ഭാരതീയ ശാസ്ത്രിയ നൃത്യ

साहित्‍य में पहला संदर्भ वेदों से मिलता है, जहां नृत्‍य व संगीत का उदगम है । नृत्‍य का एक ज्‍यादा संयोजित इतिहास महाकाव्‍यों, अनेक पुराण, कवित्‍व साहित्‍य तथा नाटकों का समृद्ध कोष, जो संस्‍कृत में काव्‍य और नाटक के रूप में जाने जाते हैं, से पुनर्निर्मित किया जा सकता है । शास्‍त्रीय संस्‍कृत नाटक (ड्रामा) का विकास एक वर्णित विकास है, जो मुखरित शब्‍द, मुद्राओं और आकृति, ऐतिहासिक वर्णन, संगीत तथा शैलीगत गतिविधि का एक सम्मिश्रण है । यहां 12वीं सदी से 19वीं सदी तक अनेक प्रादेशिक रूप हैं, जिन्‍हें संगीतात्‍मक खेल या संगीत-नाटक कहा जाता है । संगीतात्‍मक खेलों में से वर्तमान शास्‍त्रीय नृत्‍य-रूपों

മണിപ്പുർ ക്ഷേത്രം സേ ആയ ശാസ്ത്രിയ നൃത്യ മണിപുരി നൃത്യ ഹേ

പൂർവോത്തറിൻ്റെ മണിപ്പുർ ക്ഷേത്രം സേ ആയ ശാസ്ത്ര നൃത്യ മണിപുരി നൃത്യം ഉണ്ട്.
*മണിപുരി നൃത്യ ഭാരതം അന്യ നൃത്യ രൂപങ്ങൾ സേ ഭിന്നം.
*ഇതുപോലെ ശരീര ധീമി ഗതി സേ ചലത ഹൈ, സാങ്കേതിക ഭാവ്യത കൂടാതെ മനമോഹകും ഗതിയും പ്രവാഹിത് ഹോതി ഉണ്ട്.
* യഹ് നൃത്യ രൂപം 18വീം ശതാബ്ദിയിൽ വൈഷ്ണവ സമ്ബ്രദായത്തിൽ വികസിപ്പിച്ചെടുത്തു ഈതി റിവാസ്, ജാദുഇ നൃത്യ രൂപങ്ങൾ എന്നിവയിൽ ഉൾപ്പെടുന്നു.
*വിഷ്ണു പുരാണം, ഭാഗവത പുരാണം തഥാ ഗീത ഗോവിന്ദം കി രചനയോം ഐ രൂപ സേ ഉപയോഗം ജാതി ഉണ്ട്.
* മണിപ്പുർ കി മെയ്‌റ്റി ജനജാതി കി ദന്ത കഥകൾ പിണ്ഡ കെ സമാന് തീ.

ധ്രുപദ് ഒരു സമൃദ്ധ് ഗായൻ ശൈലീ

ध्रुपद समृद्ध भारत की समृद्ध गायन शैली हैं ,प्राय : देखा गया हैं की ख्याल गायकी सुनने वाले भी ध्रुपद सुनना खास पसंद नही करते। कुछ वरिष्ठ संगीतंघ्यो ने इस गौरवपूर्ण विधा को बचाने का बीड़ा उठाया हैं,इसलिए आज भी यह गायकी जीवंत हैं और कुछ समझदार ,सुलझे हुए विद्यार्थी इसे सीख रहे हैं , ध्रुपद का शब्दश: अर्थ होता हैं ध्रुव+पद अर्थात -जिसके नियम निश्चित हो,अटल हो ,जो नियमो में बंधा हुआ हो।

തേരേ സുർ ഒപ്പം എന്റെ ഗീത

तेरे सुर और मेरे गीत,दोनों मीलकर बनेंगी प्रीत ....सुंदर गीत हैं न! जानते हैं किस राग मैं हैं ?यह हैं राग बिहाग .पिछली पोस्ट में हमने जाना . राग क्या होता हैं ?शुध्द ,विकृत स्वर क्या होते हैं ?और जाना राग यमन .

आज हम जानेंगे राग बिहाग और राग से सम्बंधित कुछ और महत्व पूर्ण तथ्य .

हम सभी जानते हैं की राग थाट से उत्पन्न होता हैं ,तो राग बिहाग का थाट हैं बिलावल ,थाट बिलावल में सब स्वर शुध्द होते हैं,और राग बिहाग में भी सब स्वर शुध्द होते हैं .

इस राग में सारे स्वर लगते हैं पर आरोह में रे ध वर्जित हैं .
आरोह हैं ..

सा ग म प नि सां
आवरोह हैं

പണ്ഡിറ്റ് ജസരാജ്, ജോ വിദേശി ധരതി ഭാരതീയ ശാസ്ത്ര സംഗീത സംഗീതം

 

किसी देवस्‍थल के समक्ष जलता हुआ दीपक जैसे भारतीय परंपरा में प्रार्थना का प्रतीक होता है, ठीक वैसे ही पंडि‍त जसराज अमेरिका में भारत के शास्‍त्रीय संगीत का प्रतीक थे। वे वि‍देशी धरती पर भारतीय शास्‍त्रीय संगीत की लौ की तरह जगमगाते रहे थे।
विदेशी धरती पर लंबा वक्‍त गुजारने के बाद भी उन्‍होंने कृष्‍ण और हनुमान की भक्‍त‍ि और अपने संगीत का साथ नहीं छोड़ा था। यहां तक कि अपना पहनावा भी नहीं।

शास्त्रीय गायक पंडित जसराज का 90 साल की उम्र में अमेरिका के न्‍यूजर्सी में निधन हो गया। मेवाती घराने से ताल्लुक रखने रखने वाले पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को हिसार में हुआ था।

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय