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मोहनकौन्स

 राग मालकौंस में यदि आरोह में गंधार शुद्ध और अवरोह में गंधार कोमल का प्रयोग किया जाय तो वह राग मोहनकौंस बन जायेगा। यह राग पूर्वांग में राग जोग और उत्तरांग में राग मालकौंसका मिश्रण है। यह एक सीधा राग है और इसे तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जा सकता है। यह राग एक शांत और गंभीर वातावरण पैदा करता है। यह स्वर संगतियाँ राग मोहनकौंस का रूप दर्शाती हैं - सा ,नि१ ,ध१ ; ,ध१ ,नि१ सा ; सा ग ग म ; ग म ग१ सा ; ग म ध१ म ; ध१ नि१ सा' ; सा' ग१' सा' नि१ ध१ म ग ; म नि१ ध१ म ग ; म ध१ ग ; म ग१ सा;

यह राग बहुत ही मधुर परंतु अपेक्षाकृत नया होने के कारण बहुत प्रचलन में नहीं है। परंतु उस्ताद सलामत अली और नज़ाकत अली खान द्वारा यह राग गाया गया है। जिससे प्रभावित हो कर आचार्य तनरंग जी ने मोहनकौंस में बंदिशों की रचना की है।

मूलतः, महात्मा गाँधी को समर्पित करते हुए पंडित रवि शंकर जी ने राग मोहनकौंस की रचना की है, जो इस प्रकार है - सा ग म ध१ नि१ सा' - सा' नि१ ध१ म ग ; म रे ग म सा; पंडित रवि शंकर जी ने कोमल गंधार का कण स्वर के रूप में बहुत ही अल्प प्रयोग किया है और शुद्ध रिषभ का प्रयोग आरोह में विशिष्ट प्रकार से किया गया है, जैसे - सा ग म ; म ग रे ग म ; ग सा; अथवा सा ग म ; म रे ग म ; सा;

थाट

संबंधित राग परिचय

मोहनकौन्स

 राग मालकौंस में यदि आरोह में गंधार शुद्ध और अवरोह में गंधार कोमल का प्रयोग किया जाय तो वह राग मोहनकौंस बन जायेगा। यह राग पूर्वांग में राग जोग और उत्तरांग में राग मालकौंसका मिश्रण है। यह एक सीधा राग है और इसे तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जा सकता है। यह राग एक शांत और गंभीर वातावरण पैदा करता है। यह स्वर संगतियाँ राग मोहनकौंस का रूप दर्शाती हैं - सा ,नि१ ,ध१ ; ,ध१ ,नि१ सा ; सा ग ग म ; ग म ग१ सा ; ग म ध१ म ; ध१ नि१ सा' ; सा' ग१' सा' नि१ ध१ म ग ; म नि१ ध१ म ग ; म ध१ ग ; म ग१ सा;

यह राग बहुत ही मधुर परंतु अपेक्षाकृत नया होने के कारण बहुत प्रचलन में नहीं है। परंतु उस्ताद सलामत अली और नज़ाकत अली खान द्वारा यह राग गाया गया है। जिससे प्रभावित हो कर आचार्य तनरंग जी ने मोहनकौंस में बंदिशों की रचना की है।

मूलतः, महात्मा गाँधी को समर्पित करते हुए पंडित रवि शंकर जी ने राग मोहनकौंस की रचना की है, जो इस प्रकार है - सा ग म ध१ नि१ सा' - सा' नि१ ध१ म ग ; म रे ग म सा; पंडित रवि शंकर जी ने कोमल गंधार का कण स्वर के रूप में बहुत ही अल्प प्रयोग किया है और शुद्ध रिषभ का प्रयोग आरोह में विशिष्ट प्रकार से किया गया है, जैसे - सा ग म ; म ग रे ग म ; ग सा; अथवा सा ग म ; म रे ग म ; सा;

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