प्रवीण संगीताचार्य (VII Year) - कत्थक (क्रियात्मक पाठ्यक्रम )
1. प्रथम से षष्टम वर्ष के लिए निर्धारित सभी क्रियात्मक विषयों की विशेष तैयारी। उनमें निर्धारित सभी तालों में नये, कठिन और सुन्दर लयकारी युक्त टुकड़े, आमद, तोड़े परणें चक्करदार परणें, कवित्र, छन्द, गत, गतभाव आदि के साथ नृत्य करने की पूर्ण क्षमता।
2. पद संचालन में विशेष तैयारी, विभिन्न लयों को पदाघात क्रिया द्वारा प्रदर्शित करने का पूर्ण अभ्यास। सिर, नेत्र, पलक, पुतलियाँ, भ्रमरि नासिमा, कलोल, होंठ, दन्त, मुख, चिबुन, ग्रिवा, हस्ता, उर, पार्श्व, जठर, कटि, जंघा, पंजा आदि शारीरिक अंगों, प्रत्यंगों तथा उपांगों की सुन्दर ढंग से संचालित करने का विशेष अभ्यास।
प्रवीण संगीताचार्य (VIII Year) - कत्थक (शुद्ध सिद्धान्त पाठ्यक्रम ) प्रथम प्रश्नपत्र
1. प्रथम से सप्तम वर्षों के पाठ्यक्रम में निर्धारित नृत्य शास्त्र सम्बन्धी समस्त पारिभाषिक शब्दों का विस्तृत आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन।
2. नृत्य की प्राचीन, मुगल तथा राजपूत कालों से आधुनिक काल तक की पारस्परिक तुलना एवं उनका आलोचनात्मक अध्ययन।
3. नर्तक नर्तकी तथा नृत्याचार्य आदि के गुण.दोष, नायक के आठ सात्विक गुण, ताण्डव एवं लास्य के भाव, नृत्य में साहित्य का महत्व, पुराणों की कथाओं से नृत्य कला का सम्बन्ध आदि का विस्तृत अध्ययन।
प्रवीण संगीताचार्य (VIII Year) - कत्थक (मंच प्रदर्शन पाठ्यक्रम ) मंच प्रदर्शन
1. मंच प्रदर्शन में निम्न पांच तालों परीक्षार्थी को उनकी इच्छानुसार किन्हीं भी दो तालों में कम.से.कम आधा घंटा पूर्ण तैयारी के साथ अपनी सम्पूर्ण नृत्य कला का प्रदर्शन करना होगा। तत्पश्चात, तीनताल में अधिक.से.अधिक 20 मिनट तक पूर्ण तैयारी के साथ नृत्य करना होगा - बसंत ताल (नौ मात्रा), कुम्भ अथवा चन्द्रमणि ताल (11 मात्रा), जैमंगल अथवा मष्ठिका ताल (13 मात्रा), आड़ा चारताल (14 मात्रा), पंचम सवारी (15 मात्रा)।
2. परीक्षक को अधिकार होगा कि यदि वे चाहें तो निर्धारित समय से पूर्व भी परीक्षार्थी का नृत्य समाप्त करा सकते हैं।
प्रवीण संगीताचार्य (VIII Year) - कत्थक (क्रियात्मक पाठ्यक्रम )
1. प्रथम से षष्टम वर्ष के लिए निर्धारित समस्त क्रियात्मक पाठ्यक्रम की विशेष तैयारी। उनमें निर्धारित सभी तालों में नये, कठिन और सुन्दर लयकारी युक्त टुकड़े, आमद, तोड़े परणें चक्करदार परणें, कवित्र, छन्द, गत, गतभाव आदि के साथ नृत्य करने की पूर्ण क्षमता।
2. पद संचालन में पूर्ण तैयारी। विभिन्न लयों को पदाघात क्रिया द्वारा प्रदर्शित करने का विशेष अभ्यास। सिर, नेत्र, पलक, पुतलियाँ, भ्रकुटि नासिका, कपोल, होंठ, दन्त, मुख, चिबुन, ग्रिवा, हस्ता, उर, पार्श्व, जठर, कटि, जंघा, पंजा आदि शारीरिक अंगों, प्रत्यंगों तथा उपांगों की सुन्दर ढंग से संचालित करने का विशेष अभ्यास।
राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।