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राग केदार (विलम्बित और द्रुत बंदिश) · पं। भीमसेन जोशी

विलंबित: 

सोहे लरा  री माई 
अब बनरा  बनी  बन आये 

कौन कौन गांव को अत धुमधाम 
बनरा ब्याहन आय 

द्रुत :

सावन की बूँदनियाँ 
बरसत घनघोर
बिजली चमकत धमकत
दास मनवा अति लरजत
मोर करे शोर

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