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जगात रंग जमाना भारतीय संगीत

पंडित जसराज मानते आहेत की भारतीय शास्त्रीय संगीत पर पश्चिम सभ्यता का कोणतेही नुकसान नाही. या संगीताच्या लाभासाठी तो आपल्या देशाच्या अनेक शहरांमध्ये कार्यक्रमांना सुरुवात करतो. खास इंटरव्ह्यू...

*भारतीय संगीत की जवळजवळ हर विधा पश्चिम का प्रभाव साफ नजर आता आहे. काय शास्त्रीय संगीत भी होता?
-शास्त्रीय संगीत पश्चिम के असर से अछूता आहे. इस पर पश्चात्य संगीत का ना तो पहिला धक्का आहे आणि ना ही पुढे पडेल. पहले भी इस विधा को लोकगीतों आणि गजलों से आक्षेप घेतो, पण तो विधा स्थायी असतो. शास्त्रीय संगीत तो लोकांचा आत्मा को छू लेता आहे. त्यामुळे संगीत की विधाओंकडून त्याची तुलना करणे उचित नाही.
*काय देशात या विधा के उत्तम फनकार आहेत?
-आम पर्याय के उलट या विधाचे अनेक उत्कृष्ट देश कलाकार आहेत. नई नई भी इस विधा को अपना रहा है और अनेक तो प्रतिभावान हैं। विदेशातही या संगीताच्या प्रति संगीतप्रेमींमध्ये भारी आहे. मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि शास्त्रीय संगीत का भविष्य उम्मीद से अधिक बेहतर है।
*आपला हा देशव्यापी दौरे का मकसद काय आहे?
-ऐसे फेस्टिव्हल से प्रतिभावान कलाकारांची नवी पैदास मिळते. देशामध्ये शास्त्रीय संगीत में दिलचस्पी लेने वाले युवा प्रतिभावानांना कमी नाही. उनकी प्रकृति देकर त्यांची कला निखारना हमारा फर्म है। देशाचे विविध इलाकोंचे दौरे असे अनेक कलाकारांना मुलाकात होते. संगीताची ही समृद्धी विरासतला संवारना आणि पुढे वाढवणे ही देशव्यापी का महोत्सव प्रमुख मकसद आहे.
*कोलकाता आ कर कैसा वाटतो? तुम्ही तो लांब अरसे येथे आहात.
हे माझ्यासाठी दुसरे घर आहे. मी युवावस्था के 14 वर्ष हे महानगरात गुजारे आहेत. मेरी कला को निखारने में इस महानगर का भी अहम देता रहा है। ही महानगराची आपली एक विशिष्ट सांस्कृतिक ओळख आहे.

*लेकिन आता इथं सांस्कृतिक सांगितली की तक्रार करा आमची?ऐसा नाही. यह महानगर प्रथम भी सांस्कृतिक विरासत का धन आहे आणि आताही आहे. त्यामुळे तक्रारींचा अर्थ असा नाही. महानगर आणि आपल्या इमारतींच्या सुरक्षेसाठी तो सरकार आहे. पण सांस्कृतिक विरासत की रक्षा तो आमचीही करनी आहे. येथे आणि शांतिनिकेतन मध्ये शास्त्रीय संगीत के जितने श्रोता, उतने देशाचे दुसरे शहर मिळत नाही.

*आपने अपने लंबे करियर में महज तीन-चार फिल्मों में ही गीत गाए हैं। त्याचे काही खास कारण? अभी हाल में अनंत महादेवन की फिल्म के लिए टाइटल गीत गाया है। शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसाराची सक्रियता कारणीभूत आहे की मी फिल्मों की ओर ध्यान देत नाही. याशिवाय आजकल जैसी फिल्में बनत आहेत ऑनलाइन शास्त्रीय संगीतासाठी कोणतीही खास जागा नाही.

*इस उम्र में भी आप लगातार मेहनत कर रहे हैं? यह संगीत माझ्या नसों में रच-बस गया है. જ્યારે સુધી જીવન છે તે પ્રાધાન્ય આપે છે તેની પ્રયાસ કરે છે. हा विरासत पुढे वाढवण्याची कंधं हम जैसे लोकांवर ही आहे.

*आगे काय योजना आहे?
फिल तो आगामी डेढ़ महीने तक पटना, बनारस, आणि मुंबई देशाच्या विविध प्रांतात या उत्सव के उत्साह के हाल. त्याच्या पुढे अनेक कार्यक्रम आहेत.
इंटरव्यूः प्रभाकर, कोलकाता


पंडित जसराज मानते हैं कि भारतीय शास्त्रीय संगीत पर पश्चिमी सभ्यता का कोई असर नहीं पड़ा है। इस संगीत को बढ़ावा देने के लिए वह अपने साथियों के साथ देश के कई शहरों में कार्यक्रमों की सीरिज शुरू की है। उनका खास इंटरव्यू...

*भारतीय संगीत की लगभग हर विधा पर पश्चिम का असर साफ नजर आता है। क्या शास्त्रीय संगीत भी इससे प्रभावित हुआ है?
-शास्त्रीय संगीत पश्चिम के असर से बिल्कुल अछूता है। इस पर पाश्चात्य संगीत का ना तो पहले कोई असर पड़ा है और ना ही आगे पड़ेगा। पहले भी इस विधा को लोकगीतों और गजलों से चुनौती मिल चुकी है, लेकिन यह विधा स्थायी है। शास्त्रीय संगीत तो लोगों की आत्मा को छू लेता है। इसलिए संगीत की बाकी विधाओं से इसकी तुलना करना उचित नहीं है।
*क्या देश में इस विधा के बेहतर फनकार हैं?
-आम धारणा के उलट इस विधा के कई बेहतरीन कलाकार देश में हैं। नई पीढ़ी भी इस विधा को अपना रही है और उनमें से कई तो बेहद प्रतिभावान हैं। विदेशों में भी इस संगीत के प्रति संगीत प्रेमियों में भारी दिलचस्पी है। मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि शास्त्रीय संगीत का भविष्य उम्मीद से ज्यादा बेहतर है।
*आपके इस देशव्यापी दौरे का मकसद क्या है?
-ऐसे महोत्सवों से प्रतिभावान कलाकारों की नई पीढ़ी को बढ़ावा मिलता है। देश में शास्त्रीय संगीत में दिलचस्पी लेने वाले युवा प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। उनको बढ़ावा देकर उनकी कला को निखारना हमारा फर्ज है। देश के विभिन्न इलाकों के दौरे के दौरान ऐसे कई कलाकारों से मुलाकात हुई है। संगीत की इस समृद्ध विरासत को संवारना और आगे बढ़ाना ही इस देशव्यापी महोत्सव का प्रमुख मकसद है।
*कोलकाता आ कर कैसा लगता है? आप तो लंबे अरसे तक यहां रहे हैं।
यह मेरे लिए दूसरे घर की तरह है। मैंने युवावस्था के 14 साल इसी महानगर में गुजारे हैं। मेरी कला को निखारने में इस महानगर का भी अहम योगदान रहा है। इस महानगर की अपनी एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान रही है।

*लेकिन अब यहां सांस्कृतिक गिरावट की शिकायतें आम हो गई हैं?ऐसा नहीं है। यह महानगर पहले भी सांस्कृतिक विरासत का धनी रहा है और अब भी है। इसलिए ऐसी शिकायतों का कोई मतलब नहीं है। महानगर और उसकी इमारतों की सुरक्षा के लिए तो सरकार है ही। लेकिन सांस्कृतिक विरासत की रक्षा तो हम आम लोगों को ही करनी है। यहां और शांतिनिकेतन में शास्त्रीय संगीत के जितने श्रोता हैं, उतने देश के किसी दूसरे शहर में नहीं मिलते।

*आपने अपने लंबे करियर में महज तीन-चार फिल्मों में ही गीत गाए हैं। इसकी कोई खास वजह?कोई खास वजह तो नहीं है। अभी मैंने हाल में अनंत महादेवन की फिल्म के लिए टाइटल गीत गाया है। शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार की व्यस्तता की वजह से मैंने फिल्मों की ओर ध्यान ही नहीं दिया। इसके अलावा आजकल जैसी फिल्में बन रही हैं उनमें शास्त्रीय संगीत के लिए कोई खास जगह नहीं होती।

*इस उम्र में भी आप लगातार इतनी मेहनत कैसे कर पाते हैं?इसकी वजह है शास्त्रीय संगीत से गहरा लगाव और रियाज। यह संगीत में मेरी नसों में रच-बस गया है। जब तक जीवन है इसे बढ़ावा देने की कोशिश करता रहूंगा। इस विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेवारी हम जैसे लोगों के कंधों पर ही है।

*आगे की क्या योजना है?
फिलहाल तो अगले डेढ़ महीनों तक पटना, बनारस, सूरत और मुंबई समेत देश के विभिन्न शहरों में इस उत्सव के आयोजन के व्यस्तता रहेगी। उसके बाद आगे भी कई कार्यक्रम हैं।
इंटरव्यूः प्रभाकर, कोलकाता