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Theory (शास्त्र)

प्रवीण संगीताचार्य (VIII Year) - कत्थक (शुद्ध सिद्धान्त पाठ्यक्रम ) प्रथम प्रश्नपत्र

1. प्रथम से सप्तम वर्षों के पाठ्यक्रम में निर्धारित नृत्य शास्त्र सम्बन्धी समस्त पारिभाषिक शब्दों का विस्तृत आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन।
2. नृत्य की प्राचीन, मुगल तथा राजपूत कालों से आधुनिक काल तक की पारस्परिक तुलना एवं उनका आलोचनात्मक अध्ययन।
3. नर्तक नर्तकी तथा नृत्याचार्य आदि के गुण.दोष, नायक के आठ सात्विक गुण, ताण्डव एवं लास्य के भाव, नृत्य में साहित्य का महत्व, पुराणों की कथाओं से नृत्य कला का सम्बन्ध आदि का विस्तृत अध्ययन।

संगीत प्रभाकर (VI Year) - कत्थक (शास्त्र पाठ्यक्रम ) प्रथम प्रश्नपत्र

1. कत्थक नृत्य का विस्तृत इतिहास, विभिन्न कालों में इसकी रूप रेखा तथा इसका अंगीकरण, प्रत्येक काल के नृत्याचार्यां तथा उनकी नृत्यकला का पूर्ण परिचय।
2. रंगमंच की रचना का उद्देश्य तथा इतिहास, रंगमंच पर प्रकाश व्यवस्था एवं इसकी आवश्यकता।
3. नृत्य में वेशभूषा की आवश्यकता, वेशभूषा और रूप सज्जा में परस्पर सम्बन्ध और इस सम्बन्ध में आलोचनात्मक विचार।
4. लोकनृत्य की विशेषताएँ एवं इसके विभिन्न रूप, कत्थक एवं लेकनृत्य में परस्पर साम्य और भेद, लोकनृत्य की आवश्यकता और इसके आवश्यक अवयव।

प्रवीण संगीताचार्य (VII Year) - कत्थक (शास्त्र पाठ्यक्रम ) द्वितीय प्रश्नपत्र

1. निम्नलिखित नृत्य सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दों की विस्तृत व्याख्या, इनका स्पष्टीकरण तत्सम्बन्धी आलोचनाएं एवं स्पष्टीकरण - थाट, आमद, सलामी, निकास, तोड़ा, टुकड़ा, परन, गत, भाव, अनुभाव, विभाव, तत्कार, बोल, पल्टा, कविन्त, पढन्त, तिहाई, अदा, कसक, मसक, कटाक्ष, गत भाव, गत तोड़ा, मुख विलोम, लय, माश्रा, ताल, ठेका, आवृति, विभाग, सम, ताली, खाली, काल मार्ग, क्रिया, अंग, यदि, प्रस्तार, ग्रह, समृग्रह, कला, जाति, अंचित, अनुलोम, प्रतिलोम, अग्रल, अधोमुख शिर, आलोलित शिर, उदवाहित शिर, कम्पित शिर, परावृत शिर, सम शिर, धुत शिर, परिवाहित शिर, लाग.डाट।

भरतनाट्यम (II Year) - (शास्त्र पाठ्यक्रम )

1. अलारिपु तथा यतिस्वरम् का अर्थ सहित पूर्ण ज्ञान।
2. सप्त तालों का साधारण परिचय।
3. भरत नाट्यशास्त्र के निम्न 10 संयुक्त मुद्राओं के श्लोक तथा उनका अर्थ सहित पूर्ण ज्ञान - अंजली, कर्पात, पुशपुट, शिवलिंग, करकट, कटकावर्धन, श्ांख, स्वस्तिका, शकट और चक्र।
4. रूक्मिणि देवी अरूण्डेल तथा बाला सरस्वती की जीवनी तथा भरतनाटयम में उनका योगदान।
5. भरतनाट्यम का संक्षिप्त इतिहास।
6. ध्वनि, ध्वनि की उत्पत्ति, कम्पन, आंदोलन, आंदोलन संख्या तथा नाद की संक्षिप्त व्याख्या।

