Classical Instrumental Music ❤️ Raag Jaijaivanthi and Raag Bageshri ❤️ Indian Classical Music
A rendition of Classical Instrumental Music | Raga Jai jaiwanti & Raga Bageshree | Indian Classical Music Raag Jai jaiwanthi - 00:03 Raag Bageswari - 06:02 Instrumental - Sudhakar, Ganesh Muthu & S.Sathish Raga Jaijaivanti About - Raag Jai jai vanti also spelled as Jaijaiwanti is a raga in Hindustani classical music in Khamaj thaat. According to the Guru Granth Sahib, this raga is a mixture of two other ragas - Bilaval and Sorath. This raga has not been mentioned in any ancient Indian classical scriptures on music. It is also not mentioned in the Ragmala at the end of Granth Sahib. Raga Bageshri About - Raga Bageshri (Hindi: बागेश्री) is a Hindustani classical raga. It is a popular raga of the late night, which is meant to depict the emotion of a woman waiting for reunion with her lover. It is said to have been first sung by Mian Tansen, the celebrated court singer of the Emperor Akbar in the sixteenth century. Classical music is art music produced or rooted in the traditions of Western music (both liturgical and secular). It encompasses a broad span of time from roughly the 11th century to the present day. The two main traditions of classical music are Carnatic music, found predominantly in the peninsular regions, and Hindustani music, found in the northern, eastern and central regions. The basic concepts of this music includes shruti (microtones), swara (notes), alankar (ornamentations), raga (melodies improvised from basic grammars), and tala (rhythmic patterns used in percussion). Its tonal system divides the octave into 22 segments called shrutis, not all equal but each roughly equal to one quarter of a whole tone of Western music.
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राग
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संबंधित राग परिचय
बागेश्री
राग बागेश्री हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक राग है। यह राग काफी थाट से उत्पन्न हुआ है। गाने या बजाने का समय रात का दूसरा प्रहर माना जाता है।
राग बागेश्री रात्रि के रागों में भाव तथा रस का स्त्रोत बहाने वाला मधुर राग है। इस राग को बागेसरी, बागेश्वरी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। राग की जाति के संबंध में अन्य मत भी प्रचलित हैं, कोई इसे औढव-संपूर्ण तो कोई इसे सम्पूर्ण-सम्पूर्ण मानते हैं। इस राग में रिषभ का प्रयोग अल्प है तथा उस पर अधिक ठहराव नहीं किया जाता। परंतु आरोह में रिषभ वर्ज्य करने से यथा ,नि१ सा म ग१ रे सा अथवा सा ग१ म ग१ रे सा, ये स्वर संगतियाँ राग भीमपलासी की प्रतीत होती हैं। अतः बागेश्री में रे ग१ म ग१ रे सा, इन स्वरों को लेना चाहिए। वैसे ही ,नि१ सा ग१ म इन स्वरों के स्थान पर सा रे ग१ म लेना अधिक उचित प्रतीत होता है।
इसके आरोह में पंचम स्वर वर्ज्य है तथा अवरोह में पंचम का प्रयोग वक्रता से करके इसको राग काफी से अलग किया जाता है। जैसे - सा' नि१ ध म प ध म ग१ रे सा। पंचम का प्रयोग भी अल्प ही है। आरोह में रिषभ और पंचम वर्ज्य करने पर राग श्रीरंजनी सामने आ जाता है। अतः इसकी जाति षाढव-संपूर्ण ही उचित प्रतीत होती है। राग का सौदर्य निखारने के लिये सा म; नि१ ध; ध म इन स्वर समूहों को मींड के साथ प्रयोग मे लाते हैं।
राग बागेश्री का विस्तार तीनों सप्तकों में किया जाता है। यह एक गंभीर प्रकृति का राग है। यह स्वर संगतियाँ राग बागेश्री का रूप दर्शाती हैं -
सा रे सा ; ,नि१ ,नि१ सा ; ,नि१ ,ध ; ,म ,ध ,नि१ ,ध सा; ,ध ,नि१ सा म ; म ग१ ग१ रे सा; ,नि१ ,नि१ सा म ; म ग१; म ध नि१ ध म ; म प ध म ; म ग१ रे सा ; ग१ म ध सा' ध नि१ ध म ; ध सा' रे' सा' नि१ ध म ; म ग१ रे सा ; ग१ म ध नि१ ध नि१ सा' ; नि१ सा' नि१ नि१ रे'; सा' रे' सा' सा'; रे' सा' नि१ सा' ; ध नि१ ध सा' ; म ध ; ध नि१ ध म ; म प ध म ; म ग१ रे सा ,नि१ सा;
थाट
राग जाति
गायन वादन समय
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राग बागेश्री का परिचय
राग बागेश्री का परिचय
वादी: म
संवादी: सा
थाट: KAFI
आरोह: साऩि॒ध़ऩि॒सा मग॒ मधनि॒सां
अवरोह: सांनि॒ध मग॒ मग॒मरेसा
पकड़: ऩि॒ध़सा मधनि॒ध मग॒रेसा
रागांग: पूर्वांग
जाति: AUDAV-SAMPURN
समय: रात्रि का द्वितीय प्रहर
विशेष: न्यास-सा ग॒ म ध। आरोह में पंचम का अल्प प्रयोग होता है।