पूर्वांग-उत्तरांग

मध्य सप्तक के आधे भाग यानि षडज, ॠषभ, गंधार व मध्यम स्वरों को पूर्वांग कहते हैं। तथा दूसरे भाग यानि पंचम, धैवत, निषाद व तार-षडज को उत्तरांग कहते हैं।

श्रुति

भारतीय शास्त्रीय संगीत श्रुतिव्यवस्था पर प्रतिष्ठित है और अनेक राग, जैसे राग बहार आदि, हमें आज के १२ स्वरों के प्रचलित वातावरण से श्रुतियों की ओर खींचते हैं। श्रुति का अर्थ है वह सूक्ष्म नाद लहरी जो कि श्रवणेन्द्रिय (कान) के द्वारा सुनी जा सके। और ऐसी 22 श्रुतियां, सा से सां (मध्य सप्तक के सा से तार सप्तक के सा तक) तक अवस्थित है।

लाग-डाट

मींड के आरोह को लाग और मींड के अवरोह को डाट कहते हैं। इशत् और मनाक् स्पर्श लाग-डाट के आगे की स्थितियाँ हैं।

मनाक् तथा इषत् स्पर्श

मींड जहाँ से प्रारम्भ होती है उस स्वर का आभास जो कानों के द्वारा सूक्ष्मतर ढंग से सुना जाता है, उस प्रारंभिक आभास वाले स्वर को इषत् स्पर्श कहते हैं।

जिस प्रकार मन में कहीं से भी विचार आते हैं तदनुसार मींड आती हुई दिखाई दे, लेकिन कहाँ से आ रही है वह सिर्फ मन द्वारा ही जान सकते हैं उसे मनाक् स्पर्श कहते हैं।

आविर्भाव-तिरोभाव

आविर्भाव व तिरोभाव भारतीय संगीत में अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। किसी भी राग के स्वरों को ऐसे क्रम में लगाना, जिससे किसी दूसरे राग की छाया दृष्टिगोचर होने लगे उसे तिरोभाव कहते हैं। परन्तु राग के मार्मिक स्वर पुन: लगाकर राग का आविर्भाव किया जाता है जिससे रागरूप स्पष्ट अपने रूप में आ जाए, आविर्भाव कहलाता है।

आविर्भाव-तिरोभाव बहुत कलापूर्ण है और अनुभवी, राग विज्ञान के दक्ष लोगों द्वारा ही संभव है अन्यथा इसमें राग स्वरूप नष्ट होने की अधिक संभावना रहती है।

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय