राग अहीर भैरव
राग अहीर भैरव भैरव थाटया छगू राग ख।
राग अहीर भैरव : इतिहास
राग अहीर भैरव सीक्क पुलांगु राग ख। थ्व रागया बारेय् प्राचीन ग्रन्थय् नं च्वयातःगु दु।
गुण
राग अहीर भैरवया गुण थ्व कथं दु[१]-
थाट:भैरव
पहर:सुथे
स्वर: कोमल ऋषभ, कोमल निषाद, मेगु सकल शुद्ध
छ्य्लातःगु म्ये
थ्व राग छ्येला देकातःगु म्ये थ्व कथं दु-
पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई - मेरी सूरत तेरी आँखें
वंदना करो, अर्चना करो
रामका गुन गान करिए - राम श्याम गुन गान
मेरी बिना तुम बिन रोये - देख कबीर रोया
मैं तो कबसे तेरी शरण में हूँ - राम नगरी
जिंदगी को संवारना होगा - अलाप
सोला बरसकी बलि उमारको सलाम - एक दूजे के लिए
अपने जीवन की उलझन को - उलझन
मन आनंद आनंद छायो - विजेता
वक्त करता जो वफ़ा आप हमारे होते - दिलने पुकारा
राम तेरी गंगा मैली हो गई - राम तेरी गंगा मैली
धीरे धीरे सुबह हुई हे जग उठी जिंदगी
मेरी गलियोंसे लोगोंकी यारी बढ़ गई - धर्मात्मा
चलो मन जायें घर अपने - स्वामी विवेकनान्द
अलबेला सजन आयो रे - हम दिल दे चुके सनम
राग अहीर भैरव का दिन के रागों में एक विशेष स्थान है। यह राग पूर्वांग में राग भैरव के समान है और उत्तरांग में राग काफी के समान है। राग के पूर्वांग का चलन, राग भैरव के समान ही होता है जिसमें रिषभ पर आंदोलन किया जाता है यथा ग म प ग म रे१ रे१ सा। इसमें मध्यम और कोमल रिषभ की संगती मधुर होती है, जिसे बार बार लिया जाता है। मध्यम से कोमल रिषभ पर आते हुए गंधार को कण के रूप में लगाया जाता है जैसे म (ग) रे१ सा। इसके आरोह में कभी-कभी पंचम को लांघकर, मध्यम से धैवत पर जाते हैं जैसे - ग म ध ध प म। धैवत, निषाद और रिषभ की संगती इस राग की राग वाचक संगती है।
यह उत्तरांग प्रधान राग है। भक्ति और करुण रस से भरपूर राग अहीर भैरव की प्रकृति गंभीर है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। ख्याल, तराने आदि गाने के लिए ये राग उपयुक्त है। यह स्वर संगतियाँ अहीर भैरव राग का रूप दर्शाती हैं -
सा ,नि१ ,ध ,नि१ रे१ रे१ सा ; रे१ ग म ; ग म प ध प म ; रे१ रे१ सा ; ग म प ध प म ; प ध ; प ध नि१ ; ध नि१ ; ध ध प म ; प म ग म प ; ग म प ग म ; ग रे१ सा ; ,नि१ ,ध ,नि१ ; रे१ रे१ सा;
थाट
राग जाति
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