ओट्टनतुल्ललू नृत्य
ओट्टनतुल्ललू नृत्य भारत में प्रचलित कुछ प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैलियों में से एक है।
कुंचन नाम्बियार द्वारा विकसित ओट्टनतुल्ललू नृत्य एक एकाकी नृत्य शैली है, जिसका प्रचलन केरल राज्य में है।
सरल मलयालम भाषा में वार्तालाप शैली में इस नृत्य के द्वारा सामाजिक अवस्था, वर्ग भेद, धनी-गरीब का भेद, मनमौजीपन आदि को दर्शाया जाता है।
ओट्टनतुल्ललू नृत्य जनसाधारण में काफ़ी लोकप्रिय है।
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अष्टापडी अट्टम
अष्टापडी अट्टम केरल के शास्त्रीय नृत्यों की ही एक शैली है। यह जयदेव के 'गीत गोविंद' पर आधारित प्रसिद्व नृत्य शैली है।
अष्टापडी अट्टम शैली प्रसिद्व गेय खेल का एक नाटकीय रूपांतरण है।
इस शैली में कुल मिलाकर पांच चरित्र होते हैं- श्रीकृष्ण, राधा और तीन अन्य महिलाएँ।
यह शैली अब प्राय: पूर्ण रूप से लगभग विलुप्त हो चुकी है।
इसमें चेन्दा, मदलमख इलाथलम और चेंगला आदि यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
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कांडरा नृत्य
कांडरा नृत्य में नाचने वाला मठा बिलोने की कड़ैनियाँ, जो घेर-घेर घूमती है, के समान घूम-घूमकर नृत्य करता है। नृत्य करने वाले की वेशभूषा बड़ी मनोहर होती है। वह सफ़ेद रंग का बागा[3] पहनता है, सिर पर पाग बाँधता है और पाग में हरे पंख की कलगी लगी रहती है तथा पैरों में घुंघरू बाँधा जाता है। कांडरा नृत्य में 'बिरहा' गीत गाये जाते हैं।
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काठी नृत्य
काठी देवी के कारण ही इसे 'काठी नृत्य' के नाम से जाना जाता है, जबकि काठियावाड़ को इस नृत्य का जन्म स्थल माना जाता है। माता के आराधक 'भगत' नाम से पुकारे जाते हैं।
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कर्मा नृत्य
छत्तीसगढ़ अंचल के आदिवासी समाज का प्रचलित लोक नृत्य है। भादों मास की एकादशी को उपवास के पश्चात करमवृक्ष की शाखा को घर के आंगन या चौगान में रोपित किया जाता है। दूसरे दिन कुल देवता को नवान्न समर्पित करने के बाद ही उसका उपभोग शुरू होता है। कर्मा नृत्य नई फ़सल आने की खुशी में किया जाता है।
संस्कृति का प्रतीक
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।