भरतनाट्यम (I Year) - (शास्त्र पाठ्यक्रम )

1. भरतनाट्यम के तालों में से तिस्त्रम, रूपकम, आदि ताल चम्पू या मिश्र ताल का ज्ञान (3, 6, 8, और 7 मात्राओं के, अट्टा ताल 14 मात्राओं के तथा जम्पू ताल 10 मात्राओं के त्रिपुट ताल के चतस्व जाति का विशेष ज्ञान, जैसे - आदि ताल 8 मात्रा और रूपक चतस्त्र जाति 6 मात्रा)।
2. ताल को 5 जातियों (तिस्त्र, चतुस्त्र, खण्ड, मिश्र तथा संकीर्ण) तथा 3 लयों (लघु, द्रुत और अनुद्रुत) का ज्ञान।
3. अडवु की परिभाषा, 15 प्रकार तथा हर प्रकार के पद संचालन का ज्ञान।

भरतनाट्यम (III Year) - (शास्त्र पाठ्यक्रम )

1. पिछले वर्षों के पाठ्यक्रम का विशेष अध्ययन।
2. शब्दम् शब्द का अर्थ सहित पूर्ण ज्ञान।
3. नव.रसों का पूर्ण ज्ञान।
4. भरतनाट्यम.शास्त्र की 24 असंयुक्त मुद्राओं का श्लोक सहित अर्थ ज्ञान।
5. अभिनय दर्पण की 28 असंयुक्त मुद्राओं का श्लोक सहित ज्ञान।
6. आंगिक, वाचिक तथा अहर्य अभिनय के भेद।
7. द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम के 10 संयुक्त मुद्राओं का किन.किन अर्थों में प्रयोग होता है, उसका ज्ञान।
8. मिनाक्षी सुन्दरम् पिल्ले, चोकलिंगम पिल्ले तथा पुन्नैया पिल्ले की जीवनी तथा योगदान।

प्रवीण संगीताचार्य (VII Year) - गायन (क्रियात्मक पाठ्यक्रम ) द्वितीय प्रश्नपत्र

1. प्रथम से षष्टम वर्ष के सभी पाठ्यक्रम में दिये गये सभी क्रियात्मक संगीत सम्बन्धित शास्त्र का विस्तृत एवं आलोचनात्मक अध्ययन।
2. पाठ्यक्रम के सभी रागों का विस्तृत, आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन। रागों में न्यास के स्वर, अलपत्व.बहुत्व के स्वर, विवादी स्वर और इनका प्रयोग, आविर्भाव.तिरोभाव का प्रदर्शन, समप्रकृतिक रागों की तुलना, रागों में अन्य रागों की छाया आदि विषय के सम्बन्ध में विस्तृत ज्ञान। विगत वर्ष के सभी रागों का पूर्ण ज्ञान होना अनिवार्य है।

प्रवीण संगीताचार्य (VIII Year) - गायन (क्रयात्मक संगीत पाठ्यक्रम ) द्वितीय प्रश्नपत्र

क्रयात्मक संगीत सम्बन्धी द्वितीय प्रश्न पत्र - क्रियात्मक संगीत सम्बन्धी द्वितीय प्रश्न पत्र - क्रियात्मक संगीत सम्बन्धी
1. प्रथम से सप्तम वर्षां तक के पाठ्यक्रमों के सभी क्रियात्मक संगीत सम्बन्धी शास्त्र का विस्तृत और आलोचनात्मक अध्ययन।
2. प्रबन्ध शास्त्र के तत्व एवं नियम। आधुनिक प्रबन्ध, जैसे - धु्रपद, धमार, खयाल, ठुमरी, टप्पा, दादरा, तराना, तिरवट, चतुरंग आदि की रचना करने का ज्ञान।
3. विभिन्न प्रकार की गतों जैसे मसीतखानी, रजाखानी, अमीरखानी, फिरोजखानी की नई बन्दिशों की रचना करने का ज्ञान।
4. भारतीय संगीत की वर्तमान स्थिति तथा इसका भविष्य।

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