శాస్త్రీయ సంగీతానికి దిగ్గజ గాయక్ థే పలుస్కర్
विष्णु दिगंबर पलुस्कर का नाम हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के उन गायकों में शामिल किया जाता है जिन्होंने आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी की कई सभाओं में रामधुन गायी थी। दिल्ली के गंधर्व विद्यालय में अध्यापक ओ. पी. राय ने बताया कि पलुस्कर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक विशिष्ट प्रतिभा थे जिन्होंने भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण योगदान किया है।
18 अगस्त को जन्मदिन पर विशेष
उन्होंने बताया कि पलुस्कर ने महात्मा गाँधी की सभाओं सहित विभिन्न मंचों पर रामधुन गाकर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाया।
राय ने कहा कि पलुस्कर ने लाहौर में गंधर्व विद्यालय की स्थापना कर भारतीय संगीत को एक विशिष्ट स्थान दिया। इसके अलावा उन्होंने अपने समय की तमाम धुनों की स्वरलिपियों को संग्रहीत कर आधुनिक पीढ़ी के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के इस पुरोधा गायक का जन्म 18 अगस्त 1872 को अंग्रेजी शासन वाले बंबई प्रेसीडेंसी के कुरूंदवाड़ में हुआ था। पलुस्कर को घर में संगीत का माहौल मिला था क्योंकि उनके पिता दिगंबर गोपाल पलुस्कर धार्मिक भजन और कीर्तन गाते थे।
विष्णु दिगंबर पलुस्कर को बचपन में एक भीषण त्रासदी से गुजरना पड़ा। एक समीपवर्ती कस्बे में दत्तात्रेय जयंती के दौरान उनकी आँख के समीप पटाखा फटने के कारण उनकी दोनों आँखों की रोशनी चली गयी थी।
आँखों की रोशनी जाने के बाद उपचार के लिए वह समीप के मिरज राज्य चले गए। मिरज में उन्होंने बालकृष्णबुआ इचलकरंजीकर से संगीत की विधिवत शिक्षा हासिल करनी शुरू की। बारह वर्ष तक संगीत की विधिवत तालीम हासिल करने के बाद पलुस्कर के अपने गुरु से संबंध खराब हो गये और वह भारत भ्रमण पर निकल गये। इस दौरान उन्होंने बड़ौदा और ग्वालियर की यात्रा की।
धनार्जन के लिए उन्होंने संगीत के सार्वजनिक कार्यक्रम भी किये। पलुस्कर संभवत: पहले ऐसे शास्त्रीय गायक हैं जिन्होंने संगीत के सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए।
बाद में पलुस्कर मथुरा आये और उन्होंने शास्त्रीय संगीत की बंदिशें समझने के लिए ब्रज भाषा सीखी। बंदिशें अधिकतर ब्रजभाषा में ही लिखी गयी हैं। इसके अलावा उन्होंने मथुरा में ध्रुपद शैली का गायन भी सीखा।
पलुस्कर मथुरा के बाद पंजाब घूमते हुए लाहौर पहुँचे और 1901 में उन्होंने गंधर्व विद्यालय की स्थापना की। इस स्कूल के जरिये उन्होंने कई संगीत विभूतियों को तैयार किया।
हालाँकि स्कूल चलाने के लिए उन्हें बाजार से कर्ज लेना पड़ा। बाद में उन्होंने मुंबई में अपना स्कूल स्थापित किया। कुछ वर्ष बाद आर्थिक कारणों से यह स्कूल नहीं चल पाया और इसके कारण पलुस्कर की संपत्ति भी जब्त हो गयी।
पलुस्कर के शिष्यों में पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, पंडित विनायक राव पटवर्धन, पंडित नारायण राव और उनके पुत्र डी वी पलुस्कर जैसे दिग्गज गायक शामिल थे। उन्होंने तीन खंडों में संगीत बाल प्रकाश नामक पुस्तक लिखी और 18 खंडों में रागों की स्वरलिपियों को संग्रहीत किया।
संगीत के इस महान साधक का निधन 21 अगस्त 1931 को हुआ।
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