Bhairavi
Bhairavi (Sanskrit: भैरवी) is a Hindu goddess, described as one of the Mahāvidyas, the ten avatars of the mother goddess. She is the consort of Dakṣiṇāmūr
Etymology
The name Bhairavi means "terror" or "awe-inspiring".
Iconography
Bhairava with his consort, Bhairavi.
Her dhyana shloka in the Devi Mahatmya describes her form. She wears red garments and wears a garland of severed heads around her neck. She has three eyes and her head is adorned with a crescent moon.
Tripura Sundari and Tripura Bhairavi are closely associated but different.[4]
Legend
Bhairavi is also a title for a female adept in Kundalini, Tantra. A yogini is a student of Tantra or an aspirant. A Bhairavi has succeeded in Tantra with the help of 64 yoginis. Yogini or Jogini are 64 in number. Yoginis, female supporting deities of Bhairavi. Bhairavi is the supreme leader of all 64 yoginis. Bhairav also has 52 supporting powers called 52 Bhairav. Bhairavi is the consort of Bhairava according to the Puranas and Tantras. In Tantra Shastra all 64 yogini, 52 Bhairav and 56 Kalve work together.
Bhairavi is also called as Shubhankari, which means that she is the doer of auspicious deeds to her devotees who are her children, which means she is a good mother. She also favours violence, punishment and bloodshed to those who are irreligious and cruel, which also means that she is the mother of all violence to them. She is said to be seen as violent and terrible but is a benign mother to her children.[
यह भैरवी थाट का आश्रय राग है। हालांकि इस राग का गाने का समय प्रातःकाल है पर इस राग को गाकर महफिल समाप्त करने की परंपरा प्रचार में है। आजकल इस राग में बारह स्वरों का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करने का चलन बढ़ गया है जिसमें कलाकार कई रागों के अंगों का प्रदर्शन करते हैं। यह राग भाव-अभिव्यक्ति के लिए बहुत अनुकूल तथा प्रभावकारी है। इसके पूर्वांग में करुण तथा शोक रस की अनुभूति होती है। और जैसे ही पूर्वार्ध और उत्तरार्ध का मिलाप होता है तो इस राग की वृत्ति उल्हसित हो जाती है।
ऐसा कौन संगीत मर्मज्ञ अथवा संगीत रसिक होगा जिसने राग भैरवी का नाम ना सुना हो या इसके स्वरों को ना सुना हो। इस राग के इतने लचीले, भावपूर्ण तथा रसग्राही स्वर हैं की श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इस राग का विस्तार मध्य तथा तार सप्तक में किया जाता है। इस राग में जब शुद्ध रिषभ का प्रयोग किया जाता है तो इसे सिंधु-भैरवी कहा जाता है।
इस राग की प्रकृति चंचल है अतः इसमें ख्याल नही गाये जाते। इसमें भक्ति तथा श्रृंगार रस की अनुभूति भरपूर होती है अतः इसमें भजन, ठुमरी, टप्पा, ग़ज़ल, आदि प्रकार गाये जाते हैं। यह स्वर संगतियाँ राग भैरवी का रूप दर्शाती हैं -
रे१ ग१ रे१ ग१ सा रे१ सा ; ग१ म प ; प ध१ प ; प ध१ नि१ ध१ म ; ध१ प ग१ म ; प म ग१ म रे१ रे१ सा ; ,ध१ सा ; सा ग१ म प ; प ध१ प ; म म ; ग१ रे१ सा ; सा ग१ रे१ म ग१ ; सा ग१ प म ग१ सा रे१ सा ; ,नि१ रे१ ,नि१ ,ध१ ,नि१ ,ध१ ,प ,प ,ध१ ,नि१ ,ध१ सा;
थाट
राग जाति
समप्रकृति राग
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