सीनियर डिप्लोमा (IV Year) - कत्थक (शास्त्र पाठ्यक्रम )

1. परिभाषिक शब्दों का पूर्ण ज्ञान - मुद्रा, निकास, स्थानक, अदा, घुमरिया, अंचित, कुंचित, रस, भाव, अनुभाव, भंगिभेद, तैयारी, अभिनय, पिन्डी, प्रमलू, स्तुति, विश्रिप्त, हस्तक, कसक, मसक, कटाक्ष, नाज, अन्दाज।
2. भातखंडे तथा विष्णु दिगम्बर ताललिपि पद्धतियों का पूर्ण ज्ञान तथा दोनों की तुलना।
3. भारत के शास्त्रीय नृत्य - कत्थक, कत्थकली, मणिपुरी, भरत नाट्यम का परिचयात्मक अध्ययन और इनकी तुलना।
4. निम्नलिखित विषयों का पूर्ण ज्ञान- संयुक्त और असंयुक्त मुद्रायें, नृत्य में भाव का महत्व, प्रचलित गत भावों के कथानकों का अध्ययन, नृत्य से लाभ, आधुनिक नृत्यों की विशेषताएँ।

सीनियर डिप्लोमा (IV Year) - कत्थक (क्रियात्मक पाठ्यक्रम )

1. तीनताल, एकताल तथा झपताल में नृत्य की पूरी तैयारी। इन तालों में कम.से.कम 15 मिनट तक बिना बोलों को दोहराये नृत्य प्रदर्शन की क्षमता। तीनताल में एक तालांगी, एक नृत्यांगी, एक कवितांगी तथा एक मिश्रांगी तोड़ों का अभ्यास। तीनताल में तोड़ां द्वारा अतीत तथा अनागत दिखाना।
2. तीनताल में घूंघट के प्रकार तथा बंसी और पनघट के गतभाव।
3. धमार में 4 तत्कार हस्तक सहित, 2 थाट, 1 सलामी, 1 आमद, 5 तोड़े, 2 तिहाइयाँ, 2 परनें तथा 1 चक्कारदार परन।
4. विभिन्न लयकारियों का ज्ञान। तीनताल में तत्कार द्वारा पंचगुन तथा आड़ लयों को पैर से तथा हाथ से ताली देकर दिखाना।

संगीत प्रभाकर (V Year) - कत्थक (क्रियात्मक पाठ्यक्रम )

1. 10 करणों का क्रियात्मक रूप से प्रस्तुत करने की क्षमता।
2. तीनताल में 25 मिनट तक बिना बोलों को दोहराये तथा धमार में 15 मिनट तक नृत्य करने की क्षमता। भजन तथा ठुमरी गायन पर भाव प्रदर्शित करते हुए नृत्य करने की क्षमता।
3. नये कथानकों, जैसे - माखन चोरी, कालिया दमन, चीर हरण, गोवर्धन धारण तथा कत्थक शैली में तांडव और लास्य अंग के नृत्यों का अभ्यास।
4. कोई भी दो प्रादेशिक लोकनृत्य, जैसे - गरवा, राजकोली, छपेली, भांगड़ा आदि में प्रदर्शन की क्षमता।
5. अब तक के पाठ्यक्रम में निर्धारित तालों में लहरा (नगमा) बजाने का अभ्यास।

संगीत प्रभाकर (V Year) - कत्थक (शास्त्र पाठ्यक्रम )

1. परिभाषा तथा व्याख्या - उरप, पुरप, तिरप, कसक, मकस, कटाक्ष, घूंघट, उरमई, सुरमई, लाग.डांट, जातिपरन, पक्षी.परन, बोल.परन, गत.निकास, गत.तोड़ा, गत.भाव, ग्रिवा.भेद, दम.बेदम तथा गति.भेद।
2. निम्नलिखित विषयों का अध्ययन। परम्परागत वेशभूषा, सफल नृत्य प्रदर्शन की आवश्यकताएं, घुंघरूओं का चुनाव, नृत्यकार के गुण अवगुण, नौ रस की पूर्ण व्याख्या एवं नृत्य में उनका उपयोग, वेष सज्जा (उांम नच), दृष्टि भेद, दिशाओं का ज्ञान।
3. नृत्य के लखनऊ, जयपुर और बनारस घरानों का तुलनात्मक तथा विस्तृत अध्ययन।
4. नायक.नायिका भेद का ज्ञान।

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय