केदार
राग केदार
राग केदार हा भारतीय शास्त्रीय संगीतातील एक राग आहे.
रात्रि के प्रथम प्रहर में गाई जाने वाली यह रागिनी करुणा रस से परिपूर्ण तथा बहुत मधुर है। इस राग में उष्ण्ता का गुण है इसलिये यह दीपक की रागिनी मानी जाती है। कुछ विद्वान इस राग के अवरोह में गंधार का प्रयोग न करके इसे औढव-षाढव मानते हैं। गंधार का अल्प प्रयोग करने से राग की मिठास और सुन्दरता बढती है। गंधार का अल्प प्रयोग मध्यम को वक्र करके अथवा मींड के साथ किया जाता है, जैसे - सा म ग प; म् प ध प ; म ग रे सा। इस अल्प प्रयोग को छोडकर अन्यथा म् प ध प ; म म रे सा ऐसे किया जाता है।
- Read more about राग केदार
- Log in to post comments
- 8393 views
संबंधित राग परिचय
राग केदार
राग केदार हा भारतीय शास्त्रीय संगीतातील एक राग आहे.
रात्रि के प्रथम प्रहर में गाई जाने वाली यह रागिनी करुणा रस से परिपूर्ण तथा बहुत मधुर है। इस राग में उष्ण्ता का गुण है इसलिये यह दीपक की रागिनी मानी जाती है। कुछ विद्वान इस राग के अवरोह में गंधार का प्रयोग न करके इसे औढव-षाढव मानते हैं। गंधार का अल्प प्रयोग करने से राग की मिठास और सुन्दरता बढती है। गंधार का अल्प प्रयोग मध्यम को वक्र करके अथवा मींड के साथ किया जाता है, जैसे - सा म ग प; म् प ध प ; म ग रे सा। इस अल्प प्रयोग को छोडकर अन्यथा म् प ध प ; म म रे सा ऐसे किया जाता है।
मध्यम स्वर से उठाव करते समय मध्यम तीव्र का प्रयोग किया जाता है यथा - म् प ध प ; म् प ध नि सा'; म् प ध प सा'; इस प्रकार पंचम से सीधे तार सप्तक के सा तक पहुंचा जाता है। अवरोह में निषाद का प्रयोग अपेक्षाक्रुत कम किया जाता है जैसे - सा' रे' सा' सा' ध ध प। मध्यम शुद्ध की अधिकता के कारण षड्ज मध्यम भाव के प्रयोग में निषाद कोमल का प्रयोग राग सौन्दर्य के लिये अल्प मात्रा में किया जाता है जैसे - म् प ध नि१ ध प म। दोनों मध्यम का प्रयोग साथ साथ करने से राग की सुंदरता बढती है। यह राग उत्तरांग प्रधान है।
थाट
राग जाति
गायन वादन समय
Tags
राग
- Log in to post comments
- 8393 views