Jaijaivanti
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Jaldhar Kedar
यह केदार अंग का राग है। इस राग में राग दुर्गा के स्वर होते हुए भी राग केदार दिखाया जाता है। केदार का अंग स्पष्ट दिखाने के लिये इसमें मध्यम पर विश्रांति देते हैं जैसे - सा रे सा म ; ध प म ; सा ध प ध प म ; म रे प म ; सा म रे प ; ध प म ; प म रे सा ;। राग दुर्गा का अंग म रे प ; म रे ,ध सा; है परन्तु जलधर केदार में इसको म रे प ; म रे सा ; रे सा म इस तरह से लेते हैं और म रे ,ध सा नहीं लिया जाता।
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Jayat Kalyan
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Jaijaivanti
राग जयजयवन्ती अपने नाम के अनुसार ही अति मधुर तथा चित्ताकर्षक राग है। गाने में पेचीदा होने के कारण इस राग को स्पष्ट रूप से गाने वाले गायक कम हैं। कोमल गंधार सिर्फ अवरोह में रे ग१ रे - इस प्रकार प्रयोग में आता है। यदि शुद्ध गंधार के साथ रे ग रे लिया जाए तो स्वर योजना आरोह की तरफ बढती हुई लेनी चाहिए जैसे - रे ग रे ; रे ग म प ; म ग ; म ग रे; रे ग१ रे सा। अवरोह में यदि एक ही गंधार लिया जाए तो वह शुद्ध गंधार ही होगा जैसे - सा' नि१ ध प म ग रे सा ,नि सा ,ध ,नि१ रे सा। इस तरह ,ध ,नि१ रे में कोमल निषाद मंद्र सप्तक मे
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Gaud Sarang
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।