधित राग परिचय

श्री

राग श्री

राग श्री एक पुरुष राग है। भारतीय संगीत शास्त्रों में 6 पुरुष राग और 36 रागिनियों का वर्णन किया गया है। ये 6 पुरुष राग हैं - राग भैरव, राग मालकौंस, राग हिंडोल, राग श्री, राग दीपक और राग मेघ-मल्हार।

यह पूर्वी थाट का प्राचीन राग है। इस राग के स्वरों की स्थिति और उन्हें गाने की पद्धति के कारण राग श्री गायन वादन के लिए कठिन है। यह वक्रता लिए हुए एक मींड प्रधान राग है। इस राग का वादी रिषभ और संवादी पंचम है। इस राग का विस्तार रिषभ को केंद्र में रखते हुए किया जाता है। रिषभ-पंचम-रिषभ की मींड प्रधान संगती और अवरोह में रे१' नि ध१ प ; ध१ म ग रे१ ; सा ये स्वर इस राग का रूप दर्शाते है।

इस राग का विस्तार मध्य और तार सप्तक में अधिक किया जाता है। यह राग भक्ति भावना प्रधान राग होने के साथ साथ वातावरण में थोड़ी व्यग्रता भी उत्पन्न करता है। यह स्वर संगतियाँ राग श्री का रूप दर्शाती हैं -

सा ,नि रे१ म् प ; प रे१ रे१ प ; म् प ध१ म् ग रे१ ; रे१ प रे१ ग रे१ सा ; म् प नि ; नि सा' ; म् प नि सा' रे१' ; रे१' सा' रे१' नि ध१ प ; प म् प ध१ म् ग रे१ ; ग रे१ प रे१ ग रे१ सा ;

थाट

राग